अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विकास का नया रूप : आर्थिक विकास दर 7.1 फीसदी रहने की संभावना
- 01 Feb 2018
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चर्चा में क्यों?
आर्थिक सर्वेक्षण द्वारा 2018-19 के लिये पूरे वर्ष वास्तविक जीडीपी विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जो साल की दूसरी छमाही में 7.5 प्रतिशत के वास्तविक विकास दर पर आधारित है। वर्ष 2018-19 के लिये सर्वेक्षण ने वास्तविक जीडीपी विकास दर 7-7.5 के बीच रहने का अनुमान लगाया है। सरकार द्वारा संरचनात्मक सुधारों जैसे- जीएसटी, बैंकों को अतिरिक्त पूंजी देना, नियमों को उदार बनाने के उपाय तथा दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 प्रक्रिया के माध्यम से समाधान आदि के आधार पर सर्वेक्षण ने आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है।
विकास दर
- पिछले वर्ष के दौरान किये गए अनेक प्रमुख सुधारों से इस वित्त वर्ष में जीडीपी बढ़कर 6.75 प्रतिशत और 2018-19 में 7.0 से 7.5 प्रतिशत होगी, जिसके कारण भारत विश्व की सबसे तेज़ी से उभरती हुई मुख्य अर्थव्यवस्था के रूप में पुन:स्थापित होगा।
- सर्वेक्षण में यह उल्लेखित किया गया है कि वर्ष 2017-18 में किये गए सुधारों को वर्ष 2018-19 में और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है।
- स्थायी प्राथमिक मूल्यों पर ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) में 2016-17 में 6.6 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में 6.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की उम्मीद है।
- इसी प्रकार से 2017-18 में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में क्रमश: 2.1 प्रतिशत, 4.4 प्रतिशत और 8.3 प्रतिशत दर की वृद्धि होने की उम्मीद है।
- सर्वेक्षण में कहा गया है कि दो वर्षों तक नकारात्मक स्तर पर रहने के बावजूद 2016-17 के दौरान निर्यातों में वृद्धि सकारात्मक स्तर पर आ गई थी और 2017-18 में इसमें तेज़ी से वृद्धि होने की उम्मीद है।
- तथापि, आयातों में कुछ प्रत्याशित वृद्धि के बावजूद, वस्तु और सेवाओं के शुद्ध निर्यातों में 2017-18 में गिरावट आने की संभावना है।
- इसी प्रकार शानदार आर्थिक वृद्धि के बावजूद, जीडीपी के अनुपात के रूप में बचत और निवेश में सामान्य रूप से गिरावट दर्ज की गई है।
- निवेश दर में बड़ी गिरावट 2013-14 में आई, हालाँकि वर्ष 2015-16 में भी इसमें गिरावट दर्ज की गई। इसके अंतर्गत हाउसहोल्ड क्षेत्र में गिरावट आई, जबकि निजी कारपोरेट क्षेत्र में वृद्धि हुई थी।
- सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत को विश्व में सबसे अच्छा निष्पादन करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक माना जा सकता है, क्योंकि पिछले तीन वर्षों के दौरान इसकी औसत विकास दर वैश्विक विकास दर की तुलना में लगभग 4 प्रतिशत अधिक और उभरते बाज़ार एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत अधिक रही है।
- सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि 2014-15 से 2017-18 की अवधि के लिये जीडीपी विकास दर औसतन 7.3 प्रतिशत रही है, जो कि विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सर्वाधिक है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- इस विकास दर को कम महँगाई दर, बेहतर करंट अकाउंट बैलेंस तथा जीडीपी अनुपात की तुलना में वित्तीय घाटे में उल्लेखनीय गिरावट के चलते हासिल किया गया है।
- आने वाले वर्ष में कुछ कारकों, जैसे- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना के कारण जीडीपी विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने संबंधी संभावनाएँ भी व्यक्त की गई हैं।
- तथापि, 2018 में विश्व विकास दर में मामूली सुधार आने की संभावना के साथ जीएसटी में बढ़ते स्थायित्व, निवेश स्तरों में संभावित रिकवरी तथा अन्य बातों के साथ चालू ढाँचागत सुधारों से उच्च विकास दर प्राप्त किये जाने की संभावना है।
