भारतीय अर्थव्यवस्था
डिजिटल एवं कैशलेस अर्थव्यवस्था
- 27 Jul 2019
- 6 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त एवं कार्पोरेट कार्य राज्यमंत्री ने डिजिटल और नकदी रहित अर्थव्यवस्था पर एक सम्मेलन ‘दॅ फ्यूचर ऑफ इंडियाज़ डिजिटल पेमेंट्स’ (The Future of India’s Digital Payments) को संबोधित किया।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान में भुगतान संबंधी डिजिटल पेमेंट्स के मामले में सरकार ने ‘चलता है का रवैया’ पीछे छोड़ दिया है और ‘बदल सकता है’ का दृष्टिकोण अपना लिया है। अर्थात् डिजिटल पेमेंट्स के माध्यम से तत्काल एवं त्वरित कार्रवाई करने पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- इस माध्यम से सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थानों में भुगतान व्यवस्था के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
- इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य डिजिटल इंडिया और डिजिटल भुगतान के संबंध में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की जनता तक प्रौद्योगिकी का लाभ सुनिश्चित करना था।
- इस सम्मेलन में मंदिरों में भी डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने की बात कही गई।
डिज़िटल और कैश-लेस अर्थव्यवस्था
- आर्थिक व्यवस्था का वह स्वरूप जिसमें धन का अधिकांश लेन-देन चेक, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिग, मोबाइल पेमेंट तथा अन्य डिजिटल माध्यमों से किया जाता है, कैश-लेस अर्थव्यवस्था कहलाती है।
- इस व्यवस्था में नकदी (कागज़ी नोट या सिक्के) का चलन कम हो जाता है। नकदी-रहित लेन-देन में करेंसी का न्यूनतम इस्तेमाल होता है। इससे व्यवसाय स्वचालित हो जाते हैं जिसके परिणमास्वरूप पारदर्शिता आती है।
- कैश-लेस अर्थव्यवस्था से गलत तरीके से लेन-देन बंद हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप कालेधन का प्रभाव कम होता है।
- वर्तमान में देश का लगभग 95 प्रतिशत लेन-देन नकद-आधारित है जिससे एक बहुत बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का निर्माण होता है और इसकी वज़ह से सरकार को विभिन्न टैक्स लगाने और वसूलने में कठिनाई होती है।
- डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार समय-समय पर विभिन्न उपायों की घोषणा करती रहती है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम
- भारत सरकार ने वर्ष 2015 में भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया कार्यक्रम शुरू किया था।
- यह एक विस्तृत एवं समग्र कार्यक्रम है, जिसे सभी राज्य सरकारों ने लागू किया है और इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग इसका संयोजक है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के उद्देश्य
- इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- प्रत्येक नागरिक के लिये सुविधा के रूप में बुनियादी ढाँचा
- गवर्नेंस व मांग आधारित सेवाएँ
- नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के प्रमुख लक्ष्य
- इस कार्यक्रम का लक्ष्य विकास क्षेत्रों के निम्नलिखित स्तंभों के ज़रिये इस बहुप्रतीक्षित आवश्यकता को उपलब्ध कराना है:
- ब्रॉडबैंड हाइवेज मोबाइल कनेक्टिविटी तक सर्वव्यापी पहुँच
- पब्लिक इंटरनेट संपर्क कार्यक्रम
- ई-गवर्नेंस--तकनीक के जरिये सरकारी सुधार
- ई-क्रांति--सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक आपूर्ति
- सबके लिये सूचना
- इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन- सकल शून्य आयात का लक्ष्य
- रोज़गार के लिये सूचना प्रौद्योगिकी
- अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम
डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों का मौलिक आधार देश का संचार उद्योग है जो केवल लोगों से जुड़ा ही नहीं है, बल्कि रोज़गार का भी सृजन करता है। यह ज्ञान के लिये एक उपकरण तो बन ही गया है, साथ ही राजकोष में योगदान देकर आर्थिक विकास और वित्तीय समावेशन का विस्तार करता है।
अर्थव्यवस्था और डिजिटल इंडिया
- भारत को एक ट्रिलियन डॉलर वाली डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और डेटा संरक्षण नीति में बदलाव सहित कई अन्य नीतियाँ शुरू की जा रही हैं।
- विमुद्रीकरण के बाद से ही सरकार द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी क्रम में देश में डिजिटल इंडिया, ई-गवर्नेंस जैसे मिशनों को तेज़ी से लागू किया जा रहा है।
- इस लक्ष्य को 2025 तक हासिल करने के लिये कार्ययोजना बनाई गई है।
- अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान में आईटी/आईटीईएस क्षेत्र (350 अरब डॉलर) और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र (300 अरब डॉलर) से अधिकतम योगदान के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था 2025 तक 1 ट्रिलियन डालर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बन सकती है।