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भारतीय राजव्यवस्था

गुज़ारे भत्ते के निर्धारण हेतु दिशा-निर्देश

  • 05 Nov 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

विशेष विवाह अधिनियम (1954), हिंदू विवाह अधिनियम (1955) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125

मेन्स के लिये

गुज़ारे भत्ते के निर्धारण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश और इनकी आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

एक ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक मामलों में गुज़ारे भत्ते के भुगतान से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • जस्टिस 0इंदु मल्होत्रा ​​और आर. सुभाष रेड्डी की दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि सभी मामलों में गुज़ारे भत्ते का निर्धारण आवेदन दाखिल करने की तारीख के आधार पर किया जाएगा।

न्यायालय के दिशा-निर्देश

  • खंडपीठ ने गुज़ारे भत्ते की मात्रा निर्धारित करने के लिये निम्नलिखित मापदंड सूचीबद्ध किये हैं-

अतिव्यापी अधिकार क्षेत्र का मुद्दे

  • यदि किसी एक पक्ष द्वारा अलग-अलग कानूनों के तहत गुज़ारे भत्ते के भुगतान का दावा किया गया हो तो न्यायालय सर्वप्रथम पिछली कार्यवाही में दिये गए निर्णय और राशि पर विचार करेगा, साथ ही इसी आधार पर यह तय किया जाएगा कि और राशि दी जानी चाहिये अथवा नहीं।
  • न्यायालय में आवेदकों को पिछली कार्यवाही और उसके बाद पारित किये गए आदेशों का खुलासा करना अनिवार्य है।
  • यदि पिछली कार्यवाही/आदेश में किसी संशोधन या भिन्नता की आवश्यकता है, तो इसे उसी कार्यवाही में किया जाना आवश्यक है।

गुज़ारे भत्ते का निर्धारण

  • दोनों पक्षों की आयु और रोज़गार
    • ऐसे मामले में जहाँ दोनों पक्ष काफी समय से एक साथ रह रहे हों, विवाह के समय को भत्ते का निर्धारण करने का एक महत्त्वपूर्ण कारक होगा।
    • दोनों पक्षों के मध्य संबंधों की समाप्ति के मामले में यदि महिला शिक्षित और पेशेवर रूप से योग्य हो, फिर भी उसे अपनी पारिवारिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए रोज़गार के अवसरों का त्याग करने पड़े तो इस कारक को भी भत्ते का निर्धारण करते समय न्यायालय द्वारा ध्यान में रखा जाएगा।
  • महिला की आय
    • खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि पत्नी की आय, पति द्वारा दिये जाने वाले गुज़ारे भत्ते के भुगतान के बीच एक अवरोध के रूप में कार्य नहीं कर सकती है।
  • नाबालिग बच्चों का गुज़ारा भत्ता
    • न्यायालय ने कहा कि नाबालिग बच्चों पर होने वाले खर्च में भोजन, कपड़े, निवास, चिकित्सा व्यय और बच्चों की शिक्षा के लिये किये जाने वाला खर्च शामिल होगा। इसके अलावा बच्चों के समग्र विकास के लिये अतिरिक्त कोचिंग क्लासेस या किसी भी अन्य व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का खर्च भी भत्ते के भुगतान के निर्धारण में एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में कार्य करेगा।
    • हालाँकि न्यायालय ने कहा कि बच्चों की शिक्षा का खर्च सामान्यतः पिता द्वारा वहन किया जाना चाहिये, किंतु यदि पत्नी भी कार्य कर रही है, तो खर्च को दोनों पक्षों के बीच आनुपातिक रूप से साझा किया जा सकता है।
  • गंभीर विकलांगता अथवा बीमारी
    • जीवनसाथी, बच्चों अथवा आश्रित रिश्तेदारों की गंभीर विकलांगता अथवा बीमारी, जिसके कारण उन्हें निरंतर देखभाल की आवश्यकता होती है, को भी भत्ते का निर्धारण करते समय एक प्रासंगिक कारक माना जाएगा।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये मानदंड स्वयं में संपूर्ण नहीं हैं और संबंधित न्यायालय अपने विवेक का उपयोग कर किसी अन्य ऐसे कारक पर भी विचार कर सकते हैं, जो किसी मामले के संबंध में प्रासंगिक हो।

इन दिशा-निर्देशों की आवश्यकता

  • प्रायः आश्रित पत्नी और बच्चों को आर्थिक सहायता प्रदान कर सहारा देने हेतु सामाजिक न्याय के उपाय के रूप में कानूनी तौर पर गुज़ारा भत्ता प्रदान किया जाना आवश्यक है, ताकि उन्हें किसी भी संकट की स्थिति से बचाया जा सके।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन दिशा-निर्देशों को जारी करने का एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी को एक निश्चित समय-सीमा में न्याय मिल सके।
    • गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में जिस मामले की सुनवाई करते हुए ये दिशा-निर्देश जारी किये हैं, वह मामला बीते सात वर्षों से लंबित था।
  • इसके अलावा न्यायालय के लिये अतिव्यापी अधिकार क्षेत्र के मुद्दे को संबोधित करना भी काफी आवश्यक है। नियमों के अनुसार, एक वैवाहिक संबंध में किसी भी पक्ष द्वारा अलग-अलग कानूनों जैसे- विशेष विवाह अधिनियम (1954), हिंदू विवाह अधिनियम (1955) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 आदि के तहत संबंध को समाप्त करने और गुज़ारे भत्ते के भुगतान के लिये अर्ज़ी दी जा सकती है।
    • यद्यपि कानूनी रूप से यह प्रक्रिया पूर्णतः वैध है, किंतु यह न्यायालय के आदेशों के बीच असंगतता को बढ़ावा देती है, जिससे अतिव्यापी अधिकार क्षेत्र का मुद्दा उत्पन्न होता है।
  • इसलिये इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किये जाने की आवश्यकता थी, ताकि किसी एक पक्ष को अलग-अलग कानूनों के तहत पारित किये गए आदेशों का पालन करने के लिये बाध्य न किया जा सके।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालतों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि गुज़ारे भत्ते के निर्धारण से संबंधित मामलों का जल्द-से-जल्द निपटान किया जाए।

स्रोत: द हिंदू

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