न्यूनतम मज़दूरी प्रणाली | 05 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 (Economic Survey 2018-19) में देश की वर्तमान न्यूनतम मज़दूरी प्रणाली को तर्कसंगत और कारगर बनाने पर ज़ोर दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
- मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुसार, “एक अच्छी न्यूनतम मज़दूरी प्रणाली आय में असमानताओं को कम करने, लैंगिक भेदभाव और गरीबी को समाप्त करने में मदद कर सकती है।”
- न्यूनतम मज़दूरी के इस प्रसार के बावजूद भारत में हर तीन श्रमिकों में से एक श्रमिक न्यूनतम मज़दूरी कानून द्वारा संरक्षित नहीं है।
- इन मुद्दों को संबोधित करने के लिये सर्वेक्षण एक सरलीकृत संरचना की सिफारिश करता है जिसके अंतर्गत न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण या तो कौशल स्तर के आधार पर अकुशल, अर्द्ध-कुशल, कुशल और अत्यधिक कुशल के लिये अलग-अलग वेतन या भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर अथवा दोनों के आधार पर किया जाएगा।
- इस संरचना के तहत, केंद्र सरकार ‘राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी’ को अधिसूचित करेगी जो पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। ये क्षेत्र राष्ट्रीय न्यूनतम मज़दूरी के निर्धारण के लिये गठित विशेषज्ञ समिति द्वारा निर्धारित किये जाएंगे।
- राष्ट्रीय वेतन एक आधारभूत वेतन होगा जो पूरे देश में एक समान होगा। राज्यों की न्यूनतम मज़दूरी राष्ट्रीय आधारभूत वेतन से कम नहीं होगी।
- हालाँकि राज्यों के पास उच्च स्तर पर मज़दूरी निर्धारित करने का विकल्प होगा। इस सर्वेक्षण में यह भी सिफारिश की गई है कि न्यूनतम वेतन को नियमित रूप से समायोजित करते रहना चाहिये।