DICGC द्वारा वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूली | 04 Sep 2024
प्रिलिम्स के लिये:डिपॉजिट इंश्योरेंस, डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा और कवरेज, DICGC मेन्स के लिये:डिपॉजिट इंश्योरेंस का महत्त्व एवं डिपॉजिट इंश्योरेंस और ऋण गारंटी निगम (DICGC) की आवश्यकता |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों ?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सहायक कंपनी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) अपने प्रीमियम ढाँचे के लिये जाँच के दायरे में है, जो वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूलती है, जबकि सहकारी बैंकों को अनुपातहीन रूप से लाभ पहुँचाती है।
- इससे वर्तमान प्रणाली की निष्पक्षता और दक्षता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे विभिन्न बैंकिंग संस्थानों के रिस्क प्रोफाइल के आधार पर प्रीमियम के पुनर्मूल्यांकन की मांग उठती है।
वाणिज्यिक बैंकों से डिपॉजिट इंश्योरेंस के लिये अधिक शुल्क कैसे वसूला जा रहा है?
- अनुपातहीन प्रीमियम बोझ: DICGC वाणिज्यिक बैंकों से 94% प्रीमियम एकत्र करता है, जो निवल दावों (net claims) का 1.3% है, जबकि सहकारी बैंक प्रीमियम का 6% योगदान देते हैं और निवल दावों का 98.7% दावा करते हैं।
- वर्ष 1962 से वाणिज्यिक बैंकों ने 295.85 करोड़ रुपए के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें कुल निवल दावे 138.31 करोड़ रुपए हैं।
- इसके विपरीत सहकारी बैंकों ने 14,735.25 करोड़ रुपए के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें निवल दावे 10,133 करोड़ रुपए हैं।
- इसका अर्थ है कि अच्छी तरह से प्रबंधित वाणिज्यिक बैंक सहकारी बैंकों से जुड़े उच्च जोखिमों को प्रभावी ढंग से सब्सिडी दे रहे हैं, जिसके लिये दावों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से की आवश्यकता होती है।
- वर्ष 1962 से वाणिज्यिक बैंकों ने 295.85 करोड़ रुपए के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें कुल निवल दावे 138.31 करोड़ रुपए हैं।
- वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूलने के निहितार्थ:
- उच्च अनुपालन लागत: वाणिज्यिक बैंकों को जोखिम प्रोफाइल की परवाह किये बिना प्रति 100 रुपए बीमाकृत 12 पैसे की मानक प्रीमियम दर के कारण उच्च अनुपालन लागत का सामना करना पड़ता है। यह बैंकों की परिचालन दक्षता और लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे अंततः ऋण प्रदान करने एवं उपभोक्ताओं को सफलतापूर्वक सेवा प्रदान करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
- असमान जोखिम मूल्यांकन: वाणिज्यिक बैंक, जिनका जोखिम प्रोफाइल आम तौर पर कम होता है, उन्हें उच्च प्रीमियम के माध्यम से दंडित किया जाता है, जो जोखिम मूल्यांकन के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है, जिसे बीमा मूल्य निर्धारण का मार्गदर्शन करना चाहिए।
- वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव: उच्च प्रीमियम वाणिज्यिक बैंकों के लिये वित्तीय स्थिरता को कम कर सकता है, क्योंकि उन्हें इन लागतों को जमाकर्ताओं और उधारकर्ताओं पर डालना पड़ सकता है।
- इसके परिणामस्वरूप ऋणों के लिये उच्च ब्याज दरें और जमाकर्ताओं के लिये कम रिटर्न हो सकता है, जिससे समग्र बैंकिंग पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
- खराब प्रबंधन पद्धतियों को प्रोत्साहन: सहकारी बैंकों की विफलताओं से जुड़ी लागतों को वाणिज्यिक बैंकों को वहन करने की आवश्यकता होने से, वर्तमान संरचना अनजाने में सहकारी बैंकों के भीतर खराब प्रबंधन पद्धतियों को प्रोत्साहित कर सकती है, क्योंकि चूक के परिणाम अधिक स्थिर संस्थानों पर स्थानांतरित हो जाते हैं।
DICGC के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- यह वर्ष 1978 में संसद द्वारा डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट, 1961 के पारित होने के बाद जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया।
- यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
- DICGC द्वारा प्रबंधित निधियाँ:
- जमा बीमा निधि: यह निधि बैंक के जमाकर्त्ताओं को उस स्थिति में बीमा प्रदान करती है, जब बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये धन नहीं होता है तथा उसे परिसमापन की स्थिति में जाना पड़ता है।
- इसका वित्तपोषण बैंकों से प्राप्त प्रीमियम द्वारा किया जाता है।
- ऋण गारंटी निधि: यह वह गारंटी है, जो प्रायः ऋणदाता को विशिष्ट उपाय उपलब्ध कराती है, यदि देनदार उसका ऋण वापस नहीं करता है।
- सामान्य निधि: यह DICGC के परिचालन व्यय को कवर करती है, जो इसके परिचालन से प्राप्त अधिशेष से वित्तपोषित होती है।
- जमा बीमा निधि: यह निधि बैंक के जमाकर्त्ताओं को उस स्थिति में बीमा प्रदान करती है, जब बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये धन नहीं होता है तथा उसे परिसमापन की स्थिति में जाना पड़ता है।
DICGC की जमा बीमा योजना क्या है?
