पूर्वी नहर परियोजना से होगा राजस्थान की तीन नदियों का जुड़ाव | 03 Oct 2017
संदर्भ
कुछ ही समय में शुरू होने वाली पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना जिसकी लागत 40,000 करोड़ रुपए है) कालीसिंध, गंभीरी और पार्वती नदियों को जोड़ेगी तथा राजस्थान के 13 ज़िलों की पेयजल संबंधी समस्याओं का समाधान करेगी। इस परियोजना को राज्य में चल रहे जल स्वावलंबन अभियान (Jal Swavalamban Abhiyan-JSA) के सहयोग से चलाया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- भारत के इस रेगिस्तानी राज्य ने जल के अभाव को दूर करने हेतु विगत वर्षों में भी कई प्रयास किये थे। विदित हो कि जल स्वावलंबन अभियान के तहत यहाँ अब तक 2.50 लाख जल संचयन ढाँचों (water harvesting structures) का निर्माण किया जा चुका है।
- अतः राजस्थान की सरकार व लोग नदियों के बचाव के लिये ‘सद्गुरु अभियान’ (Sadhguru's campaign) का समर्थन कर रहे हैं।
- राजस्थान राज्य इसके संस्थापक ईशा फाउंडेशन से मार्गदर्शन प्राप्त करेगा तथा देश भर में सूख चुकी नदियों को पुनर्जीवित करने के विभिन्न तरीकों की तलाश करेगा।
- जल स्वावलंबन अभियान का तीसरा चरण जनवरी 2018 में शुरू होगा, जिसकी अनुमनित लागत 1,800 करोड़ रुपए होगी।
‘नदियों के लिये रैली’ (rally for rivers) क्या है?
- यह एक सफलता अभियान है, जिसे ईशा फाउंडेशन द्वारा देश की जीवन रेखाओं अर्थात् नदियों को बचाने के लिये लॉन्च किया गया था।
- दरअसल, भारतीय सभ्यता बड़ी-बड़ी नदियों के किनारों पर ही विकसित हुई है। हमारी प्राचीन सभ्यता भी नदियों के जल से ही फली-फूली तथा जब भी नदियों ने अपना रुख परिवर्तित किया तो वे इनमें ही विलीन हो गईं।
- कई सदियों तक हमने नदियों के साथ अपने प्राचीन संबंधों को बनाए रखा, परन्तु पिछले कुछ दशकों में देश में जनसंख्या और विकास का दबाव इतना अधिक हो चुका है कि हमारी सदाबहार नदियाँ मौसमी बनती जा रही हैं।
- हाल के वर्षों में कई छोटी नदियाँ तो पहले से ही विलुप्त हो चुकी हैं। डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ (WWF) के अनुसार, गंगा और सिन्धु विश्व की दो सर्वाधिक संकटग्रस्त नदियों में सुमार हैं।
- देश की तकरीबन सभी नदियों के जलस्तर में गिरावट दर्ज़ की जा रही है।
- ईशा फाउंडेशन ने नदियों के इस विलुप्तिकरण को रोकने तथा उन्हें नया जीवन देने तथा पुनर्जीवित करने के लिये एक व्यापक नदी कायाकल्प योजना को प्रस्तावित किया है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
- भारत का 5% हिस्सा रेगिस्तान में तब्दील हो रहा है।
- 15 वर्षों में हमारे पास हमारे जीवन के लिये आवश्यक जल का मात्र आधा भाग ही उपलब्ध रहेगा।
- गंगा विश्व की सर्वाधिक संकटग्रस्त नदियों में से एक है।
- पिछले वर्ष गोदावरी का भी अधिकांश भाग सूख चुका है।
- कावेरी नदी के अपवाह क्षेत्र का लगभग 40% हिस्सा कम हो चुका है, जबकि कृष्णा और नर्मदा के अपवाह क्षेत्र का लगभग 60% हिस्सा सूख चुका है।
मानव जीवन पर प्रभाव
- हमारी 65% जल आवश्यकताओं की पूर्ति नदियों से होती है।
- सामान्यतः तीन में से दो बड़े शहर प्रतिदिन पानी की कमी से जूझते हैं। अधिकांश शहरी निवासी जल के एक कैन के लिये सामान्य कीमत से 10 गुना अधिक कीमतों का भुगतान करते हैं।
- हम केवल पीने और घरेलू उद्देश्यों के लिये ही पानी का संग्रहण नहीं करते हैं। विदित हो कि भारत में प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति औसत जल आवश्यकता 1.1 मिलियन लीटर है।
- बाढ़, सूखा जैसी आपदाओं और नदियों के मौसमी बन जाने से देश भर में फसलों को काफी नुकसान पहुँचता है।
- प्रत्येक राज्य में सदाबहार नदियाँ या तो मौसमी बनती जा रही हैं अथवा पूरी तरह से सूख रहीं हैं। केरल में भरतपुज़्हा, कर्नाटक में काबिनी, तमिलनाडु में कावेरी , पालार और वैगई, ओडिशा में मुसल, मध्य प्रदेश में क्षिप्रा आदि ऐसी ही नदियाँ हैं। अधिकांश छोटी नदियाँ तो पहले से ही विलीन हो चुकी हैं।
- वस्तुतः अधिकांश बड़ी नदियाँ अंतर्राज्यीय जल विवाद के घेरे में हैं।
कैसे होगा नदियों का संरक्षण?
- पर्यावरण और टिकाऊपन से संबंधित मामलों से अवगत होकर ईशा फाउंडेशन ने नदियों के स्थायित्व को बरकरार रखने और उन्हें पुनर्जीवित करने के लिये एक समाधान सुझाया है।
- इस समाधान के अंतर्गत नदी की सम्पूर्ण लम्बाई के एक ओर एक किलोमीटर तथा सहायक नदियों के आधे किलोमीटर के दायरे में वृक्ष लगाना शामिल है। वृक्षारोपण के लाभ निर्विवाद रूप से ‘प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड’ द्वारा प्रदर्शित किये गए थे।