भूगोल
ड्वोरक तकनीक
- 23 Sep 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:मौसम पूर्वानुमान की ड्वोरक तकनीक, बादल पैटर्न पहचान तकनीक, मौसम विज्ञान। मेन्स के लिये:ड्वोरक तकनीक और इसकी प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी मौसम वैज्ञानिक वेरनौन ड्वोरक का निधन हो गया, जिनके नाम पर मौसम की भविष्यवाणी करने के लिये ड्वोरक तकनीक का नाम रखा गया था।
- ड्वोरक एक अमेरिकी मौसम वैज्ञानिक थे जिन्हें 1970 के दशक की शुरुआत में ड्वोरक (जिसे दो-रक के रूप में पढ़ा गया) तकनीक विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।
ड्वोरक तकनीक:
- ड्वोरक तकनीक उष्णकटिबंधीय चक्रवात के विकास और क्षय के एक अवधारणा मॉडल पर आधारित बादल पैटर्न पहचान तकनीक (क्लाउड पैटर्न रिकग्निशन तकनीक-CPRT) है।
- इसे पहली बार 1969 में विकसित किया गया था और उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में तूफानों को देखने के लिये इसका परीक्षण किया गया था।
- इस पद्धति में, ध्रुवीय परिक्रमा करने वाले उपग्रहों से प्राप्त उपलब्ध उपग्रह छवियों का उपयोग आगे बढ़ रहे उष्णकटिबंधीय तूफानों (तूफानों, चक्रवातों और आँधियों) की विशेषताओं की जाँच के लिये किया जाता है।
- दिन के समय, दृश्य स्पेक्ट्रम में छवियों का उपयोग किया जाता है, जबकि रात में, समुद्र को अवरक्त छवियों का उपयोग करके देखा जाता है।
- उपग्रह से प्राप्त छवियों के अनुसार, यह तकनीक पूर्वानुमानकर्त्ताओं को तूफान की देखी गई संरचना से एक प्रतिरूप की पहचान करने, उसके केंद्र का पता लगाने और तूफान की तीव्रता का अनुमान लगाने में मदद करती है।
- हालांकि यह किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी करने, हवा या दबाव या चक्रवात से जुड़े किसी भी अन्य मौसम संबंधी मापदंडों को मापने में मदद नहीं कर सकती है, यह तूफान की उग्रता एवं संभावित तीव्रता का अनुमान लगाने का एक जरिया है, जो स्थानीय प्रशासन के लिये तटीय या अन्य आस-पास रहने वालों के लिये निकासी उपायों की योजना बनाने में महत्त्वपूर्ण है।
प्रासंगिकता:
- यहाँ तक कि भूमि-आधारित मौसम संबंधी अवलोकनों के एक बेहतर नेटवर्क होने के बावजूद महासागर का अवलोकन अभी भी सीमित है।
- चार महासागरों में ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनकी पूरी तरह से मौसम संबंधी उपकरणों से जाँच नहीं की गई है।
- महासागर अवलोकन ज़्यादातर प्लव या समर्पित जहाज़ो को तैनात करके किये जाते हैं, लेकिन समुद्र से प्राप्त अवलोकनों की संख्या अभी भी पर्याप्त नहीं है।
- यही कारण है कि मौसम वैज्ञानिकों को उपग्रह-आधारित छवियों पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है, और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता एवं हवा की गति का पूर्वानुमान लगाने के समय इसे उपलब्ध महासागर-डेटा के साथ मिलाना पड़ता है।
- ड्वोरक तकनीक की स्थापना के बाद से इसमें कई बदलाव हुए हैं। वर्तमान समय में भी जब पूर्वानुमानकर्त्ताओं के पास मॉडल मार्गदर्शन, एनिमेशन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और उपग्रह प्रौद्योगिकी जैसे कई अत्याधुनिक उपकरणों तक पहुँच है, मूलतः यह ड्वोरक तकनीक का उन्नत संस्करण है जिसका व्यापक रूप से आज उपयोग किया जा रहा है। .
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C)
अतः विकल्प (C) सही उत्तर है। प्रश्न. उष्णकटिबंधीय अक्षांशों में दक्षिण अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात की उत्पत्ति नहीं होती है। क्या कारण है? (2015) (a) समुद्र की सतह का तापमान कम है उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न. भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा चक्रवात संभावित क्षेत्रों के लिये कलर-कोडित मौसम चेतावनियों के अर्थ पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |