चंद्रमा पर आर्गन-40 का वितरण | 09 Mar 2022
प्रिलिम्स के लिये:चंद्रमा की वायुमंडलीय संरचना एक्सप्लोरर-2 (CHACE-2), चंद्रयान- 1 और 2, नोबल गैसें आर्गन-40, आवर्त सारणी। मेन्स के लिये:विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, चंद्रयान-2 के संदर्भ में भारतीयों की उपलब्धियांँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चंद्रयान-2 पर स्थित स्पेक्ट्रोमीटर ‘चंद्राज़ एटमॉस्फेरिक कम्पोज़िशन एक्सप्लोरर-2’ (Chandra's Atmospheric Composition Explorer- CHACE-2) द्वारा नोबल गैसों में से एक आर्गन-40 के वितरण से संबंधित पहली खोज की गई है।
- भारत द्वारा जुलाई 2019 में चंद्रयान-2, (चंद्र अन्वेषण मिशन) को चंद्रयान-1 के बाद सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया।
प्रमुख बिंदु
- चंद्रयान-2 के बारे में:
- यह लगभग 3,877 किलोग्राम का एक एकीकृत 3-इन-1 अंतरिक्षयान है, जिसमें चंद्रमा का एक ऑर्बिटर 'विक्रम' (विक्रम साराभाई के नाम से प्रेरित), लैंडर और प्रज्ञान (Wsdon) नामक रोवर शामिल है, साथ ही इसके तीनों घटकों को चंद्रमा का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है।
- इसमें एक ऑर्बिटर, जिसके लैंडर का नाम विक्रम था तथा चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र का पता लगाने के लिये प्रज्ञान नामक रोवर शामिल था।
- लैंडर की विफलता: विक्रम लैंडर इसरो द्वारा पूर्व निर्धारित योजना के अनुरूप ही उतर रहा था और सितंबर 2019 में चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी. की ऊँचाई तक इसके सामान्य प्रदर्शन को देखा गया था।
- यदि एक सफल सॉफ्ट-लैंडिंग हो जाती तो भारत, तत्कालीन सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाता।
- ऑर्बिटर: यह सतह के उच्च-रिज़ॉल्यूशन त्रि-आयामी मानचित्र बनाने के लिये विभिन्न प्रकार के कैमरों से लैस है।
- यह चंद्रमा और इसके वातावरण पर खनिज संरचना का अध्ययन करेगा और पानी की प्रचुरता का आकलन भी करेगा।
- उद्देश्य: चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति से जुड़े प्रमाण पर शोध को आगे बढ़ाना और चंद्रमा पर पानी की सीमा तथा वितरण का अध्ययन करना, चंद्रमा की स्थलाकृति, भूकंप विज्ञान, सतह और वातावरण की संरचना का अध्ययन करना।
प्रमुख निष्कर्ष:
- माना जाता है कि चंद्र बाह्यमंडल में पाई जाने वाली गैस चंद्र सतह से उत्सर्जित है।
- CHACE-2 के अवलोकन से पता चलता है कि आर्गन-40 के वितरण में महत्त्वपूर्ण स्थानिक विविधता है।
- दक्षिणी ध्रुव ऐटकेन भूभाग पर (KREEP) अर्थात् पोटेशियम (K), दुर्लभ-मृदा तत्त्व और फास्फोरस (P) सहित कई क्षेत्रों में स्थानीयकृत संवर्द्धन (आर्गन उभार के रूप में ) विद्यमान है।
चंद्र बहिर्मंडल:
- 'बहिर्मंडल' एक आकाशीय पिंड के ऊपरी वायुमंडल का सबसे बाहरी क्षेत्र है जहाँ परमाणु और अणु शायद ही कभी एक-दूसरे से टकराते हैं और अंतरिक्ष में गति कर सकते हैं।
- पृथ्वी के चंद्रमा में एक सतह सीमा बहिर्मंडल है। चंद्रमा के बहिर्मंडल में विभिन्न घटकों को विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा सतह से पोषित किया जाता है, जैसे:
