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भारतीय राजव्यवस्था

डिप्टी स्पीकर चुनाव

  • 29 Oct 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 93, लोकसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर, दसवीं अनुसूची

मेन्स के लिये:

राज्य की विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पदों से संबंधित विभिन्न प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक विधायक को उत्तर प्रदेश विधानसभा का डिप्टी स्पीकर चुना गया था।

  • संविधान का अनुच्छेद 93 लोकसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों के चुनाव का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 178 में किसी राज्य की विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पदों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • डिप्टी स्पीकर:
    • निर्वाचन मंडल:
      • लोकसभा स्पीकर का चुनाव होने के ठीक बाद डिप्टी स्पीकर का चुनाव अपने सदस्यों में से लोकसभा द्वारा किया जाता है।
      • डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तिथि स्पीकर द्वारा निर्धारित की जाती है (स्पीकर के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है)।
      • भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) के प्रावधानों के तहत 1921 में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पदों की शुरुआत भारत में हुई थी।
        • उस समय स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष कहा जाता था और यही नाम वर्ष 1947 तक चलता रहा।
    • समयसीमा और चुनाव के नियम:
      • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं दोनों में नए सदन के पहले सत्र के दौरान स्पीकर का चुनाव करने की प्रथा रही है, आमतौर पर तीसरे दिन शपथ लेने और पहले दो दिनों में प्रतिज्ञान होने के बाद।
      • डिप्टी स्पीकर का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र में होता है, भले ही इस चुनाव के नई लोकसभा/विधानसभा के पहले सत्र में भी होने पर कोई रोक नहीं है।
      • लेकिन डिप्टी स्पीकर का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र से परे वास्तविक और अपरिहार्य बाधाओं के बिना विलंबित नहीं होता है।
      • लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का चुनाव लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के नियम 8 द्वारा शासित होता है।
        • एक बार निर्वाचित होने के बाद डिप्टी स्पीकर आमतौर पर सदन के विघटन तक पद पर बना रहता है।
    • कार्यकाल और निष्कासन:
      • स्पीकर की तरह डिप्टी स्पीकर आमतौर पर लोकसभा की अवधि (5 वर्ष) के दौरान पद पर बना रहता है।
      • डिप्टी स्पीकर निम्नलिखित तीन मामलों में से किसी में भी अपना पद पहले छोड़ सकता है:
        • यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
        • यदि वह स्पीकर को पत्र लिखकर त्यागपत्र देता है।
        • यदि उसे लोकसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है।
          • ऐसा प्रस्ताव 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
      • राज्य विधानसभा के मामले में हटाने की प्रक्रिया लोकसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की तरह ही है।
    • उत्तरदायित्व और शक्तियाँ (लोकसभा के उपसभापति):
      • संविधान के अनुच्छेद 95 के तहत उपसभापति स्पीकर की अनुपस्थिति में उसके कर्तव्यों का पालन करता है।
      • वह स्पीकर के रूप में भी कार्य करता है जब सामान्य स्पीकर सदन की बैठक से अनुपस्थित रहता है।
      • यदि स्पीकर ऐसी बैठक से अनुपस्थित रहता है तो वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी करता है।
      • डिप्टी स्पीकर के पास एक विशेष विशेषाधिकार होता है अर्थात् जब भी उसे संसदीय समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है।
  • उपसभापति और दसवीं अनुसूची (अपवाद):
    • दसवीं अनुसूची के पैरा 5 (आमतौर पर दलबदल विरोधी कानून के रूप में जाना जाता है) के अनुसार, एक व्यक्ति जो स्पीकर/डिप्टी स्पीकर चुना गया है, उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा:
      • यदि वह उस पद के लिये अपने निर्वाचन के कारण स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है जिसमें वह चुनाव से ठीक पहले था,
      • वह तब तक इस पद पर बना रहता है, जब तक उस राजनीतिक दल में फिर से शामिल नहीं होता है या किसी अन्य राजनीतिक दल का सदस्य नहीं बनता है।
    • यह छूट राज्यसभा के उपसभापति, राज्य विधानपरिषद के सभापति/उपसभापति और राज्य विधानसभा के स्पीकर/उपसभापति पर भी लागू होती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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