रेल दुर्घटनाओं में 49 हाथियों की मृत्यु | 15 Jan 2019

चर्चा में क्यों?


हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) ने राज्यसभा में एक सांसद द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब देते हुए संसद को बताया कि पिछले तीन वर्षों में 49 हाथी रेल दुर्घटनाओं में मारे गए।

क्या कहते हैं आँकड़े?

  • MOEFCC द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015-16 में 9, 2016-17 में 21 और 2017-18 में कुल 19 हाथियों की मौत रेल दुर्घटनाओं में हुई।
  • इन्ही तीन वर्षों के दौरान तीन बाघों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में, जबकि आठ बाघों की मौत रेल दुर्घटनाओं में हुई।
  • दिसंबर 2018 में गुजरात के अमरेली ज़िले में एक ट्रेन दुर्घटना में तीन शेरों की मौत हो गई थी। इससे पहले 2016-2018 के बीच रेलवे और सड़क दुर्घटनाओं में 10 शेरों की मौत हो गई थी।

fatal crossing

पश्चिम बंगाल और असम में हुई सर्वाधिक मौतें

  • ट्रेन की पटरियों पर मारे गए हाथियों की कुल संख्या 49 में से 37 हाथियों की मौत केवल दो राज्यों पश्चिम बंगाल और असम में हुई।
  • एक ओर जहाँ पश्चिम बंगाल में इस अवधि के दौरान रेल दुर्घटनाओं में हाथियों के मारे जाने की संख्या में कमी आई है वहीं असम में इस संख्या में वृद्धि हुई है।
रेल दुर्घटनाओं में मारे गए हाथियों की संख्या
वर्ष पश्चिम बंगाल असम
2015-16 05 03
2016-17 03 10
2017-18 02 14


मंत्रालय द्वारा किये गए प्रयास और उनका प्रभाव

  • 2016 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MOEFCC) ने ‘रैखिक-अवसंरचना के प्रभावों को कम करने के लिये पर्यावरण के अनुकूल उपाय ’ (Eco-friendly Measures to Mitigate Impacts of Linear Infrastructure) जारी किये, जो मानव-पशु संघर्षों को कम करने के लिये एक सलाहकारी दस्तावेज़ है।
  • मंत्रालय के अलावा कई अन्य संरक्षणवादियों और संगठनों द्वारा जारी किये गए दस्तावेज़ों के बावजूद भी सड़क और रेल दुर्घटनाओं में जंगली जानवरों की मौत बेरोक-टोक जारी हैं।
  • मंत्रालय के अनुसार, ट्रेन दुर्घटनाओं से होने वाली हाथियों की मौत की संख्या को कम करने के लिये एहतियाती उपाय लागू करने के उद्देश्य से एक के बाद एक कई नोटिस जारी किये गए हैं जिसमें 28 दिसंबर, 2016 को जारी मुख्य वन्यजीव वार्डन (Chief Wildlife Wardens) नोटिस भी शामिल है।

निष्कर्ष : जोस लुईस, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (Wildlife Trust of India-WTI) के संरक्षणविद, जिसने सडकों पर होने वाली मौतों की निगरानी के लिये एक मोबाइल एप विकसित किया है, के अनुसार, जब रेल और सड़क बुनियादी ढाँचा विकसित किया गया था उस समय कभी नहीं सोचा गया होगा कि यह इतने जानवरों की मृत्यु का कारण बन सकता है।


स्रोत : द हिंदू