सूचना प्रौद्योगिकी नियमों का मसौदा जारी | 26 Dec 2018
चर्चा में क्यों?
सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) अधिनियम के प्रस्तावित संशोधनों जो व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफार्मों पर ‘गैरकानूनी’ जानकारी उपलब्ध कराने वाले ‘प्रवर्तक’ का पता लगाने और ऐसी सूचनाएँ अधिसूचित होने के 24 घंटे बाद इस तरह की सामग्री को हटाना अनिवार्य करते हैं, का मसौदा जारी किया है।
- उल्लेखनीय है कि फेक न्यूज/व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया साइटों के जरिये फैलाई गई अफवाहों के कारण 2018 में मॉब लिंचिंग की अनेक घटनाएँ हुईं।
- यह मसौदा सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद आया है जिसमें सरकार को गूगल, फेसबुक, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया मंचों के जरिये चाइल्ड पोर्नोग्राफी, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार जैसे यौन दुर्व्यवहार संबंधी ऑनलाइन सामग्री के प्रकाशन और इनके प्रसार से निपटने के लिये दिशा-निर्देश या मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure-SOP) तैयार करने के लिये मंज़ूरी दी गई थी।
सूचना प्रौद्योगिकी कानून
- सूचना प्रौद्योगिकी कानून (आईटी कानून), 2000 को इलेक्ट्रोनिक लेन-देन को प्रोत्साहित करने, ई-कॉमर्स और ई-ट्रांजेक्शन के लिये कानूनी मान्यता प्रदान करने, ई-शासन को बढ़ावा देने, कंप्यूटर आधारित अपराधों को रोकने तथा सुरक्षा संबंधी कार्य प्रणाली और प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करने के लिये अमल में लाया गया था।
- यह कानून 17 अक्तूबर, 2000 को लागू किया गया।
- सूचना प्रौद्योगिकी कानून के अनुच्छेद 79 में कुछ मामलों में मध्यवर्ती संस्थाओं को देनदारी से छूट के बारे में विस्तार से बताया गया है। अनुच्छेद 79(2)(c) में जिक्र किया गया है कि मध्यवर्ती संस्थाओं को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए उचित तत्परता बरतनी चाहिये और साथ ही केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अन्य दिशा-निर्देशों का भी पालन करना चाहिये। तद्नुसार सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश) नियम, 2011 को अप्रैल-2011 में अधिसूचित किया गया।
2011 के नियमों के स्थान पर नए नियम
- सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 2011 में अधिसूचित नियमों के स्थान पर सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश) नियम, 2018 का मसौदा तैयार किया। जिस पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही है।
- विभिन्न मंत्रालयों के बीच और उसके बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म/फेसबुक, गूगल, ट्विटर, याहू, वॉट्सएप और मध्यवर्ती संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य एसोसिएशनों जैसे इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI), सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (ISPAI) जैसे प्लेटफॉर्मों सहित अन्य साझेदारों के साथ विचार-विमर्श के बाद जनता से सुझाव आमंत्रित करने हेतु मसौदा जारी किया गया है।
सूचना प्रौद्योगिकी [मध्यवर्ती संस्थानों के लिये (संशोधन) दिशा-निर्देश] नियम, 2018 के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान
केंद्र द्वारा तैयार किये SOP मसौदे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से गैरकानूनी सामग्री को हटाने के लिये निम्नलिखित प्रावधान हैं-
- सामग्री को हटाने के लिये सक्रिय निगरानी उपकरण स्थापित करना।
- गैरकानूनी सामग्री की पहचान कर उसको हटाने के लिये विश्वसनीय फ़्लैगर्स (flaggers) की तैनाती।
- कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता के लिये 24X7 तंत्र स्थापित करना।
- पूरे भारत में संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति करना।
- प्लेटफॉर्म पर गैरकानूनी सामग्री उपलब्ध कराने वाले को ट्रेस करने की सुविधा।
- साइबर सुरक्षा से संबंधी घटनाओं को भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम के साथ दर्ज करना।
- किसी भी सरकारी एजेंसी द्वारा मांगी गई जानकारी को 72 घंटे के भीतर उपलब्ध कराना।
संविधान के तहत नागरिकों को प्राप्त है बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- सरकार भारत के संविधान में प्रदत्त अपने नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति तथा निजता की आज़ादी देने के लिये प्रतिबद्ध है। इसलिये सरकार अभी तक सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित होने वाली सामग्री को नियंत्रित नहीं करती।
- हालाँकि सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 में अधिसूचित नियम के अनुसार, सोशल नेटवर्क प्लेटफार्म को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उनके मंच का इस्तेमाल आतंकवाद, उग्रवाद, हिंसा और अपराध के लिये नहीं किया जाता है।
सोशल मीडिया का दुरुपयोग एक बड़ी चुनौती
- अपराधियों और राष्ट्र विरोधी तत्त्वों द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग के मामलों ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।
- सोशल मीडिया के दुरुपयोग में आतंकवादियों की भर्ती के लिये प्रलोभन, अश्लील सामग्री का प्रसार, वैमनस्य फैलाना, हिंसा भड़काना, फेक न्यूज़ आदि शामिल हैं।