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जैव विविधता और पर्यावरण

मिस्र के उपजाऊ डेल्टा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • 13 Dec 2018
  • 3 min read

संदर्भ


मिस्र के उत्तरी हिस्से में नील नदी एक डेल्टा का निर्माण करती है। इस पूरे क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले खेत वर्ष भर हरियाली से आच्छादित रहते हैं। इस क्षेत्र को मिस्र का कृषि हार्टलैंड भी कहा जाता है लेकिन पिछले कुछ समय से यह क्षेत्र तथा ताज़े पानी के इसके महत्त्वपूर्ण संसाधन भी गर्म होती जलवायु की चपेट में आ गए हैं।

Egyptमहत्त्वपूर्ण बिंदु

  • मिस्र की लगभग आधी आबादी इसी उपजाऊ डेल्टा में निवास करती है। इस इलाके का भरण-पोषण करने वाली नील नदी पूरे मिस्र की जल आवश्यकतों के 90 फीसदी की पूर्ति करती है।
  • लेकिन बढ़ता तापमान शक्तिशाली नील नदी को दिन-ब-दिन शुष्क बनाता जा रहा है। वैज्ञानिकों और किसानों का कहना है कि तापमान की वज़ह से समुद्र का बढ़ता जल-स्तर और मृदा की लवणता इस समस्या के कारण हैं।
  • उक्त समस्या अरब क्षेत्र की सबसे घनी आबादी वाले इस देश में खाद्यान्न की समस्या को बढ़ावा दे सकती है।
  • डेल्टा के दक्षिणी हिस्से में खेती के सहारे जीवन-यापन करने वाले किसानों का कहना है कि नील नदी के लगातार सिकुड़ने की वज़ह से अब इस क्षेत्र में पानी नहीं आता है। पानी की कमी की वज़ह से किसानों को भूजल का सहारा लेना पड़ रहा है और बहुतायत मात्रा में पानी की खपत वाली फसलों, जैसे-चावल की बुवाई अब बंद कर दी गई है।
  • मिस्र के अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रकाशित 2016 के एक अध्ययन के अनुसार, 2050 तक यह क्षेत्र मृदा में लवणता की वृद्धि के कारण अपनी प्रमुख कृषि भूमि का 15% हिस्सा खो सकता है।
  • अध्ययन में यह भी कहा गया है कि टमाटर की उपज 50% तक गिर सकती है। गेहूँ और चावल जैसे प्रमुख अनाजों की उपज में भी क्रमश: 18 और 11 प्रतिशत तक की गिरावट आने की संभावना है।

संभावित उपाय 

  • यह डेल्टा मिस्र की खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन समस्याओं का सामना करने के लिये ढेरों उपाय किये जा रहे हैं, मसलन-सोलर पैनल आधारित सिंचाई व्यवस्था, डीज़ल जनरेटर का सूर्यास्त के बाद ही प्रयोग आदि। 
  • हालाँकि, वैज्ञानिकों ने ऐसे उपाय सुझाए हैं, जिन्हें अपनाकर मिस्र जैसे देश जलवायु परिवर्तन से मुकाबला कर सकते हैं। साथ ही कृषि उत्पादन को तापमान प्रतिरोधी फसलों की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है।

उत्तरी अफ्रीका के मिस्र जैसे देशों को अनिवार्य रूप से जलवायु अनुकूलन हेतु प्रयास करने होंगे। अन्यथा भविष्य में उन्हें गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।


स्रोत- द हिंदू

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