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भारतीय राजनीति

लोकपाल के लिये जाँच निदेशक

  • 21 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लोकपाल, लोकायुक्त, सूचना का अधिकार

मेन्स के लिये:

लोकपाल से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सूचना का अधिकार (RTI) के अंतर्गत मांगे गए उत्तर के जवाब से पता चला है कि लोकपाल (Lokpal) के अस्तित्व में आने के दो वर्ष से अधिक समय के बाद भी केंद्र ने अब तक जाँच निदेशक (Director of Inquiry) की नियुक्ति नहीं की है।

प्रमुख बिंदु

जाँच निदेशक के विषय में:

  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अनुसार, एक जाँच निदेशक होगा, जो केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव के पद से नीचे का नहीं होगा।
  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 20 (1) (बी) के तहत निहित प्रावधानों के अनुसार, लोक सेवकों के संबंध में शिकायतों को लोकपाल द्वारा प्रारंभिक जाँच के लिये केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) को भेजा जाता है।
  • जाँच निदेशक की नियुक्ति न करना भारत में मज़बूत लोकपाल के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है।

लोकपाल के विषय में:

  • लोकपाल एक भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण है जो जनहित का प्रतिनिधित्व करता है।
    • भारत भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • भारत में लोकपाल की अवधारणा स्वीडन से ली गई है।
  • लोकपाल (सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जाँच करने वाली सर्वोच्च संस्था) मार्च 2019 में अपने अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के साथ अस्तित्व में आया।
  • भारत के पहले प्रशासनिक सुधार आयोग (1966- 1970) ने नागरिकों की शिकायतों के निवारण के लिये 'लोकपाल' और 'लोकायुक्त' के रूप में नामित दो विशेष प्राधिकरणों की स्थापना की सिफारिश की थी।
    • भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल, जबकि राज्य स्तर पर लोकायुक्त अधिकृत है।
  • भ्रष्टाचार के मामलों में लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में सभी संसद सदस्य और केंद्र सरकार के कर्मचारी आते हैं।
  • इसके अलावा लोकपाल केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित या उसके द्वारा नियंत्रित संस्था के किसी भी सदस्य के संबंध में भ्रष्टाचार विरोधी शिकायतों की भी जाँच कर सकता है।
  • वर्तमान में न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष (Justice Pinaki Chandra Ghose) लोकपाल के अध्यक्ष हैं।
  • लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य होते हैं।

लोकपाल से संबंधित मुद्दे:

  • लोकपाल राजनीतिक प्रभाव से मुक्त नहीं है क्योंकि लोकपाल की नियुक्ति समिति में भी राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल होते हैं।
    • लोकपाल की नियुक्ति हेतु चयन समिति प्रधानमंत्री से मिलकर बनी होती है जो कि समिति का अध्यक्ष होता है इसके अलावा इस समिति में लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष का नेता, भारत का मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित एक न्यायाधीश तथा एक प्रख्यात न्यायविद शामिल होते हैं ।
  • लोकपाल की नियुक्ति में हेरफेर की संभावना बनी रहती है क्योंकि नियुक्ति हेतु 'प्रतिष्ठित न्यायविद' या 'ईमानदार व्यक्ति'के लिये कोई निश्चित मानदंड निर्धारित नहीं है।
  • सबसे बड़ी कमी न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना है।
  • लोकपाल को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान नहीं है तथा लोकपाल के खिलाफ अपील करने हेतु पर्याप्त प्रावधान भी नहीं हैं।
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ उल्लेखित अपराध का आरोप लगाने के दिन से सात वर्ष की अवधि के बाद शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती है।

आगे की राह:

  • भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने हेतु लोकपाल संस्था को कार्यात्मक स्वायत्तता और जनशक्ति की उपलब्धता दोनों के संदर्भ में मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • इसके अलावा लोकपाल और लोकायुक्त को वित्तीय, प्रशासनिक एवं कानूनी रूप से उन लोगों से स्वतंत्र किया जाना चाहिये जिनके खिलाफ उन्हें जांँच और मुकदमा चलाने का अधिकार होता है।
  • किसी एक संस्था या प्राधिकरण में बहुत अधिक शक्ति के संकेंद्रण से बचने हेतु उचित जवाबदेही तंत्र के साथ विकेंद्रीकृत संस्थानों की बहुलता की आवश्यकता है।
  • अधिक पारदर्शिता, सूचना का अधिकार अधिनियम को सशक्त बनाना, मज़बूत व्हिसलब्लोअर (Whistleblower) संरक्षण व्यवस्था के साथ-साथ एक नैतिक रूप से मज़बूत नेतृत्व की आवश्यकता है जो स्वयं को भी सार्वजनिक जाँच के दायरे में लाने हेतु तैयार हो।

स्रोत: द हिंदू

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