ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2020 | 23 Oct 2020
प्रिलिम्स के लियेग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट मेन्स के लियेभारत में आर्थिक असमानता की समस्या और समाधान के उपाय |
चर्चा में क्यों?
स्विट्ज़रलैंड स्थित एक निजी इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, महामारी और उसके कारण लागू लॉकडाउन के बावजूद जून 2020 के अंत में वयस्क भारतीयों की औसत संपत्ति में दिसंबर 2020 की तुलना में तकरीबन 120 डॉलर (लगभग 8,800 रुपए) की बढ़ोतरी हुई है।
प्रमुख बिंदु
- स्विट्ज़रलैंड स्थित निजी इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी द्वारा जारी ‘ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2020’ में दुनिया भर में घरेलू संपत्ति और संपदा की सबसे व्यापक और अद्यतन जानकारी प्रदान की गई है।
वैश्विक स्थिति
- वर्ष 2019 में कुल वैश्विक संपत्ति 36.3 ट्रिलियन डॉलर और प्रति वयस्क व्यक्ति की औसत संपत्ति 77,309 डॉलर पर पहुँच गई थी, जो कि वर्ष 2018 की तुलना में 8.5 प्रतिशत अधिक है।
- हालाँकि जनवरी और मार्च 2020 के बीच कुल घरेलू संपत्ति में 17.5 ट्रिलियन डॉलर की कमी हुई है, जो कि वर्ष 2019 के अंत में वैश्विक संपत्ति के मूल्य की तुलना में 4.4 प्रतिशत कम है।
- इस महामारी के कारण महिला श्रमिकों को सामाजिक और आर्थिक तौर पर काफी असमानता का सामना करना पड़ा है। इसका मुख्य कारण है कि व्यवसायों और उद्योगों जैसे- रेस्टोरेंट, होटल, और खुदरा क्षेत्र आदि में महिलाओं का काफी अधिक प्रतिनिधित्त्व है और ये क्षेत्र भी महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
- घरेलू संपत्ति अथवा संपदा के संदर्भ में वर्ष 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट को इस शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना माना जा सकता है, हालाँकि अब विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस महामारी के प्रभाव के कारण वैश्विक संपत्ति को कुछ नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
- महामारी ने विश्व को एक गंभीर मंदी की स्थिति में पहुँचा दिया है। विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में संकुचन की स्थिति देखी जा रही है, बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी हो रही और दुनिया भर के वित्तीय बाज़ारों में काफी अधिक उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
भारतीय परिदृश्य
- भारत की घरेलू संपत्ति अथवा संपदा में अचल संपत्ति का काफी विशिष्ट स्थान है, हालाँकि अब धीरे-धीरे वित्तीय संपत्ति में भी बढ़ोतरी हो रही है और भारत की कुल संपत्ति में इसकी हिस्सेदारी लगभग 22 प्रतिशत हो गई है।
- स्टॉक, शेयर, बॉण्ड और बैंक डिपॉज़िट आदि वित्तीय संपत्ति के प्रमुख उदाहरण हैं।
- रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2020 में वयस्क भारतीयों की औसत संपत्ति 17,420 डॉलर (तकरीबन 12.77 लाख रुपए) पर पहुँच गई है, जो कि दिसंबर 2019 में 17,300 डॉलर थी।
- भारत में आर्थिक असमानता
- भारत में आर्थिक असमानता और गरीबी को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि भारत में वर्ष 2019 के अंत में 73% वयस्क आबादी के पास 10,000 डॉलर से कम की संपत्ति थी।
- वहीं भारत की जनसंख्या के एक छोटे से हिस्से के पास (कुल वयस्कों का 2.3 प्रतिशत) 1,00,000 डॉलर से अधिक की संपत्ति थी।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक मुद्रा धारकों में से शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों में भारत के कुल 9,07,000 लोग शामिल हैं।
- वर्ष 2020 की पहली छमाही में भारत के वयस्कों की औसत संपत्ति में तकरीबन 1.7 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है, वहीं अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 में वयस्क भारतीयों की संपत्ति में 5-6 प्रतिशत की वृद्धि होगी, जबकि वर्ष 2021 में यह वृद्धि 9 प्रतिशत तक पहुँच सकती है।
- जनवरी-अप्रैल 2020 के बीच भारत में बेरोज़गारी दर लगभग तीन गुना बढ़कर 24% हो गई है।
भारत में आर्थिक असमानता से संबंधित चुनौतियाँ
- भारत जैसे विकासशील देश में तमाम तरह की गरीबी उन्मूलन संबंधी योजनाओं के बावजूद अभी भी सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इन योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुँच रहा है?
- इस प्रकार असल चुनौती वास्तविक गरीबों की पहचान करना है।
- अक्सर सरकार द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर कम खर्च किया जाता है और यदि खर्च किया भी जाता है तो वह आवश्यकता के अनुरूप नहीं होता है।
- जबकि पारंपरिक रूप से संवेदनशील समुदाय जैसे- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदि प्राथमिक शिक्षा में समाज के बाकी हिस्सों की तरह ही आगे बढ़ रहे हैं, किंतु जब उच्च शिक्षा की बात आती है तो ये वर्ग काफी पीछे दिखाई पड़ते हैं।
- जलवायु परिवर्तन भी असामनता को बढ़ाने में योगदान दे रहा है।
आगे की राह
- घरेलू संपदा एक प्रकार से आकस्मिक बीमा के तौर पर कार्य करती है, जिसे आवश्यकता पड़ने पर कभी भी प्रयोग किया जा सकता है, इसीलिये वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी के आर्थिक प्रभावों को देखते हुए इसे एक उपलब्धि ही माना जाएगा कि वैश्विक संपत्ति पर इसका कुछ खास प्रभाव देखने को नहीं मिला है।
- बीते कुछ वर्षों में भारत में आर्थिक असमानता एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जिसे सामाजिक खर्चों में वृद्धि करके और समय पर कर भुगतान सुनिश्चित करके आसानी से संबोधित किया जा सकता है।