पृथ्वी ओवरशूट दिवस | 02 Aug 2017
संदर्भ
जैसा की हम सभी जानते हैं कि दिनोंदिन बढ़ते प्रौद्योगिकी के उपयोग एवं विकास की हौड़ में शामिल मानवता ने प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल की अपनी रफ्तार को पहले से भी अधिक तीव्र कर दिया है| मनुष्य द्वारा वर्ष भर में इस्तेमाल किये जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों की माप (पर्यावरणीय दृष्टिकोण से) करने हेतु अर्थशास्त्री एंड्रू सिमम्स द्वारा पृथ्वी ओवरशूट का विचार प्रकट किया गया था|
पृथ्वी ओवरशूट दिवस (Earth Overshoot Day - EOD) क्या है?
- ध्यातव्य है कि प्रत्येक वर्ष जब संसार प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के संदर्भ में पर्यावरणीय दृष्टि से ऋणात्मक स्थिति में आ जाता है, तब ‘पृथ्वी ओवरशूट दिवस’ मनाया जाता है|
- इसका संदर्भ इस बात से है कि पर्यावरणीय दृष्टि से एवं प्राकृतिक संसाधनों की पहुँच की दृष्टि से जितनी मात्रा में मानव को इनका इस्तेमाल करना चाहिये, वस्तुतः मनुष्य उस सीमा को प्राप्त कर चुका है|
- इसके बाद हम जितनी मात्रा में इन संसाधनों का उपभोग करेंगे, उतना हमारे भविष्य के लिये निर्धारित वार्षिक कोटे से अतिरिक्त का उपभोग होगा|
- ध्यातव्य है कि इस वर्ष पृथ्वी ओवरशूट दिवस 2 अगस्त को मनाया गया|
पर्यावरणीय दुर्दशा
- उल्लेखनीय है कि यह अभी तक की अपनी तरह की पहली ऐसी गणना है| ई.ओ.डी. की गणना को वर्ष 1987 से आरंभ किया गया है| ध्यातव्य है कि प्रत्येक वर्ष मात्र सात महीने में ही हम उस स्तर को पार कर लेते है जो वर्ष भर के कोटे के रूप में हमारे लिये निर्धारित किया जाता है| यह गणना वस्तुतः हमारी पर्यावरणीय गिरावट (environmental degradation) की दर को प्रदर्शित करती है|
- ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क (जो कि प्रतिवर्ष ई.ओ.डी. की गणना करता है) के अनुसार, दुनिया के समस्त पारिस्थितिक पदचिह्न (world’s ecological footprint) का लगभग 60 प्रतिशत भाग कार्बन उत्सर्जन से बना होता है, जिसे विश्व पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते (Paris climate change agreement)के तहत रोकने की कोशिश की जा रही है।
- हालाँकि मात्र इन प्रयासों से अधिक सफलता मिल पाना संभव नहीं है, इसके लिये और अधिक बड़े स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है| यदि हम वर्तमान के कार्बन उत्सर्जन की दर को सीधा इसके अद्धे स्तर पर ले आते हैं, तब भी हम ई.ओ.डी. में मात्र 89 दिन या तीन महीनों की ही वृद्धि कर सकते है| इसके बावजूद हम दो महीने के घाटे की स्थिति में रहेंगे| स्पष्ट है कि इस दिशा में और अधिक गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है|
तीव्र गति से होता क्षय
- खाने के अपव्यय, भोजन की बर्बादी, वन संसाधनों पर अधिकाधिक निर्भरता, ये सभी ऐसे कारक हैं जो विश्व के प्राकृतिक संसाधनों में तेज़ गति से क्षय लाने में योगदान दे रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप आवश्यक संसाधनों की कमी, गरीबी और जीवों के विलुप्त होने संबंधी घटनाएँ बड़े स्तर पर घटित हो रही हैं|
- एक अनुमान के अनुसार, यदि विश्व उपभोग के वर्तमान स्तर को बनाए रखता है तो वर्ष 2030 तक स्थिति यह बन जाएगी कि हमें एक नई पृथ्वी की आवश्यकता होगी|
डब्लू. डब्लू. एफ.
- यह पर्यावरण के संरक्षण, अनुसंधान एवं रखरखाव संबंधी मामलों के संदर्भ में कार्य करता है। पूर्व में इसका नाम विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife fund) था|
- डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं- आनुवंशिक जीवों और पारिस्थितिक विभिन्नताओं का संरक्षण करना, यह सुनिश्चित करना कि नवीकरण योग्य प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पृथ्वी के सभी जीवों के वर्तमान और भावी हितों के अनुरूप हो रहा है, प्रदूषण, संसाधनों और ऊर्जा के अपव्ययीय दोहन और खपत को न्यूनतम स्तर पर लाना, हमारे ग्रह के प्राकृतिक पर्यावरण के बढ़ते अवक्रमण को रोकना तथा इस प्रक्रिया को पलट देना तथा एक ऐसे भविष्य के निर्माण में सहायता करना, जिसमें मानव प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके रहता है|
- वर्ष 2008 में, ग्लोबल प्रोग्राम फ्रेमवर्क (जी.पी.एफ.) के माध्यम से, डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. द्वारा अपने प्रयासों को 13 वैश्विक पहलों- अमेजन, आर्कटिक, चीन, जलवायु एवं ऊर्जा, तटीय पूर्वी अफ्रीका, प्रवाल त्रिभुज, वन और जलवायु, अफ्रीका का हरित प्रदेश, बोर्नियो, हिमालय, बाज़ार रूपांतरण, स्मार्ट मत्स्यन एवं चीता संरक्षण पर केंद्रित किया गया है|
- स्पष्ट है कि यदि इस संबंध में उचित तरीके से योजना बनाए बिना उन्हें लागू किया जाता है, तो इसप्रकार की वृद्धि प्राकृतिक वातावरण के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती पैदा कर सकती है|
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जो भविष्य विकासात्मक विक्षेपों पर आधारित होता है वह मानवता के पारिस्थितिक पदचिह्नों (humanity’s ecological footprint) को भी कम कर देता है|
- स्पष्ट है कि हमें नवीन प्रौद्योगिकी और टिकाऊ जीवन शैली को अपनाने के साथ-साथ इस ग्रह को भी संरक्षित करने की भी आवश्यकता है| वस्तुतः इसमें नागरिकों, व्यवसायियों और सरकार को एक - साथ मिलकर काम करना होगा|