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घरेलू हिंसा अधिनियम तलाकशुदा महिलाओं पर भी लागू

  • 14 May 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?
सर्वोच्च न्यायालय ने घरेलू हिंसा अधिनियम के विस्तार के संबंध में राजस्थान के उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2013 में दिये गये निर्णय को बरकरार रखा है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, घरेलू हिंसा अधिनियम, जो कि उन व्यक्तियों को दंडित करने की लिये बनाया गया है, जो वैवाहिक संबंध के दौरान महिलाओं को प्रताड़ित करते हैं, के साथ ही यह अधिनियम तलाकशुदा महिलाओं को भी उनके पूर्व पतियों से भी सुरक्षा प्रदान करेगा।

प्रमुख बिंदु 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस फैसले की ही पुष्टि की है, जिसमें कहा गया था कि ‘घरेलू हिंसा’ को केवल वैवाहिक संबंधों तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता।
  • सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय, उस कानून पर आधारित प्रश्न (question of law) के संदर्भ में दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि, राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के अनुसार, घरेलू रिश्ते (domestic relationship) के दायरे में रक्तसंबंध, विवाह, विवाह जैसी प्रकृति वाला संबंध, दत्तक ग्रहण (adoption) और सयुंक्त परिवार में रह रहे सदस्यों को शामिल किया जाता है। अतः इस निर्णय के इतर जाने का कोई कारण नज़र नहीं आता।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उस व्याख्या में कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया जिसके अनुसार, घरेलू संबंध केवल पति-पत्नी या विवाह जैसी प्रकृति वाले संबंध तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके अंतर्गत बहन और माँ जैसे अन्य रिश्ते भी शामिल हैं।
  • घरेलू संबंध के अंतर्गत वैसे सभी रिश्ते शामिल हैं, जहाँ वर्तमान में दो लोग एक साथ रहते हैं या अतीत में किसी साझा घर (shared household) में एक साथ रह चुके हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा तलाक के बाद भी जारी रह सकती है। अतः अधिनियम की पहुँच केवल वैवाहिक संबंधों के अंतर्गत रह रही महिलाओं तक ही सीमित नहीं होनी चाहिये। साथ ही कहा  गया कि तलाकशुदा पति हिंसा करने के लिये अपनी पूर्व पत्नी के कार्यस्थल में प्रवेश करके हिंसा का सहारा ले सकता है, या उसके साथ संवाद करने का प्रयास कर सकता है, या उसके रिश्तेदारों या आश्रितों को हिंसा करने की धमकी दे सकता है।
  • न्यायालय के अनुसार, यदि तलाकशुदा महिला का पूर्व पति उसे सयुंक्त स्वामित्व वाली संपत्ति से बेदखल करने की कोशिश करता है या उसकी अन्य मूल्यवान संपत्ति को लौटाने से इनकार कर देता है तो इस कृत्य को भी घरेलू हिंसा माना जाएगा।  
  • ध्यातव्य है कि, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 महिलाओं को घरेलू स्तर पर हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के लिये लाया गया था। 
  • यह अधिनियम 26 अक्तूबर, 2006 से प्रभाव में आया।
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