उत्सर्जन गैप रिपोर्ट (emissions gap report), 2018 | 29 Nov 2018
संदर्भ
हाल ही में यूनाइटेड नेशन एन्वायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) ने उत्सर्जन रिपोर्ट (emissions Report) प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) से निपटने के लिये तमाम देशों द्वारा उठाए जा रहे कदम पर्याप्त नहीं है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब कुछ ही दिनों के अंतराल पर पेरिस समझौते (Paris agreement) में लिये गए निर्णयों के कार्यान्वयन पर चर्चा करने हेतु दुनिया के सभी देश पोलैंड के काटोविस (Katowice) में उपस्थित होंगे।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- उत्सर्जन गैप रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि यदि 2030 तक उत्सर्जन गैप को खत्म नहीं किया गया तो वैश्विक तापमान (Global temperature) को 2 डिग्री सेंटीग्रेड पर सीमित करना दुनिया के लिये एक चुनौती बन जाएगा।
क्या है उत्सर्जन गैप (Emission gap)?
- 2030 तक वैश्विक स्तर पर किये जाने वाले वास्तविक उत्सर्जन तथा ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने हेतु वैज्ञानिक विधियों से ज्ञात प्रत्याशित उत्सर्जन स्तरों के बीच के अंतर को उत्सर्जन गैप कहा जाता है। दूसरे शब्दों में ‘हम कितना उत्सर्जन करने वाले हैं’ और ‘हमें कितना करना चाहिये’ के बीच का अंतर।
- यूनाइटेड नेशन एन्वायरनमेंट प्रोग्राम (United Nations Environment Program) ने अपनी उत्सर्जन गैप रिपोर्ट में कहा है कि 2015 में पेरिस समझौते के दौरान 194 देशों द्वारा किया गया वादा यानी ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ उत्सर्जन गैप के खात्मे के लिये पर्याप्त नहीं है।
- यदि 2030 तक उत्सर्जन गैप के खात्मे हेतु उपाय नहीं किये गए तो वैश्विक तापमान को औद्योगिक क्रांति पूर्व तापमान से 2 डिग्री सेंटीग्रेड पर सीमित कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
- यदि तापमान वर्तमान दर से बढ़ता रहा तो 2100 तक आते-आते वैश्विक तापमान 3 डिग्री सेंटीग्रेड का आँकड़ा भी पार कर जाएगा।
- हालाँकि यूनाइटेड नेशन एन्वायरनमेंट प्रोग्राम पेरिस समझौते के पश्चात् हर एक वर्ष के अंतराल पर उत्सर्जन गैप रिपोर्ट को पिछले तीन वर्षों से एक चेतावनी के तौर पर जारी कर रहा है।
अदम्य उत्सर्जन
- वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार, यदि 2100 तक वैश्विक तापमान को औद्योगिक क्रांति पूर्व तापमान से 2 डिग्री सेंटीग्रेड पर सीमित कर दिया जाए तो मानव जाति ग्लोबल वार्मिंग के ऐसे परिणामों से निपट सकती है।
- पेरिस में दुनिया के सभी देशों ने वैज्ञानिक समुदाय के उक्त कथन से सहमत होते हुए 2 डिग्री के लक्ष्य को निर्धारित किया था।
- 2 डिग्री के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उत्सर्जन को बढ़ाने की अनुमति अधिकतम 2020 तक दी जानी चाहिये थी। अर्थात् 2020 के बाद उत्सर्जन स्तर को कम करना तय था।
- किंतु उत्सर्जन गैप रिपोर्ट के अनुसार, 2020 के बाद उत्सर्जन में कमी आना असंभव प्रतीत होता है क्योंकि राष्ट्रों द्वारा उठाए जा रहे कदम अपर्याप्त हैं।
निष्कर्ष
हमारे समक्ष सुखद बात यह है कि दुनिया के कई देश ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आवश्यक कदम उठा रहे हैं। किंतु एक सच्चाई यह भी है कि वर्तमान में उठाए गए ये कदम अपर्याप्त हैं। आज ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी चुनौती के रूप में है जिसका सामना आसानी से किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी रेस है जिसे आज ही आसानी से जीता जा सकता हैं क्योंकि कल बहुत देर हो जाएगी।
स्रोत-द हिंदू बिजनेस लाइन