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भारतीय राजव्यवस्था

लोकसभा उपाध्यक्ष

  • 29 Apr 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद: नियम, संवैधानिक प्रावधान और अधिदेश, संसद के पीठासीन अधिकारियों के लिये प्रावधान, अनुच्छेद 93, अनुच्छेद 94, अनुच्छेद 95

मेन्स के लिये:

उपाध्यक्ष का महत्त्व

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

लोकसभा की कार्यपद्धति में निष्पक्षता और निरंतरता सुनिश्चित करने हेतु संवैधानिक रूप से परिकल्पित पद महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद, लोकसभा उपाध्यक्ष का पद 17वीं लोकसभा के दौरान रिक्त रहा तथा 18वीं   लोकसभा में भी रिक्त है।

  • यद्यपि संविधान में नियुक्ति के लिये कोई निश्चित समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, किंतु अनुच्छेद 93 और 178 में विनिर्दिष्ट "चुनेगी" और "यथाशक्य शीघ्र" पदों का प्रयोग अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चयन को अनिवार्य बनाता है।

लोकसभा उपाध्यक्ष के पद से संबंधित प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 93: इसमें प्रावधान है कि लोकसभा को यथाशीघ्र सदन के दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनना होगा।
    • अनुच्छेद 94: इसमें लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होने, पद त्याग और पद से हटाए जाने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
    • अनुच्छेद 95(1): अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर लोकसभा उपाध्यक्ष अध्यक्ष के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा तथा सदन की अध्यक्षता करते हुए पद की शक्तियों का प्रयोग करेगा।
      • नियमों में "अध्यक्ष" के सभी संदर्भों को उप-अध्यक्ष के लिये भी संदर्भ माना जाएगा, उस समय के लिये जब वह अध्यक्षता करते हैं।
    • अनुच्छेद 178: इसमें राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के लिये तत्संबंधी प्रावधान है।
  • चुनाव प्रक्रिया:
    • लोकसभा उपाध्यक्ष (अध्यक्ष सहित) का चुनाव लोकसभा के सदस्यों में से उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है।
    • यह चुनाव लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों द्वारा विनियमित होता है। 
      • अध्यक्ष लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव की तिथि का निर्धारण करता है।
    • विपक्षी दल ने कई बार लोकसभा के उपाध्यक्ष का पद ग्रहण कियाहै। (लेकिन यह न तो संविधान द्वारा और न ही किसी कानून द्वारा अनिवार्य है, यह मात्र परिपाटी है)।
      • उदाहरण के लिये UPA-I (वर्ष 2004-09) और UPA-II (वर्ष 2009-14) सरकारों के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी (वर्ष 1999 से 2004), पी वी नरसिम्हा राव (वर्ष 1991-96) और चंद्रशेखर (वर्ष 1990-91) के कार्यकाल के दौरान। 
    • अलग से शपथ लेने की आवश्यकता नहीं है; केवल तीसरी अनुसूची के तहत सांसद की शपथ ही पर्याप्त है।
  • कार्यकाल और निष्कासन:
    • उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की तरह, लोकसभा के कार्यकाल तक पद धारण करता है लेकिन निम्नलिखित मामलों में वह इसे पहले भी रिक्त कर सकता है:
      • लोकसभा सदस्य नहीं रह जाता है;
      • अध्यक्ष को पत्र लिखकर त्यागपत्र देता है;
      • 14 दिन की पूर्व सूचना पर कुल लोकसभा सदस्यों के बहुमत (पूर्ण बहुमत) द्वारा पारित प्रस्ताव द्वारा हटाया गया हो।
    • जब भी लोकसभा उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तो लोकसभा उस पद को भरने के लिये एक नए सदस्य का चुनाव करती है।

लोकसभा उपाध्यक्ष के पद से संबंधित ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है? 

  • लोकसभा उपाध्यक्ष का पद ब्रिटिश शासन के तहत केंद्रीय विधान सभा में शुरू हुआ था। सच्चिदानंद सिन्हा वर्ष 1921 में इस पद पर आसीन होने वाले पहले व्यक्ति थे।
  • स्वतंत्रता के बाद एम. अनंथशयनम अयंगर भारत की लोकसभा के पहले निर्वाचित उपाध्यक्ष बने।
    • वर्ष 1956 में लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के निधन के बाद, अयंगर ने कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और बाद में वे दूसरी लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए।

लोकसभा उपाध्यक्ष के पद का क्या महत्त्व है?

