आर्थिक सर्वेक्षण 2022: चिंताएँ और सुझाव | 01 Feb 2022
प्रिलिम्स के लिये:आर्थिक सर्वेक्षण और उसके आँकड़े। मेन्स के लिये:आर्थिक सर्वेक्षण से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश, सुझाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण के तुरंत बाद वित्त मंत्री द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 को संसद में पेश किया गया था।
आर्थिक सर्वेक्षण 2022 की प्रमुख चुनौतियाँ:
- बढ़ी हुई मुद्रास्फीति:
- समीक्षा में कहा गया है कि आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और धीमी आर्थिक वृद्धि ने मुद्रास्फीति के बढ़ने में योगदान दिया है। आगामी वित्तीय वर्ष (2022-23) में विकसित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलने से देश में पूंजी प्रवाह प्रभावित होने की संभावना है।
- वर्ष 2021-22 के दौरान ऊर्जा, खाद्य, गैर-खाद्य वस्तुओं और इनपुट कीमतों, आपूर्ति बाधाओं, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान एवं दुनिया भर में बढ़ती माल ढुलाई लागत में वृद्धि ने वैश्विक मुद्रास्फीति को रोक दिया।
- विकसित अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करने वाले खर्च और महामारी के दौरान मांग में कमी के कारण भारत में "आयातित मुद्रास्फीति" (आयात की कीमतों में वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति) स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- पूंजी में अस्थिरता (Volatility in Capital):
- आर्थिक सर्वेक्षण में उल्लेख किया गया है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने उस तरलता को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी जिसे आर्थिक सुधार को प्रोत्साहित करने के लिये प्रोत्साहन चेक और शिथिल मौद्रिक नीति के रूप में महामारी के दौरान बढ़ाया गया था। उच्च मुद्रास्फीति ने महामारी संबंधी प्रोत्साहन को बंद कर दिया है।
- अगले वर्ष प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा तरलता की संभावित वापसी से वैश्विक पूंजी प्रवाह अधिक अस्थिर हो सकता है, सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह पूंजी प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जिससे भारत की विनिमय दर एवं धीमी आर्थिक वृद्धि पर दबाव पड़ सकता है।
- भारत के बड़े और बढ़ते आयात से भी भारत की विनिमय दर पर दबाव पड़ने की संभावना है यदि विकसित देशों द्वारा उत्प्रेरक उपकरणों की कमी होती है तो उसके परिणामस्वरूप भारत में पूंजी का प्रवाह कम हो सकता है।
- रोज़गार:
- बेरोज़गारी के स्तर और श्रम बल की भागीदारी दर पूर्व-महामारी के स्तर से भी गंभीर रहने के साथ नौकरियों की कमी भी भारतीय अर्थव्यवस्था की प्राथमिक चिंताओं में से एक है।
- PLFS के आंकड़ों के अनुसार, हालांकि बेरोज़गारी दर और श्रम बल की भागीदारी दर में महामारी की शुरुआत से पहले कुछ सुधार हुआ परंतु यह अभी भी पूर्व-महामारी के स्तर तक नहीं पहुंँचा है।
प्रमुख सिफारिशें:
- सर्वेक्षण के तहत मुख्य रूप से उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव, तकनीकी विकास, भू-राजनीति, जलवायु परिवर्तन और उसके संभावित अप्रत्याशित प्रभाव जैसे कारकों से प्रभावित कोविड के बाद की दुनिया की दीर्घकालिक अप्रत्याशितता से निपटने हेतु आपूर्ति-पक्ष की रणनीति विकसित करने पर ज़ोर देने का आह्वान किया गया है।
- यह ‘ऊर्जा के विविध स्रोतों के मिश्रित उपयोग का आह्वान करता है, जिनमें जीवाश्म ईंधन एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं", लेकिन साथ ही मांग पर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु सौर पीवी एवं पवन फार्मों से होने वाले बिजली उत्पादन हेतु भंडारण के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की भी बात की गई है।
- यह सरकार से पारंपरिक जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से बदलाव की गति पर ध्यान केंद्रित करने के लिये कहता है; और ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के लिये एक सहज ट्रांज़ीशन सुनिश्चित करने हेतु अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करता है।
- इसके तहत सीमा पार दिवालियापन से संबंधित मुद्दे के लिये एक मानकीकृत ढाँचे का भी आह्वान किया गया है, क्योंकि ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (IBC) के पास वर्तमान में सीमा पार क्षेत्राधिकार वाली फर्मों के पुनर्गठन हेतु कोई मानक साधन नहीं है।
- यह ‘चरम अनिश्चितता’ के वातावरण में 80 उच्च आवृत्ति संकेतकों के साथ नीति निर्माण के लिये ‘तीव्र दृष्टिकोण’ के उपयोग को प्रस्तावित करता है।
- परियोजना प्रबंधन और प्रौद्योगिकी विकास में प्रयुक्त यह दृष्टिकोण लगातार वृद्धिशील समायोजन करते हुए छोटे पुनरावृत्तियों में परिणामों का आकलन करता है। ये सभी सुझाव फीडबैक-आधारित निर्णय लेने हेतु "रियल-टाइम डेटा" की उपलब्धता पर आधारित हैं।