- सर्वेक्षण में स्पष्ट किया गया है कि उभरती मैक्रो इकॉनमिक चिंताओं के संबंध में आने वाले वर्ष में नीतिगत निगरानी आवश्यक होगी, विशेष रूप से जब अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतें ऊँचे स्तरों पर बनी रहती हैं या उच्च स्तरों पर स्टॉक मूल्यों में तेज़ी से गिरावट आती है, जिसके कारण पूंजी प्रभाव में एक अचानक ‘सुस्ती’ आ सकती है।
- परिणामस्वरूप, आगामी वर्ष के लिये एजेंडा परिपूर्ण है : जीएसटी में स्थायित्व लाना, टीबीएस (twin balance sheet) कार्यों को पूरा करना, एयर इंडिया का निजीकरण तथा मैक्रो इकॉनमिक स्थिरता के खतरों का समाधान करना।
- टीबीएस कार्यों, जो कि लंबे समय से चली आ रही ‘एग्ज़िट’ समस्या से निजात पाने के लिये उल्लेखनीय है, में घाटा झेल रहे बैंकों के समाधान के लिये और निजी क्षेत्र की बढ़ती प्रतिभागिता के लिये आवश्यक सुधारों की आवश्यकता है।
- जीएसटी परिषद ने अनेक नीतिगत सुधारों का अनुसरण करने हेतु कोऑपरेटिव फैडरेलिज़्म को एक मॉडल ‘टेक्नोलॉजी’ रूप प्रदान किया है।
- मध्यावधि में तीन क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा- रोज़गार, युवाओं और बढ़ते कार्यबल, विशेष रूप से महिलाओं के लिये अच्छी नौकरियाँ ढूढंना, शिक्षा : एक शिक्षित एवं स्वस्थ कार्यबल का सृजन, कृषि : अनुकूलन का सुदृढ़ीकरण करते हुए फार्म उत्पादकता को बढ़ाना।
- सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि भारत को वास्तविक रूप से दो स्थायी मुद्दों- निजी निवेश और निर्यात के आधार पर त्वरित आर्थिक विकास के लिये जलवायु में सुधार लाने पर निरंतर प्रयास करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त सर्वेक्षण में इस बात पर भी बल दिया गया है कि विमुद्रीकरण केवल एक मामूली व्यवधान था, जिसका प्रभाव 2017 के मध्य से आगे नहीं पड़ा। इस पहलू पर अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
- विमुद्रीकरण एवं जीएसटी का एक उद्देश्य करदाता आधार को बढ़ाना था। सर्वेक्षण के अनुसार, इन नीतिगत कदमों के फलस्वरूप करदाताओं की संख्या में वास्तव में बढ़ोतरी हुई है, हालाँकि इनमें से कई करदाताओं ने ऐसी आय घोषित की है जो न्यूनतम सीमा स्तर के करीब है।
मुद्रास्फीति दर
- आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक हाउसिंग, ईंधन और लाइट को छोड़कर सभी बड़े कमोडिटी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति दर में यह कमी दर्ज की गई।
- नवबंर 2016 से अक्तूबर 2017 यानी पूरे 12 महीने के दौरान मुख्य मुद्रास्फीति दर 4 फीसदी से नीचे दर्ज की गई। जबकि चालू वित्त वर्ष अप्रैल-दिसंबर के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक औसतन करीब एक फीसदी रहा।
- सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले चार सालों में अर्थव्यवस्था में क्रमिक बदलाव देखा गया, जिसमें एक अवधि के दौरान मुद्रास्फीति काफी ऊपर चढ़ने या काफी नीचे गिरने की बजाय स्थिर बनी रही।
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के ज़रिये मापी जाने वाली प्रमुख मुद्रास्फीति दर पिछले चार सालों में नियंत्रित ही रही है। जाहिर है कि चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में मुद्रास्फीति दर में जो गिरावट देखी गई वह खाद्य पदार्थों में रही। इसकी दर (-) 2.1 से 1.5 प्रतिशत रही।
- सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह कृषि के क्षेत्र में बेहतर उत्पादन के चलते ही मुमकिन हो पाया है। सरकार ने मूल्यों को लेकर लगातार निगरानी बनाए रखी है।
- आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, हाल के महीनों में खाद्य पदार्थों के मूल्यों में चढ़ाव देखा गया उसकी वजह सब्जी और फलों के दामों में वृद्धि रही है।
- वर्ष 2016-17 में ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के मुख्य घटक खाद्य पदार्थ रहे हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में हाउसिंग सेक्टर ने मुद्रास्फीति में मुख्य भूमिका अदा की है।
- वर्ष 2016-17 के दौरान यदि हम राज्यवार मुद्रास्फीति की दर देखेंगे तो पाएंगे कि ज़्यादातर राज्यों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में बड़ी गिरावट का ही दौर जारी रहा। चालू वित्त वर्ष के दौरान 17 राज्यों में मुद्रास्फीति की दर 4 प्रतिशत से कम रही।
- सरकार की तरफ से कई स्तरों पर किये गए प्रयासों के चलते मुद्रास्फीति दर में यही कमी देखी गई।
एफडीआई
- वर्ष 2017-18 (अप्रैल-अक्तूबर) के दौरान सेवा क्षेत्र में एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 15.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। यह भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाए रखने के लिये सरकार द्वारा अनेक सुधारों को लागू करने से संभव हो पाया है, जिनमें राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) नीति की घोषणा करने, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने, कारोबार में सुगमता सुनिश्चित करने के लिये लागू किये गए सुधार शामिल हैं।
- इस अवधि के दौरान बड़े पैमाने पर सुधार लागू किये गए, जिसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि सेवाओं से जुड़ी गतिविधियों सहित 25 क्षेत्रों (सेक्टर) में सुधार लागू किये गए हैं।
- इनमें एफडीआई नीति से जुड़े 100 क्षेत्रों को भी कवर किया गया है। विभिन्न सेक्टरों जैसे कि निर्माण क्षेत्र के विकास, प्रसारण, खुदरा कारोबार, हवाई परिवहन, बीमा एवं पेंशन सेक्टर से जुड़ी एफडीआई नीति के प्रावधानों में व्यापक बदलाव किये गए।
- वर्तमान में 90 प्रतिशत से भी अधिक एफडीआई प्रवाह स्वत: रूट के ज़रिये होता है।
- ई-फाइलिंग के साथ-साथ विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) द्वारा एफडीआई से जुड़े आवेदनों की ऑनलाइन प्रोसेसिंग पर सफलतापूर्वक अमल के बाद सरकार ने केंद्रीय बजट 2017-18 में एफआईपीबी को चरणबद्ध ढंग से भंग करने की घोषणा की।
- हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 10 जनवरी, 2018 को एफडीआई नीति में संशोधनों को मंजूरी दी, जिसके तहत एकल ब्रॉण्ड खुदरा कारोबार के लिये स्वत: रूट के ज़रिये 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी गई। विदेशी एयरलाइंस को भी एयर इंडिया में 49 प्रतिशत तक निवेश करने की अनुमति दी गई है।
- वैसे तो सेवा क्षेत्र में एफडीआई के वर्गीकरण में कुछ विसंगतियाँ हैं, लेकिन शीर्ष 10 सेवा क्षेत्रों जैसे कि औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) की सेवा क्षेत्र संबंधी परिभाषा के दायरे में आने वाली वित्तीय एवं गैर-वित्तीय सेवाओं के साथ-साथ दूरसंचार, व्यापार, कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर, निर्माण, होटल एवं पर्यटन, अस्पताल एवं नैदानिक केंद्रों, परामर्श सेवाओं, समुद्री परिवहन और सूचना एवं प्रसारण क्षेत्र की संयुक्त एफडीआई हिस्सेदारी को सेवा क्षेत्र से जुड़े एफडीआई का सर्वोत्तम आकलन माना जा सकता है।
- वर्ष 2016-17 के दौरान सर्विस सेक्टर (निर्माण क्षेत्र सहित शीर्ष 10 सेक्टर) में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 0.9 प्रतिशत घटकर 26.4 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर आ गया। हालाँकि, समग्र रूप से एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
- वर्ष 2017-18 (अप्रैल-अक्तूबर) के दौरान कुल एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में इन सेवा क्षेत्रों में एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 15.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- यह मुख्यत: दो सेक्टरों यथा दूरसंचार और कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर में अपेक्षाकृत अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) होने से ही संभव हो पाया है।