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भारतीय अर्थव्यवस्था

क्रिप्टोकरेंसी के कारण ‘डॉलरीकरण’

  • 16 May 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आरबीआई, डॉलरीकरण और डी-डॉलरीकरण, क्रिप्टोकरेंसी, फॉरेक्स रिज़र्व।

मेन्स के लिये:

क्रिप्टोकरेंसी के कारण डॉलरीकरण, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने संसदीय पैनल को बताया कि क्रिप्टोकरेंसी अर्थव्यवस्था के हिस्से का "डॉलरीकरण" कर सकती है जो भारत के संप्रभु हित के खिलाफ होगा।

डॉलरीकरण:

  • डॉलरीकरण मुद्रा प्रतिस्थापन का रूप है, जहांँ डॉलर का उपयोग किसी देश की स्थानीय मुद्रा के अतिरिक्त या उसके स्थान पर किया जाता है।
    • यद्यपि कई अर्थव्यवस्थाएंँ काफी हद तक डॉलरीकृत हैं फिर भी केवल लाइबेरिया और पनामा जैसे टैक्स हेवन देशों को सही अर्थों में 'डॉलरीकृत' के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • वास्तव में दो-तिहाई डॉलर संयुक्त राज्य अमेरिका जो कि इसे जारी करता है, के बाहर रखे जाते हैं।
    • बोलीविया जैसे देश जो अति मुद्रास्फीति के शिकार हुए हैं, का भी डॉलरीकरण हो गया है, यहाँ 80% से अधिक मुद्रा का उपयोग डॉलर के रूप में किया जा रहा है।

डी-डॉलरीकरण:

  • यह वैश्विक बाज़ारों में डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के लिये संदर्भित है। यह अमेरिकी डॉलर को मुद्रा के रूप में प्रतिस्थापित करने की एक प्रक्रिया है जिसका उपयोग निम्न हेतु किया जाता है:
    • व्यापारिक तेल और/या अन्य वस्तुएंँ
    • विदेशी मुद्रा भंडार हेतु अमेरिकी डॉलर ख़रीदना
    • द्विपक्षीय व्यापार समझौते
    • डॉलर मूल्यवर्ग की संपत्ति
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में डॉलर की प्रभुत्वशाली भूमिका अमेरिका को अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर असंगत प्रभाव रखने का अवसर देती है। अमेरिका लंबे समय से अपने विदेश नीति लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रतिबंधों को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करता रहा है।
    • डी-डॉलरीकरण विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों को भू-राजनीतिक जोखिमों से बचाने की भावना से प्रेरित है, जहाँ एक आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की स्थिति को आक्रामक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

डॉलरीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • अपनी मौजूदा मुद्रास्फीति की समस्याओं के बावजूद भारत काफी हद तक डॉलरीकरण से बहुत दूर है।
    • हालाँकि कुछ शोध पत्रों के अनुसार, भारतीय निर्यात-आयात (EXIM) लेन-देन में डॉलर का दबदबा है।
  • भारतीय आयात और निर्यात दोनों ही गतिविधियाँ लगभग 86% डॉलर में ही की जाती हैं।
  • भारत, अमेरिका को 15% निर्यात और वहाँ से केवल 5% ही आयात करता है।
    • यह दर्शाता है कि विदेशों में डॉलर की लोकप्रियता के भय से कुछ देश अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिये अपनी मुद्राओं का उपयोग करते हैं।

संबंधित चिंताएंँ:

  • वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के लिये चुनौतिँयाँ:
    • उच्च डॉलरीकरण वाली अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंक बिना शक्ति के निकाय बन जाते हैं।
    • क्रिप्टोकरेंसी में विनिमय का माध्यम बनने तथा घरेलू और सीमा पार वित्तीय लेन-देन में रुपए को प्रतिस्थापित करने की क्षमता है।
      • यही कारण है कि आरबीआई ने इसका विरोध किया है तथा भारतीय वित्त मंत्रालय ने भारत में आधिकारिक तौर पर इसे 'अनुमति' दिये बिना 30% क्रिप्टो टैक्स लगाकर उसका समर्थन किया है।
    • इस कदम का उद्देश्य भारतीय रुपए से आभासी संपत्ति को खरीदने से रोकना है, जो विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व में होगी, जिन्हें यहाँ कर अधिकारियों द्वारा ट्रैक नहीं किया जा सकता है।
    • कर/टैक्स उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होता है जो क्रिप्टो की माइनिंग केवल इसे पाने के लिये करते हैं बल्कि यह उन पर लागू होता है जो इसे प्राप्त करने या इसमें व्यापार करने के लिये भारतीय रुपए को खर्च करते हैं।
  • देश के वित्तीय क्षेत्र के लिये खतरा:
    • आतंक के वित्तपोषण, मनी लॉन्ड्रिंग और मादक पदार्थों की तस्करी के लिये इस्तेमाल होने के अलावा क्रिप्टो देश की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता हेतु एक बड़ा खतरा है।
  • बैंकिंग प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव:
    • इसका बैंकिंग प्रणाली पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि आकर्षक संपत्ति होने के कारण लोग अपनी मेहनत की कमाई को इन मुद्राओं में निवेश कर सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप बैंकों के पास उधार देने के लिये संसाधनों की कमी हो सकती है।
      • भारत में अनुमानित रूप से 15 मिलियन से 20 मिलियन क्रिप्टो निवेशक हैं, जिनकी कुल क्रिप्टो होल्डिंग लगभग 5.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

आगे की राह

  • अमेरिकी डॉलर अभी भी व्यापार के लिये पसंदीदा मुद्रा है क्योंकि कोई अन्य मुद्रा पर्याप्त रूप से तरल नहीं है। अगर किसी मुद्रा मे तरलता है भी तो राष्ट्रों में यह आशंका बनी रहती है कि कहीं वह मुद्रा अमेरिकी डॉलर का प्रतिरूप न बन जाए।
  • विश्व केवल व्यवस्था में परिवर्तन नहीं चाहता जहाँ अमेरिका के बजाय अब किसी दूसरे देश के वैसे ही छल-कपट भोगने पड़ें। आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि मुद्रा बाज़ार में विविधता लाई जाए जहाँ कोई एक मुद्रा आधिपत्य का दावा न करे।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

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