कॉफी उत्पादन में गिरावट | 25 Nov 2021
प्रिलिम्स के लिये:अरेबिका कॉफी, कॉफी, जैव विविधता हॉटस्पॉट, पश्चिमी घाट मेन्स के लिये:भारत में कॉफी उत्पादन में गिरावट के कारण एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
प्लांटर्स समुदाय द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, जनवरी में समाप्त होने वाले इस फसल सीज़न में भारत के अरेबिका कॉफी उत्पादन में 30% और रोबस्टा में 20% की गिरावट आएगी।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान चुनौतियाँ:
- अत्यधिक वर्षण:
- अत्यधिक वर्षा, पौधों की क्षति, फलियों के फटने और बेरी गिरने के कारण कॉफी का उत्पादन गिर जाएगा।
- भारत में कॉफी उत्पादक क्षेत्रों में बंगाल की खाड़ी में दबाव और कम दबाव वाले क्षेत्रों के कारण विस्तारित वर्षा देखी जा रही है।
- वर्तमान में अरेबिका की कटाई चल रही है और वर्षा के दौरान फली को सुखाना और इसे यार्ड में फैलाना चुनौतीपूर्ण है।
- अत्यधिक वर्षा, पौधों की क्षति, फलियों के फटने और बेरी गिरने के कारण कॉफी का उत्पादन गिर जाएगा।
- कॉफी उत्पादन की लागत:
- उर्वरकों और श्रम लागतों सहित उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण उत्पादकों को कम लाभ मिलने तथा उत्पादन में निवेश धीमा होने की संभावना है।
- अत्यधिक वर्षण:
कॉफी:
- इतिहास:
- कॉफी को भारत में सत्रहवीं शताब्दी के अंत में पेश किया गया था।
- कहानी यह है कि मक्का गया एक भारतीय तीर्थयात्री वर्ष 1670 में यमन से सात फलियों को तस्करी कर भारत लाया (उस समय अरब से कॉफी के बीज लाना अवैध माना जाता था) और उसने उन्हें कर्नाटक की चंद्रगिरी पहाड़ियों में लगाया।
- डचों (जिन्होंने 17वीं शताब्दी के दौरान भारत के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया) ने पूरे देश में कॉफी की खेती को फैलाने में मदद की, लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश राज के आगमन के साथ ही वाणिज्यिक कॉफी की खेती पूरी तरह से फली-फूली।
- परिचय:
- भारत में कॉफी पश्चिमी और पूर्वी घाटों के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में घने प्राकृतिक वृष्टि छाया क्षेत्र में उगाई जाती है।
- यह दुनिया के 25 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है।
- कॉफी मुख्य रूप से एक निर्यात उन्मुख वस्तु है और देश में उत्पादित 65% से 70% कॉफी का निर्यात किया जाता है, जबकि शेष की खपत देश में होती है।
- कॉफी क्षेत्र की अनूठी जैव विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है और दूरस्थ, पहाड़ी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये भी ज़िम्मेदार है।
- भारत में कॉफी पश्चिमी और पूर्वी घाटों के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में घने प्राकृतिक वृष्टि छाया क्षेत्र में उगाई जाती है।
- आवश्यक जलवायु परिस्थितियाँ:
- कॉफी के पौधों के लिये ऊष्ण और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें तापमान 15 डिग्री सेल्सियस और 28 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है तथा 150 से 250 सेमी. तक वर्षा होती है।
- तुषार/पाला (Frost), हिमपात, 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर उच्च तापमान और तेज धूप कॉफी फसल के लिये अनुकूल नहीं होती है तथा आमतौर पर यह छायादार पेड़ों के नीचे उगाई जाती है।
- बेरी के पकने के समय शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
- इसके लिये स्थिर जल हानिकारक होता है और समुद्र तल से 600 से 1600 मीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी ढलानों पर फसल उगाई जाती है।
- बेहतर जल निकास प्रणाली, दोमट मिट्टी, जिसमें भरपूर मात्रा में ह्यूमस, आयरन और कैल्शियम जैसे खनिज पदार्थ होते हैं, कॉफी की खेती के लिये आदर्श हैं।
- कॉफी उत्पादन के लिये मृदा:
- कॉफी कई प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है लेकिन इसके लिये उपजाऊ ज्वालामुखीय लाल मिट्टी या गहरी रेतीली दोमट मिट्टी आदर्श मानी जाती है।
- कॉफी के पेड़ों के विकास के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि मिट्टी उचित जल निकासी वाली हो जबकि अधिक चिकनी मिट्टी या रेतीली मिट्टी इसके लिये उपयुक्त नहीं है।
- प्रमुख क्षेत्र:
- भारत में कॉफी की पारंपरिक खेती पश्चिमी घाट के कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में की जाती है।
- कर्नाटक कुल कॉफी उत्पादन के लगभग 70% के साथ सबसे बड़ा उत्पादक है।
- कॉफी की खेती आंध्र प्रदेश और ओडिशा के गैर-पारंपरिक क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तर-पूर्व राज्यों में भी तेज़ी से बढ़ रही है।
- भारत में कॉफी की पारंपरिक खेती पश्चिमी घाट के कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में की जाती है।
- मुख्य किस्में: भारत में कॉफी की अरेबिका और रोबस्टा किस्मों की खेती की जाती हैं।
- अरेबिका हल्की कॉफी है, लेकिन इसकी फलियाँ अधिक सुगंधित होने के कारण रोबस्टा फलियों की तुलना में इसका बाजार मूल्य अधिक है। दूसरी ओर रोबस्टा में अधिक तेज़ होती है और इसलिये विभिन्न मिश्रणों में इसका उपयोग किया जाता है।
- अरेबिका की खेती रोबस्टा की तुलना में अधिक ऊँचाई पर की जाती है।
- अरेबिका को अधिक देखभाल और पोषण की आवश्यकता होती है तथा यह बड़ी जोत के लिये अधिक उपयुक्त है, जबकि रोबस्टा की खेती किसी भी आकार के जोत में की जा सकती है।
- अरेबिका कीटों और रोगों जैसे- श्वेत तनाछेदक (White Stem Borer), लीफ रस्ट/पत्ती रतुआ आदि के लिये अतिसंवेदनशील है और रोबस्टा की तुलना में इसके लिये अधिक छाया की आवश्यकता होती है।
- अरेबिका की फसल की कटाई नवंबर से जनवरी के बीच होती है, जबकि रोबस्टा के फसल की कटाई दिसंबर से फरवरी के बीच होती है।
- अरेबिका हल्की कॉफी है, लेकिन इसकी फलियाँ अधिक सुगंधित होने के कारण रोबस्टा फलियों की तुलना में इसका बाजार मूल्य अधिक है। दूसरी ओर रोबस्टा में अधिक तेज़ होती है और इसलिये विभिन्न मिश्रणों में इसका उपयोग किया जाता है।