- जमा बीमा की सीमा: वर्तमान में एक जमाकर्त्ता बीमा कवर के रूप में प्रति खाता अधिकतम 5 लाख रुपए का दावा कर सकता है। इस राशि को 'जमा बीमा' कहा जाता है। प्रति जमाकर्त्ता 5 लाख रुपए का कवर DICGC द्वारा प्रदान किया जाता है।
- यदि बैंक डूब जाता है तो खाते में 5 लाख रुपए से अधिक राशि रखने वाले जमाकर्त्ताओं के पास धन वापस पाने के लिये कोई कानूनी उपाय नहीं है।
- बीमा के लिये प्रीमियम राशि प्रति 100 रुपए जमा पर 10 पैसे से बढ़ाकर 12 पैसे कर दी गई है तथा 15 पैसे की सीमा तय की गई है।
- इस बीमा के लिये प्रीमियम का भुगतान बैंकों द्वारा DICGC को किया जाता है, तथा इसे जमाकर्त्ताओं को नहीं दिया जाता।
- बीमित बैंक प्रत्येक वित्तीय छमाही के आरंभ से 2 महीने के भीतर निगम को अग्रिम बीमा प्रीमियम का भुगतान अर्द्ध-वार्षिक आधार पर करते हैं, जो पिछली छमाही के अंत में उनकी जमाराशियों पर आधारित होता है।
- कवरेज:
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित सभी बैंकों को DICGC के साथ जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है।
- प्राथमिक सहकारी समितियों का DICGC द्वारा बीमा नहीं किया जाता है।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित सभी बैंकों को DICGC के साथ जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है।
- कवर की गई जमा राशियों के प्रकार: DICGC निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियों को छोड़कर सभी बैंक जमाओं, जैसे बचत, सावधि, चालू, आवर्ती आदि का बीमा करता है:
- विदेशी सरकारों की जमाराशियाँ।
- केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियाँ।
- अंतर-बैंक जमा।
- राज्य भूमि विकास बैंकों की राज्य सहकारी बैंकों में जमाराशियाँ।
- भारत के बाहर प्राप्त कोई भी जमा राशि।
- कोई भी राशि जिसे RBI की पिछली मंज़ूरी के साथ निगम द्वारा विशेष रूप से छूट दी गई है।
- जमा बीमा की आवश्यकता:
- हाल ही में पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी (PMC) बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे मामलों में जमाकर्त्ताओं को बैंकों में अपने धन तक तत्काल पहुँच प्राप्त करने में होने वाली परेशानियों ने जमा बीमा के विषय पर प्रकाश डाला है।
DICGC द्वारा जमा बीमा प्रीमियम का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता क्यों है?
- प्रस्ताव: वाणिज्यिक बैंकों के लिये प्रीमियम को 12 पैसे से घटाकर 3 पैसे प्रति 100 रुपए बीमाकृत करने का प्रस्ताव किया गया है, जिससे इन बैंकों को वित्त वर्ष 2025-26 में लगभग 20,000 करोड़ रुपए की राहत मिल सकती है।
- इसके विपरीत सहकारी बैंकों के लिये प्रीमियम 12 पैसे पर बना रह सकता है या 15 पैसे तक बढ़ सकता है।
- लाभ:
- जोखिम-आधारित प्रीमियम: बैंकों के जोखिम प्रोफाइल के साथ प्रीमियम को संरेखित करना एक स्पष्ट संदेश भेजता है कि बीमा लागत वास्तविक जोखिम को प्रतिबिंबित करना चाहिये।
- आर्थिक दक्षता: वाणिज्यिक बैंकों के लिये कम अनुपालन लागत उनकी परिचालन दक्षता को बढ़ा सकती है जिससे जमाकर्त्ताओं और उधारकर्त्ताओं को लाभ हो सकता है।
- अच्छे प्रबंधन को प्रोत्साहित करना: अच्छी तरह से प्रबंधित बैंकों को दंडित न करके, यह प्रणाली बेहतर बैंकिंग प्रथाओं को बढ़ावा देती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: बैंकिंग क्षेत्र में जमा बीमा के महत्त्व और भारत में DICGC के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: C प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. बैंक खाते से वंचित लोगों को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने के लिये प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) आवश्यक है। क्या आप भारतीय समाज के गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिये इससे सहमत हैं? अपने मत की पुष्टि के लिये उचित तर्क दीजिये। (2016) |