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‘डबल-डिप’ ला नीना

  • 21 Oct 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अल नीनो-दक्षिणी दोलन, अल नीनो, ला नीना

मेन्स के लिये:

‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ के विभिन्न चरण और उसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (अमेरिकी वैज्ञानिक एजेंसी) ने घोषणा की है कि ‘ला नीना’ पुनः विकसित हो रहा है। लगातार ‘ला नीना’ की घटना को ‘डबल-डिप’ (Double-Dip) कहा जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • ‘ला नीना’, ‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ (ENSO) चक्र का एक हिस्सा है, जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्री और वायुमंडलीय परिस्थितियों के गर्म एवं  ठंडे चरणों की विपरीत अवस्थाओं को प्रदर्शित करता है।
    • ENSO-तटस्थ स्थितियों के माध्यम से ट्रांज़ीशन के बाद लगातार ‘ला नीना’ असामान्य घटना नहीं है और इसे प्रायः ‘डबल-डिप’ के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।
      • वर्ष 2020 में ला नीना अगस्त महीने के दौरान विकसित हुअ और फिर अप्रैल 2021 में ENSO-तटस्थ स्थितियों में वापस आने के बाद समाप्त हो गया।
      • आगामी सर्दियों के मौसम (दिसंबर 2021 से फरवरी 2022) में ‘ला नीना’ के विकसित होने की संभावना तकरीबन 87% है।
    • इससे पूर्व ‘ला नीना’ को वर्ष 2020-2021 और वर्ष 2017-2018 की सर्दियों के दौरान देखा गया  था, वहीं ‘अल नीनो’ वर्ष 2018-2019 में विकसित हुआ था। 
  • अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO):
    • ‘अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ समुद्र की सतह के तापमान (अल नीनो) और भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर के वातावरण (दक्षिणी दोलन) के वायु दाब में एक आवधिक उतार-चढ़ाव है।
    • अल नीनो और ला नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में बदलाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले जटिल मौसम पैटर्न हैं। वे ENSO चक्र के विपरीत चरण हैं।
    • अल नीनो और ला नीना घटनाएँ आमतौर पर 9 से 12 महीने तक चलती हैं, लेकिन कुछ लंबी घटनाएँ वर्षों तक जारी रह सकती हैं।

El-Nina-La-Nina

अल नीनो और ला नीना

तुलना का आधार

अल नीनो

ला नीना

परिचय

  • ‘अल नीनो’ का मतलब स्पेनिश में ‘लिटिल बॉय’ या ‘क्राइस्ट चाइल्ड’ होता है। अल नीनो घटना के दौरान दक्षिण अमेरिका के तट (इक्वाडोर और पेरू के पास) से मध्य उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र तक समुद्र का तापमान औसत से अधिक होता है।
  • ‘ला नीना’ का मतलब स्पेनिश में ‘लिटिल गर्ल’ है। ला नीना घटना के दौरान दक्षिण अमेरिका के तट से लेकर मध्य उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर तक समुद्र जल का तापमान औसत तापमान से कम हो जाता है।

घटना

  • तापमान में यह वृद्धि प्रायः ‘ट्रेड विंड’ (भूमध्य रेखा के आसपास बहने वाली स्थायी पूर्व से पश्चिम की ओर चलते वाली प्रचलित हवाएँ) के कमज़ोर होने अथवा उल्टा बहने के कारण होती है, जब गर्म पानी पश्चिमी प्रशांत महासागर से पूर्व की ओर बहने लगता है। 
  • यह घटना ‘ट्रेड विंड’ के अधिक मज़बूत होने के कारण होती है, जिस वजह से प्रायः गहरे समुद्र का ठंडा पानी ‘अपवेलिंग’ के कारण सतह पर आ जाता है। 

प्रभाव 

  • वॉकर सर्कुलेशन पर: पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में असामान्य रूप से गर्म पानी वॉकर सर्कुलेशन (भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में वायु प्रवाह की एक वायुमंडलीय प्रणाली) को प्रभावित करता है और इस क्षेत्र में बादल, वर्षा तथा  गरज की घटना हेतु एक केंद्रबिंदु के रूप में कार्य करता है। ‘वॉकर सर्कुलेशन’ में यह बदलाव दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करता है।
  • प्रशांत जेट स्ट्रीम पर: गर्म पानी के कारण प्रशांत जेट स्ट्रीम अपनी तटस्थ स्थिति के दक्षिण की ओर बढ़ जाती है। इस बदलाव के साथ, उत्तरी अमेरिका और कनाडा के क्षेत्र सामान्य से अधिक शुष्क एवं गर्म हो जाते हैं। लेकिन अमेरिका के खाड़ी तट और दक्षिणपूर्व में यह अवधि सामान्य से अधिक नम होती है तथा इस दौरान बाढ़ की घटनाओं में भी वृद्धि होती है।
  • समुद्री जीवन पर: प्रशांत तट पर अल नीनो का दूर समुद्री जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। अल नीनो के दौरान ‘अपवेलिंग’ की प्रक्रिया कमज़ोर पड़ जाती है अथवा पूर्णतः रुक जाती है।‘अपवेलिंग’ का आशय ठंडे और पोषक तत्त्वों से भरपूर पानी के समुद्र की गहराई से सतह तक ले जाने की प्रक्रिया से है।
    • पोषक तत्त्वों के अभाव में समुद्र तट के पास फाइटोप्लांकटन कम हो जाता है। यह स्थिति उन मछलियों को प्रभावित करती है, जो फाइटोप्लांकटन का सेवन करती है, परिणामस्वरूप यह मछालियों पर निर्भर सभी गतिविधियों को प्रभावित करता है।
  • हिंद महासागर पर: अल नीनो भारत में सामान्य से कम मानसूनी वर्षा से जुड़ा हुआ है।
  • वॉकर सर्कुलेशन पर: पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में असामान्य रूप से ठंडा पानी वॉकर सर्कुलेशन को प्रभावित करता है और बादल, बारिश तथा आंधी को कम कर देता है। यह परिवर्तन दुनिया भर में मौसम के मिजाज़ को प्रभावित करता है, हालाँकि यह अल नीनो से अलग है।
  • प्रशांत जेट स्ट्रीम पर: प्रशांत क्षेत्र में यह ठंडा पानी जेट स्ट्रीम को उत्तर की ओर धकेल देता है। इससे दक्षिणी अमेरिका में सूखा पड़ता है और प्रशांत उत्तर-पश्चिमी व कनाडा में भारी बारिश और बाढ़ आती है। यह अधिक गंभीर तूफान के मौसम को भी जन्म दे सकता है।
  • समुद्री जीवन पर: अमेरिका के पश्चिमी तट पर ठंडा और पोषक तत्त्वों से भरपूर पानी सतह पर आ जाता है।
  • हिंद महासागर पर: इससे पश्चिमी प्रशांत, हिंद महासागर और सोमालियाई तट के पास तापमान में वृद्धि होती है। इससे ऑस्ट्रेलिया में भारी बाढ़ आती है और भारत में तुलनात्मक रूप से अधिक मनसूनी बारिश होती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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