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जैव विविधता और पर्यावरण

गंगा संरक्षण के लिये पारिस्थितिकीय प्रवाह अधिसूचना

  • 24 Oct 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

पारिस्थितिकीय प्रवाह अधिसूचना क्या है? राष्ट्रीय नदी गंगा विधेयक 2018 के प्रावधान

मेन्स के लिये

पारिस्थितिकीय प्रवाह अधिसूचना का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जारी एक दिशा-निर्देश में कहा गया कि ऐसे हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट जिनके निर्माण में पारिस्थितिकीय प्रवाह अधिसूचना (Ecological Flow Notification) का पालन नहीं किया गया है, उन्हें बंद किया जा सकता है।

क्या है पारिस्थितिकीय प्रवाह अधिसूचना?

  • इस अधिसूचना के अनुसार, हाइड्रोपावर उत्पादक कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इनके निर्माण से नदियों में वर्ष भर एक न्यूनतम सीमा तक जल का प्रवाह बना रहे। जिससे नदी के प्रवाह क्षेत्र में आने वाली जैव पारिस्थितिकी पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
  • यह अधिसूचना अक्तूबर 2018 में जारी की गई थी। इसके तहत कंपनियों को अपनी परियोजना से संबंधित डिज़ाइन (आवश्यकता के अनुसार बदलाव करके) सरकार को अक्तूबर 2021 तक सौंपना था जिसे अब दिसंबर 2019 कर दिया गया है।
  • हाइड्रोपावर उत्पादक प्रायः अपनी आवश्यकता से अधिक जल का संग्रहण करते हैं जिससे उनके उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है। इस कारण नदी के बहाव क्षेत्र में जल की आपूर्ति अवरुद्ध होती है जो जलीय पारिस्थितिकी के लिये चिंता का विषय है।
  • इस अधिसूचना में गंगा संरक्षण की दिशा में यह कहा गया है कि गंगा के ऊपरी बहाव क्षेत्र, इसके उद्गम से हरिद्वार तक जल के प्रवाह को एक निश्चित अनुपात में बनाए रखना होगा। इसके लिये नवंबर से मार्च तक मासिक औसत प्रवाह का 20 प्रतिशत, अप्रैल, मई तथा अक्तूबर में औसत का 25 प्रतिशत तथा मानसूनी ऋतु में मासिक औसत प्रवाह के 30 प्रतिशत तक जल की मात्रा को बनाए रखना होगा।

राष्ट्रीय नदी गंगा (पुनरुद्धार, संरक्षण तथा प्रबंधन) विधेयक 2018: प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक गंगा में तटबंधों, बंदरगाहों तथा स्थायी हाइड्रोलिक संरचना के निर्माण पर तब तक पाबंदी लगाता है जब तक कि इस संबंध में नेशनल गंगा रीजुवनेशन अथॉरिटी द्वारा आदेश न दिया जाए।
  • इसके तहत एक प्रबंधन संस्था का निर्माण किया जाएगा जो 2500 किलोमीटर तक गंगा के स्वास्थ्य की देखभाल करेगी। विधेयक में गंगा को राष्ट्रीय नदी के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • विधेयक में गंगा के जल के निरंतर पारिस्थितिकीय प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये कई प्रतिबंधों का प्रावधान किया गया है। वर्तमान में गंगा के ऊपरी हिस्से में कई बांधों की उपस्थिति ने इसके मार्ग में रुकावट पैदा की है।
  • प्रस्तावित विधेयक में उन गतिविधियों को अनधिकृत कहा गया है जिनके कारण गंगा के प्रवाह में गतिरोध या अनिरंतरता उत्पन्न हो। इसमें जल के बहाव की दिशा में परिवर्तन या इसे रोकना शामिल है।
  • इसके अनुपालन के लिये गृह मंत्रालय के अंतर्गत एक सशस्त्र गंगा प्रोटेक्शन कोर (GPC) की स्थापना की जाएगी तथा उन्हें गंगा रीजुवनेशन अथॉरिटी द्वारा तैनात किया जाएगा। GPC को अधिकार होगा कि जो भी नदी को प्रदूषित करे या वाणिज्यिक मत्स्यपालन हेतु नदी के प्रवाह को अवरुद्ध करे उसे गिरफ्तार किया जाए।

विधेयक के अंतर्गत आपराधिक गतिविधियाँ

  • ऐसी निर्माण गतिविधि जिससे नदी के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो।
  • वह भूमि जो नदी या उसकी सहायक नदियों के नज़दीक हो तथा वहाँ से भू-जल का वाणिज्यिक या औद्योगिक लाभ के लिये दोहन।
  • गंगा तथा उसकी सहायक नदियों में वाणिज्यिक मत्स्यपालन या एक्वाकल्चर।
  • नदी में उपचारित या गैर-उपचारित सीवेज का निस्तारण।

पारिस्थितिकीय प्रवाह अधिसूचना का महत्त्व

  • बांधों के निर्माण से नदियों में जल की उपलब्धता कम होती है। इससे नदी के मार्ग में तथा तटों पर उपस्थित प्रजातियों के प्राकृतिक अधिवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस अधिसूचना के लागू होने से इसे नियंत्रित किया जा सकेगा।
  • नदियों में वर्ष भर पानी की उपलब्धता से जलीय पारिस्थितिकी का विकास होगा क्योंकि नदियों के जल स्तर में कमी से नदी के किनारे स्थित स्थानीय गैर-जलीय प्रजातियों का विस्तार होता है तथा जलीय जीवों के अस्तित्व को खतरा पहुँचता है।
  • इससे जलीय पारिस्थितिकी में उपस्थित खाद्य शृंखला तथा पर्यावरण संतुलन का विकास होगा।
  • इस अधिसूचना द्वारा जलीय पारिस्थितिकी तथा जैव विविधता के संरक्षण में मदद मिलेगी।

स्रोत: द हिन्दू एवं पी. आई. बी.

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