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सामाजिक न्याय

उच्च शिक्षा नीति में पुनर्गठन का प्रस्ताव

  • 01 Jun 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति के पुनर्गठन हेतु मसौदा नीति प्रस्तुत की है।

प्रमुख बिंदु

    • यह मसौदा नीति वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार की गई है। इसके तहत शिक्षा के अधिकार अधिनियम (Right To Education- RTE Act) के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है, साथ ही स्नातक पाठ्यक्रमों को भी संशोधित किया गया है।
    • इस मसौदा नीति में लिबरल आर्ट्स साइंस एजुकेशन (Liberal Arts Science Education- LASE) के चार वर्षीय कार्यक्रम को फिर से शुरू करने तथा कई कार्यक्रमों के हटाने के विकल्प (exit options) के साथ-साथ एम. फिल. प्रोग्राम को रद्द करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
    • इस मसौदा नीति के अनुसार, पी.एच.डी. करने के लिये या तो मास्टर डिग्री या चार साल की स्नातक डिग्री को अनिवार्य किया गया है।
    • नए पाठ्यक्रम में 3 से 18 वर्ष तक के बच्चों को कवर करने के लिये 5+3+3+4 डिज़ाइन (आयु वर्ग 3-8 वर्ष, 8-11 वर्ष, 11-14 वर्ष और 14-18 वर्ष) तैयार किया गया है जिसमें प्रारंभिक शिक्षा से लेकर स्कूली पाठ्यक्रम तक शिक्षण शास्त्र के पुनर्गठन के भाग के रूप में समावेशन के लिये नीति तैयार की गई है।
  • उल्लेखनीय है की नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने का एनडीए सरकार का यह दूसरा प्रयास है।
  • पहली बार TSR सुब्रमण्यम के नेतृत्व में एक समिति गठित की गई थी जिसने वर्ष 2016 में रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
  • यह मसौदा नीति धारा 12 (1) (सी) (निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के छात्रों के लिये अनिवार्य 25 प्रतिशत आरक्षण का दुरुपयोग किया जाना) की भी समीक्षा करती है, जो सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है।

रिपोर्ट की अन्य प्रमुख सिफारिशें

  • विदेशों में भारतीय संस्थानों की संख्या में वृद्धि करने के साथ-साथ दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों को भारत में अपनी शाखाएँ स्थापित करने की अनुमति देना। इसका मुख्य उद्देश्य उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है।
  • स्कूली शिक्षा के लिये एक एकल स्वतंत्र नियामक ‘राज्य विद्यालय नियामक प्राधिकरण’ (State School Regulatory Authority- SSRA) और उच्च शिक्षा के लिये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण (National Higher Education Regulatory Authority) स्थापित किया जाएगा।
  • निजी स्कूल अपनी फीस निर्धारित करने के लिये स्वतंत्र हैं, लेकिन वे मनमाने तरीके से स्कूल की फीस में वृद्धि नहीं करेंगे। ‘राज्य विद्यालय नियामक प्राधिकरण’ द्वारा प्रत्येक तीन साल की अवधि के लिये इसका निर्धारण किया जाएगा।
  • प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक नए शीर्ष निकाय ‘राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ की स्थापना की जाएगी जो सतत् आधार पर शिक्षा के विकास, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और शिक्षा के उपयुक्त दृष्टिकोण को लागू करने के लिये उत्तरदायी होगा।
  • स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल होने के लिये गणित, खगोल विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा के लिये प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों के योगदान को सुनिश्चित किया जाएगा।
  • सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को तीन श्रेणियों में पुनर्गठित किया गया है-
  • टाइप 1: विश्व स्तरीय अनुसंधान और उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • टाइप 2: अनुसंधान में महत्त्वपूर्ण योगदान के साथ विषयों में उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • टाइप 3: उच्च गुणवत्ता वाला शिक्षण स्नातक शिक्षा पर केंद्रित है।
  • इसका संचालन दो मिशनों के तहत किया जाएगा - मिशन नालंदा और मिशन तक्षशिला।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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