जैव विविधता और पर्यावरण
E20 ईंधन
- 21 Dec 2020
- 9 min read
चर्चा में क्यों
हाल ही में भारत सरकार ने इथेनॉल जैसे हरित ईंधन को बढ़ावा देने के लिये E20 ईंधन को अपनाने के विषय में सार्वजनिक सुझाव आमंत्रित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- संरचना: E20 ईंधन, गैसोलीन और इथेनॉल (20%) का मिश्रण होता है।
- वर्तमान में इथेनॉल सम्मिश्रण का मान्य स्तर 10% है, यद्यपि भारत वर्ष 2019 में केवल 5.6% तक के स्तर पर ही पहुँच पाया।
- महत्त्व:
- इससे कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन आदि के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
- यह तेल आयात बिल को भी कम करने में मदद करेगा, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- वाहनों की अनुकूलता: वाहन की अनुकूलता हेतु इस मिश्रण में इथेनॉल के प्रतिशत को वाहन निर्माता द्वारा परिभाषित किया जाएगा तथा वाहन पर स्टिकर लगाकर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित भी किया जाएगा।
हरित ईंधन
- हरित ईंधन (Green Fuel) को जैव ईंधन (Biofuel) के रूप में भी जाना जाता है जो पौधों और जानवरों के द्रव्य से प्राप्त एक प्रकार का स्वच्छ (Distilled) ईंधन है। यह व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले जीवाश्म ईंधन की तुलना में पर्यावरण अनुकूल है।
हरित ईंधन के प्रकार
- बायो-एथेनॉल:
- इसको किण्वन प्रक्रिया का उपयोग करके मक्के और गन्ने से बनाया जाता है।
- एक लीटर पेट्रोल की तुलना में एक लीटर इथेनॉल में लगभग दो- तिहाई ऊर्जा होती है।
- पेट्रोल के साथ मिश्रित होने पर यह दहन निष्पादन में सुधार करके कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करता है।
- बायो-डीज़ल
- इसको वनस्पति तेलों जैसे- सोयाबीन, ताड़ या वनस्पति अपशिष्ट तेल और पशु वसा से प्राप्त किया जाता है, इसे "ट्रान्सएस्टरीफिकेशन" (Transesterification) कहा जाता है।
- यह डीज़ल की तुलना में बहुत कम हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करता है।
- बायो-गैस
- इसका निर्माण कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय अपघटन (Anaerobic Decomposition) जैसे- जानवरों और मनुष्यों के वाहित मल द्वारा होता है।
- बायोगैस में मुख्यतः मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड गैस होती है, हालाँकि इसमें बहुत कम अनुपात में हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड और साइलोक्सैन (Siloxane) गैस भी होती है।
- इसे आमतौर पर हीटिंग, बिजली और ऑटोमोबाइल के काम में उपयोग किया जाता है।
- बायो-ब्यूटेनॉल
- इसको भी बायोएथेनॉल की तरह स्टार्च के किण्वन से तैयार किया जाता है।
- अन्य गैसोलीन विकल्पों में से बुटेनॉल (Butanol) से ऊर्जा की प्राप्ति सबसे अधिक होती है। उत्सर्जन कम करने के लिये इसको डीज़ल के साथ मिलाया जा सकता है।
- इसको कपड़ा उद्योग में विलायक और इत्र उद्योग में आधार के रूप में उपयोग किया जाता है।
- बायोहाइड्रोजन
- जैव हाइड्रोजन, बायोगैस की तरह होता है। इसका उत्पादन विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे- पायरोलिसिस, गैसीकरण या जैविक किण्वन का उपयोग कर किया जा सकता है।
- यह जीवाश्म ईंधन के लिये सही विकल्प हो सकता है।
जैव ईंधन को बढ़ावा देने हेतु पहल:
- इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम: इस कार्यक्रम को खाद्यान्न जैसे- मक्का, ज्वार, बाजरा, फल, सब्जियों के कचरे आदि से ईंधन निकालने के लिये शुरू किया गया है।
- प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019: इस योजना का उद्देश्य वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना और 2G इथेनॉल क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है।
- गोबर धन योजना, 2018: यह खेतों में उपयोग हेतु ठोस कचरा और मवेशियों के गोबर को खाद, बायोगैस तथा बायो-CNG में परिवर्तित करने पर केंद्रित है। इस प्रकार गाँवों को साफ-सुथरा रखने और ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि करने में मदद मिलती है।
- इसे स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत लॉन्च किया गया था।
- खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा लॉन्च RUCO (Response Used Cooking Oil) पहल प्रयुक्त कुकिंग आयल को बायो-डीज़ल में संग्रहण और रूपांतरण करने में सक्षम होगी।
- जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018
- इस नीति द्वारा गन्ने का रस, चीनी युक्त सामग्री, स्टार्च युक्त सामग्री तथा क्षतिग्रस्त अनाज, जैसे- गेहूँ, टूटे चावल और सड़े हुए आलू का उपयोग करके एथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार किया गया है।
- नीति में जैव ईंधनों को ‘आधारभूत जैव ईंधनों’ यानी पहली पीढ़ी (1G) के बायोएथेनॉल और बायोडीज़ल तथा ‘विकसित जैव ईंधनों’ यानी दूसरी पीढ़ी (2G) के एथेनॉल तथा निगम के ठोस कचरे (MSW) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन को तीसरी पीढ़ी (3G) के जैव ईंधन, बायो सीएनजी आदि के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन को बढ़ाया जा सके।
- अतिरिक्त उत्पादन के चरण के दौरान किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलने का खतरा होता है। इसे ध्यान में रखते हुए इस नीति में राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंज़ूरी से एथेनॉल उत्पादन के लिये (पेट्रोल के साथ उसे मिलाने हेतु) अधिशेष अनाजों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
- जैव ईंधनों के लिये नीति में 2G एथेनॉल जैव रिफाइनरी को 1जी जैव ईंधनों की तुलना में अतिरिक्त कर प्रोत्साहन, उच्च खरीद मूल्य आदि के अलावा 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपए की निधियन योजना हेतु वायबिलिटी गैप फंडिंग का संकेत दिया गया है।
आगे की राह
- एक बड़ी कृषि अर्थव्यवस्था बनने हेतु भारत के पास बड़ी मात्रा में कृषि अवशेष उपलब्ध हैं, इसलिये देश में जैव ईंधन के उत्पादन की गुंजाइश बहुत अधिक है। जैव ईंधन नई नकदी फसलों के रूप में ग्रामीण और कृषि विकास में मदद कर सकता है।
- शहरों में उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट और नगरपालिका कचरे का उपयोग सुनिश्चित कर स्थायी जैव ईंधन उत्पादन के प्रयास किये जाने चाहिये। एक अच्छी तरह से डिज़ाइन और कार्यान्वित जैव ईंधन नीति भोजन और ऊर्जा दोनों प्रदान कर सकती है।
- एक समुदाय आधारित बायोडीज़ल वितरण कार्यक्रम जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को लाभ पहुँचाता है, फीडस्टॉक को विकसित करने वाले किसानों से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक ईंधन का उत्पादन और वितरण करने वाला एक स्वागत योग्य कदम होगा।