इलेक्ट्रिक वाहनों का लागत-लाभ विश्लेषण | 03 Apr 2018

चर्चा में क्यों?
शहरों में स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित करने के लिये हाल ही में दिल्ली सरकार ने 200 नई विद्युत-चालित सिटी बसों को खरीदने की इच्छा जाहिर की है। ऐसी प्रत्येक बस की लागत 2.5 करोड़ रुपए आएगी जो कि संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) पर चलने वाली बस की कीमत (85 लाख रुपए) से काफी अधिक है। लेकिन ये ई-बसें शहर की वायु गुणवत्ता को सुधारने में किस हद तक सफल हो पाएंगी, इसका निर्धारण करने से पूर्व कुछ तथ्यों का विश्लेषण करना आवश्यक है।

पेट्रोल-डीज़ल से CNG की ओर संक्रमण

  • जलवायु परिवर्तन के वैश्विक राजनीतिक उपायों के तहत पारंपरिक पेट्रोल इंजन को डीज़ल इंजनों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है क्योंकि ये कम ‎CO2 का उत्सर्जन करते हैं और अधिक ऊर्जा कुशल होने के साथ ही परिचालन लागत भी कम होती है।
  • हालाँकि डीज़ल इंजन कम CO2 उत्सर्जित करते हैं, किंतु ये कालिख (Soot) और बड़ी मात्रा में पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन करते हैं। इसी पृष्टभूमि में CNG एक वैकल्पिक ईंधन बनकर उभरा और दिल्ली में 2001 से डीज़ल से CNG की ओर संक्रमण का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
  • चूँकि प्राकृतिक गैस एक स्वच्छ ईंधन है, इसलिये आमतौर पर हाइड्रोकार्बन, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन के आक्साइड (NOx) की सांद्रता में पर्याप्त कमी आती है। लेकिन दिल्ली में सड़कों पर वाहनों के उच्च घनत्व के कारण पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा बढ़ती जा रही है।

पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter-PM)

  • पार्टिकुलेट मैटर प्राकृतिक और मानव गतिविधियों दोनों से उत्पन्न हो सकते हैं। ये आकार और मनुष्यों पर प्रभाव के मामले में भिन्न-भिन्न होते हैं। 
  • PM 10 को रेस्पायरेबल पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं, जिसमें कणों का आकार 10 माइक्रोमीटर होता है। 
  • ये शरीर के अंदर पहुँचकर कई रोगों को जन्म दे सकते हैं। इसका मापन रिसपाइरेबिल डस्ट सैंपलर पीएम-10 उपकरण से किया जाता है।
  • इससे छोटे कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या कम होता है और ये ठोस या तरल रूप में वातावरण में होते हैं तथा इसमें धूल, मिट्टी और धातु के सूक्ष्म कण भी शामिल होते हैं।
  • ये कण आसानी ने साँस के साथ शरीर के अंदर जाकर गले में खराश, फेफड़ों में जकड़न पैदा कर उन्हें  नुकसान पहुँचाते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 से मापते हैं।
  • इनके अलावा पीएम-1.0 भी होता है, जिसकी चर्चा प्रायः नहीं की जाती। इसका आकार 1 माइक्रोमीटर से कम होता है और इसके कण साँस के द्वारा शरीर के अंदर पहुँचकर रक्त कणिकाओं में मिल जाते हैं। इसे पर्टिकुलेट सैंपलर से मापा जाता है।
  • PM 2.5 जनित वायु प्रदूषण और मधुमेह, प्री-टर्म बर्थ, कैंसर और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की बीमारियों सहित बच्चों में ऑटिज़्म और वृद्धों में डिमेन्शिया (याददाश्त कम होना) के बीच सकारात्मक सहसंबंध प्रमाणित किया जा चुका है।
  • PM एक गंभीर मुद्दा है जो औसत जीवन अवधि और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद को कम करता है।
  • मोटर वाहन, ऊर्जा  और ताप संयंत्र, कचरा भस्मक (waste incinerators), भट्टियां और घरों में हीटर, थोक कार्गो हैंडलिंग, पशुधन और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाएँ PM कणों के प्रमुख मानवजनित स्रोत हैं।

इलेक्ट्रिक बसें दिल्ली में प्रदूषण का समाधान क्यों नहीं कर पाएंगी?

  • शहरी इलाकों में सड़क परिवहन PM कणों का प्रमुख स्रोत है।
  • लेकिन 70-95% सड़क परिवहन से होने वाला PM उत्सर्जन टेलपाइप (Tailpipe) उत्सर्जन से संबंधित न होकर सड़कों पर धूल कणों के पुन: निलंबन और ब्रेक तथा टायर के घर्षण से संबंधित है।
  • इलेक्ट्रिक बसें इन उत्सर्जनों को कम नहीं कर पाएंगी बल्कि एक नई चिंता यह उभरती है कि इन बसों को चलाने के लिये ऊर्जा कहाँ से आएगी? 
  • दिल्ली में विद्युत शक्ति मुख्यत: कोयला-आधारित संयंत्रों द्वारा उत्पादित की जाती है। कोयला और फ्लाई ऐश शहर में लगभग 26% PM 2.5 उत्सर्जित करते हैं।
  • सर्दियों में वाहनों द्वारा उत्सर्जन और बिजली संयंत्रों के कारण  30% PM 2.5 वातावरण में उत्सर्जित होता है। दूसरे शब्दों में, इलेक्ट्रिक बसों की ओर संक्रमण उत्सर्जन के स्तर को कम करने की बजाय इसमें वृद्धि करेगा।  
  • हालाँकि टेलपाइप उत्सर्जन के संदर्भ में डीजल का CNG से प्रतिस्थापन समझ में आता है किंतु इलेक्ट्रिक बसों की ओर संक्रमण से शहर में हवा की गुणवत्ता में बदलाव आने और इसके पर्यावरण के अनुकूल पहल होने पर संदेह किया जा सकता है।
  • इसके बजाय उन उपायों पर फोकस किया जाना चाहिये जो अधिक टिकाऊ हैं और वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिये एक प्रभावी निवेश सिद्ध हो सकते हैं।
  • इसके लिये उन 20% स्रोतों पर ध्यान देना ज़्यादा ज़रुरी है जो 80% उत्सर्जन का कारण हैं।
  • किसी भी गणना में प्रभावी कुल उत्सर्जन, सामाजिक लागतों, बिजली की कीमत और उत्पादन, परिवहन और बिजली के भंडारण की वज़ह से ऊर्जा हानि को शामिल किया जाना चाहिये।

आगे की राह 

  • ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि एक बिंदु पर सड़क परिवहन का पूर्णत: विद्युतीकरण होगा क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों में अपेक्षाकृत कम पुर्जें होते हैं, इसलिये इनका उत्पादन करना सस्ता होगा।
  • किंतु वर्तमान में यह तकनीक बहुत महंगी है। 200 ई-बसों के लिये खर्च की जा रही धनराशि का उपयोग कम-से-कम 400 आधुनिक, स्वच्छ और अधिक कुशल CNG बसों या अधिक प्रभावी पहल में निवेश करने में किया जा सकता है।
  • भारत के 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहन विज़न दृष्टि से अपेक्षित अतिरिक्त ऊर्जा मांग को नवीकरणीय ऊर्जा के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
  • बेचे जाने वाले प्रत्येक इलेक्ट्रिक वाहन के लिये एक समर्पित स्वच्छ ऊर्जा स्रोत को स्थापित किया जाना चाहिये। ई-वाहन निर्माताओं द्वारा उपभोक्ताओं को आकर्षक पैकेज प्रदान करने के साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के भावी ईंधन में भी निवेश करना होगा।
  • वर्तमान में CNG बसों के वर्तमान बेड़े को नवीनीकृत करना और वास्तव में प्रभावी परियोजनाओं में निवेश करना अधिक व्यावहारिक विकल्प सिद्ध हो सकता है।