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भारतीय राजव्यवस्था

इलेक्टोरल बॉण्ड और सूचना का अधिकार

  • 26 Dec 2020
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को लागू करने के लिये प्रमुख संस्था केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) ने फैसला किया है कि राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम के माध्यम से चंदा देनों वालों के विवरण का खुलासा करने में कोई सार्वजनिक हित नहीं है और यह इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा।

  • इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम नागरिकों और कॉरपोरेट्स को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से मौद्रिक उपकरण खरीदने और उन्हें राजनीतिक दलों को दान करने की अनुमति देती है।
  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, जनवरी, 2020 तक राजनीतिक दलों को 6210.39 करोड़ रुपए के कुल 12,452 इलेक्टोरल बॉण्ड प्राप्त हुए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • CIC ने पाया कि दानदाताओं और लोगों के नामों का खुलासा आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (ई) (जे) में निहित प्रावधानों के उल्लंघन के कारण हो सकता है।
  • उक्त धारा एक सार्वजनिक प्राधिकरण को किसी व्यक्ति तथा उसके प्रत्ययी संबंधों के संदर्भ में  नागरिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिये छूट देती है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि इस तरह की जानकारी का खुलासा करने में एक बड़ा सार्वजनिक हित निहित है।
    • एक प्रत्ययी, वह व्यक्ति होता है जो एक या अधिक अन्य पक्षों (व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह) के साथ कानूनी या नैतिक संबंध रखता है।
    • राजनीतिक दलों को जारी किये गए इलेक्टोरल बॉण्ड से संबंधित जानकारी एसबीआई द्वारा एक प्रत्ययी क्षमता के अंतर्गत प्राप्त की जाती है।
    • इससे पहले जनवरी 2020 में, CIC ने केंद्र को निर्देश दिया था कि वह इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम के तहत दान देने वाले वे ऐसे दानदाताओं का नाम प्रकट करे, जो यह चाहते थे कि उनकी पहचान गोपनीय रहे।

चिंताएँ:

काला धन

  • कॉरपोरेट दान पर 7.5% की कैप का उन्मूलन, लाभ और हानि के संबंध में राजनीतिक योगदान को प्रकट करने की आवश्यकता का उन्मूलन और इस प्रावधान को समाप्त करना कि एक निगम को अस्तित्व में तीन वर्ष तक होना चाहिये, इस योजना के आशय को रेखांकित करता है।
  • कोई भी संकटग्रस्त या समाप्त होने की कगार पर खड़ी कंपनी एक राजनीतिक पार्टी को गुमनाम रूप से असीमित राशि दान कर सकती है, जो उसे किसी चीज़ के बदले में दिये गए लाभ या टैक्स हैवन देशों में जमा की गई नकदी के व्यापार के लिये एक सुविधाजनक चैनल दे सकती है।

पारदर्शिता में कमी:

  • न तो दाता और न ही राजनीतिक दल यह बताने के लिये बाध्य हैं कि दान किसने दिया।
  • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि सभी राजनीतिक दलों जिन्हें इलेक्टोरल बॉण्ड के माध्यम से दान मिला था, को भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष विवरण प्रस्तुत करना होगा।
  • यह एक मौलिक संवैधानिक सिद्धांत को रेखांकित करता है-राजनीतिक जानकारी की स्वतंत्रता, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का एक अभिन्न तत्त्व है।
  • यह राजनीतिक वित्त में पारदर्शिता के मूल सिद्धांत को हतोत्साहित करता है क्योंकि यह सार्वजनिक जाँच से कॉर्पोरेट्स की पहचान को छुपाता है।

असममित अपारदर्शिता:

  • सरकार हमेशा यह जानने की स्थिति में है कि दाता कौन है क्योंकि ये बॉण्ड एसबीआई के माध्यम से खरीदे जाते हैं।
  • जानकारी की यह विषमता तत्कालीन सरकार में प्रभुत्त्व रखने वाली राजनीतिक पार्टी के पक्ष में होती है।

इलेक्टोरल बॉण्ड:

  • इलेक्टोरल बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने का एक वित्तीय साधन है।
  • बॉण्ड 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में  बिना किसी अधिकतम सीमा के जारी किये जाते हैं।
  • भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और इनकैश करने के लिये अधिकृत है, जो जारी होने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध हैं।
  • ये बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के नामित खाते में रिडीम करने योग्य हैं।
  • ये बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है या भारत में शामिल या स्थापित है) हेतु जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि के लिये उपलब्ध हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है।
    • एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
    • बॉण्ड पर डोनर का नाम नहीं बताया जाता है।

केंद्रीय सूचना आयोग:

Central Information Commission

स्थापना:

  • इसकी स्थापना वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह कोई संवैधानिक निकाय नहीं है।

संरचना:

  • इसमें मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और केंद्रीय सूचना आयुक्तों की संख्या 10 से अधिक नहीं हो सकती, जो कि आवश्यक समझी जाती है।

नियुक्ति:

  • वे राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर नियुक्त किये जाते हैं, जो लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हैं।

कार्यकाल:

  • मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, ऐसे पद के लिये पद धारण करेगा।
  • वे पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं हैं।

CIC की शक्तियाँ एवं कार्य:

  • RTI अधिनियम, 2005 के तहत सूचना अनुरोध के बारे में किसी भी व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करना और पूछताछ करना आयोग का कर्तव्य है।
  • CIC किसी भी मामले की जाँच का आदेश दे सकता है अगर उचित आधार (सुओ-मोटो पावर) हो।
  • आयोग के पास सम्मन करने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में एक सिविल कोर्ट की शक्तियां होती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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