  • विधायी निरंतरता सुनिश्चित करना: उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा के निर्बाध संचालन को सुनिश्चित करने के साथ प्रक्रियात्मक व्यवस्था बनाए रखता है और विधायी निष्क्रियता को रोकता है।
  • संवैधानिक अधिकार: अनुच्छेद 93 के तहत लोकसभा उपाध्यक्ष एक स्वतंत्र संवैधानिक पद पर होता है और वह अध्यक्ष के अधीन नहीं होता है। यह पद नियम समिति जैसी प्रमुख संसदीय समितियों से भी संबंधित होता है।
  • तटस्थ और निष्पक्ष भूमिका: निर्वाचित होने पर लोकसभा उपाध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह दलीय संबद्धता से ऊपर उठकर कार्य करेगा तथा संसदीय प्रक्रियाओं में निष्पक्षता के साथ लोगों के विश्वास को सुदृढ़ करेगा।
  • लोकतांत्रिक समावेशन एवं आम सहमति का निर्माण: परंपरागत रूप से विपक्ष को दिया जाने वाला लोकसभा उपाध्यक्ष का पद द्विदलीय सहयोग के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है तथा इससे आम सहमति आधारित राजनीति और अंतर-दलीय विश्वास को बढ़ावा मिलता है। इससे संस्थागत संतुलन को बनाए रखने संसदीय नेतृत्व में समावेशिता को बढ़ावा देने तथा विधायिका के लोकतांत्रिक लोकाचार को मज़बूत करने में सहायता मिलती है।

नोट:

  • किसी संसदीय समिति का सदस्य नियुक्त होने पर लोकसभा उपाध्यक्ष स्वतः ही उस समिति का अध्यक्ष बन जाता है।

लोकसभा उपाध्यक्ष के कार्यालय के प्रभावी कामकाज के लिये किन सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है?

  • चुनाव के लिये स्पष्ट समय-सीमा: संविधान में संशोधन किया जा सकता है या एक विशिष्ट अवधि के भीतर (उदाहरण के लिये, नई लोकसभा की पहली बैठक के 30 दिनों के भीतर) उपाध्यक्ष के चुनाव को अनिवार्य करने के लिये नियम बनाए जाने चाहिये।
    • एक वैधानिक प्रावधान लाया जा सकता है, जिसके तहत राष्ट्रपति को, निर्धारित अवधि से अधिक विलंब होने पर, प्रधानमंत्री की सलाह पर, चुनाव प्रक्रिया आरंभ करने का अधिकार दिया जा सकता है।
  • प्राधिकार का नियमित हस्तांतरण: अध्यक्ष की उपस्थिति में भी लोकसभा उपाध्यक्ष को पीठासीन कर्त्तव्यों का नियमित हस्तांतरण संस्थागत रूप से करने से प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि हो सकती है तथा कार्यालय की कार्यात्मक प्रासंगिकता की पुष्टि हो सकती है।
  • स्पष्ट भूमिका संहिताकरण: विस्तृत संसदीय नियमों या वैधानिक ढाँचे के माध्यम से लोकसभा उपाध्यक्ष की शक्तियों और ज़िम्मेदारियों को परिभाषित करने से अस्पष्टता कम होगी और कार्यपालिका के प्रभाव से विधायी तटस्थता की रक्षा होगी।

निष्कर्ष

भारत में लोकसभा उपाध्यक्ष का पद प्रतीकात्मक नहीं बल्कि संसदीय लोकतंत्र का एक अनिवार्य स्तंभ है। इस पद को बनाए रखना नियम-आधारित शासन, संस्थागत अखंडता और लोकतांत्रिक लचीलेपन के सम्मान की परीक्षा है। संसद के लिये यह आवश्यक है कि वह शीघ्रता से और संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. लोकसभा के उपाध्यक्ष के संवैधानिक और कार्यात्मक महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. लोकसभा अथवा राज्य की विधानसभा के चुनाव में जीतने वाले उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किये जाने के लिये किये गए मतदान का कम-से-कम 50 प्रतिशत वोट पाना अनिवार्य है।
  2.  भारत के संविधान में अधिकथित उपबंधों के अनुसार, लोकसभा में अध्यक्ष का पद बहुमत वाले दल को जाता है तथा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को जाता है।

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. लोकसभा अध्यक्ष के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता/करती है। 
  2.  यह आवश्यक नहीं कि अपने निर्वाचन के समय वह सदन का सदस्य हो, परंतु अपने निर्वाचन के छह माह के भीतर सदन का सदस्य बनना होगा। 
  3.  यदि वह त्यागपत्र देना चाहे तो उसे अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को संबोधित करना होगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021)

प्रश्न. आपके विचार में सहयोग, स्पर्धा एवं संघर्ष ने किस प्रकार से भारत में महासंघ को किस सीमा तक आकार दिया है? अपने उत्तर को प्रामाणित करने के लिये कुछ हालिया उदाहरण उद्धत कीजिये। (2020)

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