थाईलैंड में सूखा | 21 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:NASA, Soil Moisture Active Passive Mission मेन्स के लिये:सूखे से संबंधित मुद्दे, जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
15 फरवरी, 2020 को यूनाइटेड स्टेट्स नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) के अर्थ ऑब्ज़र्वेटरी द्वारा जारी एक मानचित्र में दक्षिण-पूर्व एशिया के बड़े हिस्से में सतह की मिट्टी की नमी सामान्य से कम देखी गई तथा थाईलैंड इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- नासा का सॉइल मॉइस्चर एक्टिव पैसिव (Soil Moisture Active Passive- SMAP) मिशन मिट्टी में पानी की मात्रा को मापता है और ज़मीन के नीचे पाँच सेंटीमीटर के क्षेत्र में पानी का पता लगा सकता है। ध्यातव्य है कि इसी की सहायता से दक्षिण-पूर्व एशिया में मिट्टी में नमी की मात्रा का आकलन किया गया है।
सूखे का कारण
- मानसून का सामान्य से कम होना, सामान्य से कम वर्षा और अल-नीनो की स्थिति तथा असामान्य रूप से उच्च तापमान आदि कारक थाईलैंड को पिछले 40 से अधिक वर्षों में सबसे खराब सूखे की ओर धकेल रहे हैं।
- मेकांग नदी आयोग के अनुसार, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम सहित निचले मेकांग बेसिन के सभी देश मानसून में देरी और कमी से प्रभावित हैं।
- एक अल-नीनो घटना के कारण इस क्षेत्र के उच्च तापमान और उच्च वाष्पीकरण की समस्या में वृद्धि हुई है।
सूखे का प्रभाव
- सूखे के कारण दक्षिण-पूर्व एशियाई देश के प्रमुख जलाशय सूखने की कगार पर हैं।
- नदियों का जल स्तर इतना कम हो गया है कि उनमें समुद्र का खारा पानी प्रवेश कर गया है जिसके कारण पेयजल आपूर्ति प्रभावित हुई है। ध्यातव्य है कि निचले इलाके खारे पानी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
- सूखे से थाईलैंड की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा है। ध्यातव्य है कि थाईलैंड में कृषि क्षेत्र 11 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्राप्त होता है।
- दुनिया के प्रमुख चीनी निर्यातकों में से एक इस देश में पिछले वर्षों की तुलना में 30 प्रतिशत कम चीनी उत्पादन का अनुमान है।
- अन्य लोअर मेकांग बेसिन के देश भी खराब स्थिति में हैं। दक्षिण-पश्चिम वियतनाम के मेकांग डेल्टा में पिछले मानसून की अपेक्षा इस वर्ष के मानसून से लगभग 8 प्रतिशत कम वर्षा हुई है।
सूखे से निपटने से संबंधित उपाय
- सूखे से निपटने के लिये सर्वप्रथम उपलब्ध जल का दोहन एवं संरक्षण बड़ी ही सावधानी से किया जाना चाहिये।
- वर्षा जल संग्रहण जैसी तकनीक का प्रयोग भी सूखे की समस्या से कुछ हद तक राहत दे सकता है।
- इसके अतिरिक्त सूखे के प्रभावों को कम करने हेतु ऐसी फसलों के उत्पादन को वरीयता दी जानी चाहिये जिनमें पानी की कम आवश्यकता पड़ती हो, साथ ही तकनीक के प्रयोग से जल के पुनर्चक्रण पर बल दिया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त पड़ोसी देशों के सहयोग से इस समस्या से निपटने हेतु रणनीति बनाई जानी चाहिये। साथ ही देश में जल संरक्षण के संबंध में लोगों को जागरूक करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त क्लाउड सीडिंग भी एक महत्त्वपूर्ण उपाय है जिसमें वर्षा को प्रेरित करने के लिये कृत्रिम रूप से मौसम में परिवर्तन किया जाता है। साथ ही तकनीक के उपयोग से खारे समुद्री जल को सामान्य जल में परिवर्तित कर कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में उपयोग करना चाहिये।
सूखा:
सूखा एक असामान्य व लंबा शुष्क मौसम होता है जो किसी क्षेत्र विशेष में स्पष्ट जलीय असंतुलन पैदा करता है। सूखे के लिये मानसून की अनिश्चितता के अतिरिक्त कृषि का अवैज्ञानिक प्रबंधन भी उत्तरदायी कारक हो सकता है। ‘सूखे’ की तीन स्थितियाँ होती हैं-
(i) मौसमी सूखाः किसी बड़े क्षेत्र में अपेक्षा से 75% कम वर्षा होने पर उत्पन्न स्थिति।
(ii) जलीय सूखाः जब ‘मौसमी सूखे’ की अवधि अधिक लंबी हो जाती है तो नदियों, तालाबों, झीलों जैसे- जल क्षेत्रों के सूखने से यह स्थिति उत्पन्न होती है।
(iii) कृषिगत सूखाः इस स्थिति में फसल के लिये अपेक्षित वर्षा से काफी कम वर्षा होने पर मिट्टी की नमी फसल विकास के लिये अपर्याप्त होती है।
आगे की राह
- गौरतलब है कि पानी की कमी वर्तमान समय की सबसे बड़ी वैश्विक समस्या है तथा यह भी माना जाता है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिये ही लड़ा जाएगा इसलिये वैश्विक स्तर पर जल संरक्षण से संबंधित समावेशी प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
- ध्यातव्य है कि वैश्विक तापन में वृद्धि इन सभी समस्याओं का प्रमुख कारण है, इसलिये वैश्विक तापन को कम करने के लिये प्रतिबद्ध पेरिस जलवायु समझौते में निहित शर्तों एवं सुझावों को देशों द्वारा अपनी नीतियों एवं रणनीतियों में अपनाने की आवश्यकता है।