- थर्मल डिसाॅर्प्शन (Thermal Desorption): उष्मीय निकास (Thermal Escape) जिसे जीन्स एस्केप भी कहा जाता है, द्वारा बहिर्मंडलीय परमाणु अंतरिक्ष में खो सकते हैं।
- फोटो-स्टीमुलेटेड डिसाॅर्प्शन (Photo-Stimulated Desorption): परमाणु फोटो-आयनीकरण द्वारा आयनित होकर सौर पवन आयनों के साथ आवेशों का स्थानांतरण करते हैं।
- सोलर विंड स्पटरिंग (Solar wind Sputtering): सौर पवन के संवहन विद्युत क्षेत्र द्वारा परमाणुओं को प्रवाहित किया जा सकता है।
- सूक्ष्म उल्कापिंड प्रभाव वाष्पीकरण (Micrometeorite Impact Vaporization): सूक्ष्म उल्कापिंड का प्रभाव आमतौर पर पर्याप्त रूप से शक्तिशाली होता है जिससे प्रभावकारी कण का वाष्पीकरण होता है, साथ ही प्रभावकारी कण की तुलना में एक क्रेटर उत्पन्न होता है।
- एक सूक्ष्म उल्कापिंड एक कक्षीय मलबा है जो रेत के एक दाने से भी छोटा होता है।
- इस प्रकार चंद्र बहिर्मंडल कई स्रोत और सिंक प्रक्रियाओं के बीच एक गतिशील संतुलन के परिणामस्वरूप मौजूद है।
डिस्कवरी का महत्त्व:
- नोबल गैसें सरफेस-एक्सोस्फीयर इंटरैक्शन की प्रक्रियाओं को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण ट्रेसर के रूप में कार्य करती हैं तथा आर्गन-40 (Ar-40) चंद्र बहिर्मंडलीय प्रजातियों की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण ट्रेसर परमाणु है।
- यह चंद्रमा की सतह या लूनार सरफेस के पहले कुछ दस मीटर नीचे रेडियोजनिक गतिविधियों को समझने में भी मदद करेगा।
- Ar-40 चंद्रमा की सतह के नीचे मौजूद पोटेशियम-40 (K-40) के रेडियोधर्मी विघटन से उत्पन्न होता है।
- एक बार बनने के बाद यह इंटर ग्रैनुलर स्पेस (Inter-granular Space) के माध्यम से फैलता तथा स्राव व दोषों के माध्यम से चंद्र वहिर्मंडल तक अपना रास्ता बनाता है।
- CHACE-2 चंद्रमा के भूमध्यरेखीय और मध्य अक्षांश क्षेत्रों को कवर करते हुए Ar-40 की दैनिक और स्थानिक भिन्नता प्रदान करते हैं।
- चंद्रयान-2 मिशन के परिणाम की विशिष्टता इस तथ्य में निहित है, हालाँकि अपोलो -17 (1972) और लूनार एटमॉस्फियर एंड डस्ट एन्वायरनमेंट एक्सप्लोरर (LADEE मिशन 2014) ने चंद्र बहिर्मंडल में Ar-40 की उपस्थिति का पता लगाया है तथा यह माप चंद्रमा के निकट-भूमध्यरेखीय क्षेत्र तक ही सीमित है।
- CHACE-2 द्वारा आर्गन उभार का अवलोकन अज्ञात या अतिरिक्त हानि प्रक्रियाओं के संकेत हैं।
नोबल/उत्कृष्ट गैसें:
- नोबल गैस सात रासायनिक तत्त्वों का एक समूह है जिसे आवर्त सारणी के समूह 18 (VIIIa) में रखा गया है।
- तत्त्व हीलियम (He), नियॉन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टन (Kr), ज़ेनॉन (Xe), रेडॉन (Rn) और ओगनेसन (Og) हैं।
- उत्कृष्ट गैसें रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, ज्वलनशील होती हैं।
- हालाँकि हाल के अध्ययनों ने ज़ेनॉन, क्रिप्टन और रेडॉन के प्रतिक्रियाशील यौगिकों को प्रदर्शित किया है।
- जैसे-जैसे परमाणु संख्या बढ़ती है, नोबल गैसों की प्रचुरता कम होती जाती है।
- हाइड्रोजन के बाद ब्रह्मांड में हीलियम सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्त्व है।
निम्नलिखित में से कौन-सा/से युग्म सही है/हैं? (2014) अंतरिक्षयान उद्देश्य
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