चुनावी व्यय सीमा की समीक्षा हेतु समिति | 23 Oct 2020

प्रिलिम्स के लिये:

 निर्वाचन आयोग, लागत मुद्रास्फीति सूचकांक, जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम

मेन्स के लिये:

 चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के संदर्भ में गठित समिति का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) ने चुनाव के दौरान उम्मीदवार द्वारा किये गए कुल व्यय सीमा से संबंधित मुद्दों की जाँच/समीक्षा के लिये एक समिति का गठन किया है

प्रमुख बिंदु:

  • समिति के बारे में:
    • इस समिति को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में निर्वाचकों की संख्या में परिवर्तन और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (Cost Inflation Index-CII) में परिवर्तन का आकलन और हाल में संपन्न चुनावों में उम्मीदवारों के खर्च पैटर्न पर पड़ने वाले असर का आकलन करने का काम सौंपा गया है।

पृष्ठभूमि:

  • आयोग द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण पर राजनीतिक दलों ने कहा कि COVID-19 महामारी के कारण बढ़े हुए डिजिटल अभियान के खर्चों को पूरा करने के लिये बिहार विधानसभा चुनावों की खर्च सीमा में वृद्धि की जाए।
  • विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव नियम, 1961 के नियम 90 के एक संशोधन को अधिसूचित किया गया। इसके तहत तत्काल प्रभाव से लागू व्यय की सीमा में 10% की बढ़ोत्तरी कर दी गई।

पूर्व में किये गए संशोधन:

  • चुनावी खर्च की सीमा को अंतिम बार वर्ष 2014 में संशोधित किया गया था जबकि वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विभाजन के बाद वर्ष 2018 में उनके चुनावी खर्च सीमा में संशोधन किया गया।
  • उसके बाद वर्ष 2014 से वर्ष 2020 के दौरान मतदाताओं की संख्या में 834 मिलियन से 921 मिलियन तक की वृद्धि होने के बावजूद खर्च सीमा में वृद्धि नहीं की गई है और वर्ष 2014 का लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (Cost Inflation Index), 220 से बढ़कर वर्ष 2020 में 301 हो गया।

व्यय सीमा

  • यह वह राशि है जो एक उम्मीदवार द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च की जा सकती है जिसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है।
  • विधानसभा चुनावों के लिये यह सीमा 20 लाख रुपए से 28 लाख रुपए तक तथा  लोकसभा चुनाव के लिये 54 लाख रुपए से 70 लाख रुपए तक है।
  • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act-RPA), 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किये गए सभी व्यय का एक अलग और सही खाता रखना होता है।
  • चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों के भीतर सभी उम्मीदवारों को ECI के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है।
  • उम्मीदवार द्वारा सीमा से अधिक व्यय या खाते का गलत विवरण प्रस्तुत करने पर RPA, 1951 की धारा 10 के तहत ECI द्वारा उसे तीन साल के लिये अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  • ECI द्वारा निर्धारित व्यय सीमा चुनाव के दौरान किये जाने वाले वैध खर्च के लिये निर्धारित है क्योंकि चुनाव में बहुत सारा पैसा गलत एवं अवांछित कार्यों पर खर्च किया जाता है।
  • अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि चुनावी खर्च की यह सीमा अवास्तविक है क्योंकि उम्मीदवार द्वारा किया गया खर्च वास्तविक व्यय से बहुत अधिक होता है।
  • उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के दौरान अधिकतम खर्च की सीमा के निर्धारण के संदर्भ में दिसंबर 2019 में एक निजी सदस्य द्वारा संसद में बिल पेश किया गया-
    • यह कदम इस आधार पर उठाया गया कि प्रत्याशियों के चुनाव खर्च के संबंध में किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा खर्च की कोई उच्चतम सीमा निर्धारित नहीं है, जिस कारण अक्सर राजनीतिक पार्टियों द्वारा उम्मीदवारों का शोषण किया जाता है।
  • हालाँकि सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को चुनाव पूरा होने के 90 दिनों के भीतर चुनाव आयोग को अपने चुनाव खर्च का ब्योरा प्रस्तुत करना होता है।

राज्यों द्वारा चुनाव की फंडिंग:

  • इस प्रणाली में राज्य द्वारा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च वहन किया जाता है।
  • यह प्रणाली वित्तपोषण प्रक्रिया में पारदर्शिता ला सकती है क्योंकि यह चुनावों में इच्छुक सार्वजनिक वित्तदाताओं के प्रभाव को सीमित कर सकती है तथा इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

राज्य अनुदान पर सिफारिशें:

  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) द्वारा यह सुझाव दिया गया कि राज्य द्वारा वित्तपोषण आर्थिक रूप से कमज़ोर राजनीतिक दलों के लिये एक समान आधार को सुनिश्चित करेगा एवं ऐसा कदम सार्वजनिक हित में होगा।
    • यह भी सिफारिश की गई कि राज्य द्वारा यह धन केवल मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों को दिया जाना चाहिये तथा यह आर्थिक सहायता उम्मीदवारों को प्रदान की जाने वाली मुफ्त सुविधाओं के रूप में दी जानी चाहिये।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) के अनुसार, राजनीतिक दलों को चुनाव के लिये राज्य द्वारा वित्तीय सहायता देना वांछनीय/उचित (Desirable) है, बशर्ते राजनीतिक दल अन्य स्रोतों से आर्थिक सहायता प्राप्त न करे ।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित राष्ट्रीय आयोग (वर्ष 2000) द्वारा इस विचार का समर्थन नहीं किया गया लेकिन इसके द्वारा उल्लेख किया गया कि राजनीतिक दलों के नियमन के लिये एक उपयुक्त रूपरेखा को राज्य द्वारा वित्तपोषण से पहले लागू करने की आवश्यकता है।
  • चुनाव आयोग राज्य को चुनावों के आधार पर धन देने के पक्ष में नहीं है। आयोग का पक्ष है कि वह राज्य द्वारा प्रदत्त धनराशि का उपयोग उम्मीदवारों द्वारा किये जाने वाले व्यय की जाँच करने और अन्य खर्चों पर रोक लगाने सक्षम नहीं होगा।

लागत मुद्रास्फीति सूचकांक

  • इसका उपयोग मुद्रास्फीति के कारण वर्ष-दर-वर्ष माल और संपत्ति की कीमतों में वृद्धि का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है।
  • इसकी गणना महँगाई दर की कीमतों से मिलान करने के लिये की जाती है। सरल शब्दों में समय के साथ मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि से कीमतों में वृद्धि होगी।
  • मूल्य मुद्रास्फीति सूचकांक = पूर्व वर्ष के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (शहरी) में औसत वृद्धि का 75%।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक कीमतों में हुई वृद्धि की गणना करने के लिये पिछले वर्ष की वस्तुओं और सेवाओं की बास्केट की लागत की तुलना वर्तमान वस्तुओं और सेवाओं (जो अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं) की बास्केट कीमत से करता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा CII कोआधिकारिक गजट में अधिसूचित किया जाता है। 

स्रोत: पीआईबी