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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दुर्लभ स्थानिक एवं लुप्तप्राय पौधों एवं वृक्षों की खोज

  • 06 Jul 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों ?
वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट में ऐसे दुर्लभ स्थानिक एवं लुप्तप्राय पौधों एवं वृक्षों की खोज की है, जिनमें से कुछ पौधों व वृक्षों का अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण निकायों द्वारा आकलन नहीं किया गया था।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण प्रोजेक्ट के अंतर्गत दक्षिण पश्चिमी घाट (जिसमें केरल और तमिलनाडु को भी शामिल किया गया है) में अब तक 250 दुर्लभ स्थानिक एवं लुप्तप्राय प्रजातियों के पौधों की खोज की जा चुकी है।
  • इनमें से कुछ प्रजातियों का मूल्याँकन आईयूसीएन की रेड लिस्ट के लिये आईयूसीएन द्वारा किया गया है। इस सूची में पौधों और वृक्षों को वर्ष 1998 को आधार मानकर संवेदनशील (vulnerable), संकटग्रस्त (endangered) अथवा गंभीर रूप से संकटग्रस्त (critically endangered) श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। 
  • विदित हो कि केरल के वायनाड ज़िले में तक़रीबन 177  प्रजातियों की खोज की गई थी। ये प्रजातियाँ मुख्यतः जैव-विविधता हॉटस्पॉट जैसे कुरिच्यार्माला, रानिमाला, अरनामाला, चेमबरा पीक, पेरिया और कुरुवा द्वीप में पाई गई थी।
  • उल्लेखनीय है कि भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण प्रोजेक्ट के तत्वाधान में इनकी खोज की गई है, जो आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्षों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिये एक तीन-वर्षीय कार्यक्रम का भी संचालन भी कर रहा है।
  • किंगियोडेनड्रोन पिन्ननेटम (Kingiodendron pinnatum) प्रजाति का अत्यधिक दोहन किया गया है तथा यह अपने निवास स्थान से वंचित हो गयी है। इसे मलयालम में चुकन्नापायिनी, सायनोमेट्रा ट्रावनकोरिका, वाटेरिया इंडिका और होपा परविफ्लोरा के नाम से जाना जाता है।
  • एग्लेइया मलाबरिचा (रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त पौधों की श्रेणी में शामिल), मायरीस्टिका मलाबरिचा (संवेदनशील), स्यज़िगियम स्तोक्सी और स्यज़िगियम धनेशिआना जैसे औषधीय महत्त्व के पौधों और हम्बोल्टिया वहलिआना और होपा पोंगा को एकत्रित किया गया था।   
  • नमूनों के उपलब्ध होने पर इन पौधों के रासायनिक संगठन, औषधीय मूल्य और आर्थिक महत्त्व का भी अध्ययन किया जाएगा।
  • इन मौजूदा पौधों के बारे में पर्याप्त जानकारी, वहाँ के जनजाति समुदायों से प्राप्त हुई। इसके विपरीत सामान्य व्यक्तियों को इनके विषय में ज्ञात नहीं है और उन्होंने इनमें से कई दुर्लभ स्थानिक और लुप्तप्राय पौधों के विषय में सुना भी नहीं है।
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