अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थान | 05 Dec 2019
प्रीलिम्स के लिये
अनुच्छेद-30(1), अल्पसंख्यकों के अधिकार
मेन्स के लिये
संवैधानिक प्रावधानों द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा, नीतिशास्त्र के प्रश्न-पत्र में केस-स्टडी के लिये उपयोगी।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जो किसी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से संबंधित थी।
मुख्य बिंदु:
- केरल उच्च न्यायालय ने अपने 5 अगस्त के फैसले में कहा था कि किसी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान का दर्जा (Minority Educational Institute Status) तभी दिया जाएगा जब वह अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा न सिर्फ प्रशासित (Administered) हो बल्कि उसकी स्थापना (Establishment) भी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई हो।
- सर्वोच्च न्यायालय ने भी संविधान के अनुच्छेद-30(1) का संदर्भ देते हुए केरल उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया तथा इस याचिका को ख़ारिज कर दिया।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-30(1) अल्पसंख्यकों, चाहे धार्मिक हों या भाषायी, को अधिकार प्रदान करता है कि सभी अल्पसंख्यक वर्गों को उनकी रुचि की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना का अधिकार होगा।
अल्पसंख्यक संस्थान तीन प्रकार के होते हैं:
- राज्य से आर्थिक सहायता एवं मान्यता लेने वाले संस्थान।
- ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता लेते हैं लेकिन उन्हें आर्थिक सहायता नहीं प्राप्त होती।
- ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता या आर्थिक सहायता नहीं लेते।
पृष्ठभूमि:
- यह मामला केरल राज्य के कोझिकोड ज़िले के एक प्राथमिक विद्यालय से संबंधित है। इस विद्यालय का नाम नल्लूर नारायण निम्न प्राथमिक विद्यालय (Nallur Narayana Lower Primary School) है।
- इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1936 में नल्लूर नारायण मेनन द्वारा की गई थी। उनकी मृत्यु के बाद इस विद्यालय के प्रबंधन का कार्यभार के. के. शशिधरन को सौंपा गया।
- वर्ष 2005 में के. के. शाशिधरन ने इस विद्यालय की संपत्ति तथा इसके प्रशासन का अधिकार पी. के. मोहम्मद हाजी को हस्तांतरित कर दिया तथा इस हस्तांतरण को वर्ष 2005 में राज्य के संबंधित विभाग द्वारा मान्यता प्रदान की गई।
- वर्ष 2013 में हाजी ने राज्य सरकार को एक अनापत्ति प्रमाण-पत्र (Non Objection Certificate-NOC) जारी करने के लिये आवेदन किया। ताकि इस संस्थान को अल्पसंख्यक वर्ग के संस्थान के तौर पर स्थापित किया जा सके लेकिन यह आवेदन स्वीकार नहीं किया गया।
- वर्ष 2014 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities) द्वारा इसे अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान का दर्जा दिया गया।
- आयोग के इस फैसले को विद्यालय के शिक्षकों द्वारा चुनौती दी गई। शिक्षकों का आरोप था कि इस तरह विद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से उनकी प्रोन्नति में प्रबंधक द्वारा पक्षपात किया जाएगा एवं अपने करीबी को प्राध्यापक का दर्जा दिया जाएगा।
- शिक्षकों का मानना है कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा किसी शिक्षा संस्थान की स्थापना तथा उसके प्रबंधन, दोनों ही स्थिति में उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया जा सकता है। जबकि इस विद्यालय का केवल प्रबंधन ही किसी अल्पसंख्यक के पास है।
- केरल उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में स्थापित (Established) शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि संविधान के संदर्भ में इसका व्यापक अर्थ तथा शब्द व्युत्पत्ति (Etymology) के आधार पर ही इसका अर्थ नहीं समझना चाहिये।
- अनुच्छेद-30(1) का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना तथा इस भावना का प्रसार करना है कि उनके पास बहुसंख्यक समुदायों के समान अधिकार हैं।
- इस प्रकार उच्च न्यायालय ने कहा कि कोई संस्थान जिसे किसी अल्पसंख्यक ने खरीदा हो तथा वह अल्पसंख्यकों के हित के लिये प्रतिबद्ध हो तो वह संस्था अनुच्छेद-30(1) के अंतर्गत आएगी।