जैव विविधता और पर्यावरण
ई-कचरा और भारत
- 04 Jul 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लियेई-कचरा, संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय मेन्स के लियेस्वास्थ्य और पर्यावरण पर ई-कचरे का प्रभाव और भारत में इसका पुनर्नवीनीकरण |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University-UNU) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 और वर्ष 2030 की अवधि में वैश्विक ई-कचरे (E-Waste) में तकरीबन 38 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होगी।
प्रमुख बिंदु:
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में एशिया में ई-कचरे की सर्वाधिक मात्रा (लगभग 24.9 मीट्रिक टन) उत्पन्न हुई, जिसके पश्चात् अमेरिका (13.1 मीट्रिक टन) और यूरोप (12 मीट्रिक टन) का स्थान है।
- इस अवधि के दौरान अफ्रीका (Africa) और ओशिनिया (Oceania) में क्रमशः 2.9 मीट्रिक टन और 0.7 मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ।
- रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019 में अधिकांश ई-कचरे में छोटे उपकरण (लगभग 17.4 मीट्रिक टन), बड़े उपकरण (13.1 मीट्रिक टन) और तापमान विनिमय उपकरण (10.8 मीट्रिक टन) शामिल थे।
- संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) की रिपोर्ट के अनुसार, कुल ई-कचरे में स्क्रीन और मॉनिटर (6.7 मीट्रिक टन), लैंप (4.7 मीट्रिक टन), IT और दूरसंचार उपकरण (0.9 मीट्रिक टन) शामिल थे।
- वर्ष 2019 में उत्पन्न कुल ई-कचरे के 18 प्रतिशत से भी कम हिस्से का पुनर्नवीनीकरण (Recycled) किया जा सका था।
- इसका अर्थ है कि सोना, चाँदी, तांबा, प्लेटिनम और अन्य उच्च-मूल्य वाली सामग्री को अधिकांशतः जला दिया गया, जबकि इसे एकत्र कर इसका पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता था।
- रिपोर्ट के अनुसार, यदि इस सामग्री का पुनर्नवीनीकरण किया जाता तो इससे कम-से-कम 57 बिलियन डॉलर प्राप्त किये जा सकते थे।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अब वैश्विक स्तर पर उन देशों की संख्या 61 से बढ़कर 78 हो गई है जिन्होंने ई-कचरे से संबंधित कोई नीति, कानून या विनियमन अपनाया है।
- ध्यातव्य है कि इसमें भारत भी शामिल है।
ई-कचरे का अर्थ?
- कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन एवं फ्रिज जैसे घरेलू उपकरण और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
- देश में जैसे-जैसे डिजिटाइज़ेशन (Digitisation) बढ़ रहा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ रहा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
- ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।
- चीन में प्रतिवर्ष लगभग 61 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और अमेरिका में लगभग 72 लाख टन तथा पूरी दुनिया में कुल 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है।
ई-कचरा और स्वास्थ्य
- ई-कचरे में मरकरी (Mercury), कैडमियम (Cadmium) और क्रोमियम (Chromium) जैसे कई विषैले तत्त्व शामिल होते हैं, जिनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
- लैंडफिल में ई-वेस्ट, मिट्टी और भूजल को दूषित करता है, जिससे खाद्य आपूर्ति प्रणालियों और जल स्रोतों में प्रदूषकों का जोखिम बढ़ जाता है।
भारत में ई-कचरा और उसका पुनर्नवीनीकरण
- ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2017 के अनुसार, भारत प्रतिवर्ष लगभग 2 मिलियन टन ई-कचरे का उत्पन्न करता है तथा अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में यह 5वें स्थान पर है।
- हालाँकि सरकार द्वारा उपलब्ध किये गए आँकड़े बताते हैं कि भारत में उत्पादित ई-कचरा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अनुमान से काफी कम है।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत में ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण करने वाली कुल 312 अधिकृत कंपनियाँ हैं, जो कि प्रतिवर्ष 800 किलो टन ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण कर सकती हैं।
- हालाँकि अभी भी भारत में औपचारिक क्षेत्र की पुनर्चक्रण क्षमता का सही उपयोग संभव नहीं हो पाया है, क्योंकि ई-कचरे का बड़ा हिस्सा अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, देश का लगभग 90 प्रतिशत ई-कचरे का पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक क्षेत्र में किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU)
- संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (United Nations University-UNU) एक वैश्विक थिंक टैंक और स्नातकोत्तर (Postgraduate) शिक्षण संगठन है जिसका मुख्यालय जापान में स्थित है।
- यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की अकादमिक और अनुसंधान शाखा है।
- संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) का उद्देश्य सहयोगात्मक अनुसंधान और शिक्षा के माध्यम से मानव विकास तथा कल्याण से संबंधित वैश्विक समस्याओं को हल करना है।