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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विमुद्रीकरण एक क्रन्तिकारी कदम-आर्थिक समीक्षा

  • 01 Feb 2017
  • 6 min read

सन्दर्भ

मुख्‍य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्‍यम ने आर्थिक समीक्षा पेश करने के बाद कहा कि पिछला साल सुदृढ़ अर्थव्‍यवस्‍था स्‍थायित्‍व वाला रहा। हालाँकि उन्‍होंने कहा कि अभी पूर्ण पुनर्मुद्रीकरण की ज़रुरत है। कर शोषण और निरंकुशता विश्‍वसनीयता को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • नोटबंदी के सन्दर्भ में भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा है कि थोड़े समय के लिये इससे तकलीफ होगी, खास कर असंगठित क्षेत्रों पर ज़्यादा असर होगा| लेकिन लंबी अवधि में इसके फायदे देखने को मिल सकते हैं|
  • विमुद्रीकरण से काला धन कम हो सकता है, कर संग्रह बढ़ सकता है| घरों में पड़ी नकदी बैंकों में वित्तीय इस्‍तेमाल के लिये जमा हुई है इसलिये कुछ समय के लिये तकलीफ होगी लेकिन बाद में फायदा होगा|
  • अरविंद सुब्रमण्‍यम के मुताबिक नकदी की कमी व्याप्त रही है लेकिन बैंकों में उल्लेखनीय मात्रा में नकदी जमा की गई जिसकी वज़ह से लेंडिंग रेट में कमी देखी गई| नकदी की कमी का प्रभाव छोटे एवं लघु उद्योंगों पर ज़्यादा देखने को मिला और रियल स्टेट सेक्टर भी इससे अछूता नहीं रहा है|

आर्थिक समीक्षा 2017 की मुख्य बातें

  • वैश्विक स्‍तर पर सुस्‍ती छाई रहने के बावजूद भारत अपेक्षाकृत कम महंगाई, राजकोषीय अनुशासन एवं सामान्‍य चालू खाता घाटे के साथ-साथ आम तौर पर स्थिर रुपया-डॉलर विनिमय दर के वृहद आर्थिक परिदृश्‍य को बरकरार रखने में सफल रहा है।
  • केन्‍द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी अग्रिम अनुमानों के मुताबिक, वित्‍त वर्ष 2016-17 के दौरान स्थिर बाजार मूल्‍यों पर जीडीपी वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है| जबकि वित्‍त वर्ष 2015-16 में यह दर 7.6 प्रतिशत थी। यह अनुमान मुख्‍यत: वित्‍त वर्ष के प्रथम 7-8 महीनों के लिये प्राप्‍त सूचना के आधार पर लगाया गया है।
  • वित्‍त वर्ष 2016-17 में नियत निवेश (सकल नियत पूंजी निर्माण) एवं जीडीपी का अनुपात (वर्तमान मूल्‍यों पर) 26.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि वित्‍त वर्ष 2015-16 में यह अनुपात 29.3 प्रतिशत था।
  • वित्‍त वर्ष 2017-18 में विकास की रफ्तार सामान्‍य हो जाने की आशा है, क्‍योंकि अपेक्षित मात्रा में नए नोट चलन में आ गए हैं, और इसके साथ ही विमुद्रीकरण के बाद आवश्‍यक कदम भी उठाए गए हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था फिर से तेज रफ्तार पकड़ कर वर्ष 2017-18 में 6.75 प्रतिशत से लेकर 7.5 प्रतिशत के स्‍तर तक आ सकती है।
  • अप्रत्‍यक्ष करों के संग्रह में अप्रैल–नवम्‍बर 2016 के दौरान 26.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
  • अप्रैल-नवम्‍बर 2016 के दौरान राजस्‍व व्‍यय में हुई खासी वृद्धि मुख्‍यत: सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल के फलस्‍वरूप वेतन में हुई 23.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी और पूंजीगत परिसंपत्तियों के सृजन के लिये अनुदान में की गई 39.5 प्रतिशत की वृद्धि की बदौलत संभव हो पाई।

क्या है आर्थिक समीक्षा?

  • केंद्रीय बजट (Union Budget) को पेश करने से एक दिन पहले देश का आर्थिक सर्वे प्रस्तुत किया जाता है| बजट से पूर्व संसद में वित्त मंत्री देश की आर्थिक दशा की जो आधिकारिक रिपोर्ट पेश करते हैं, वह आर्थिक समीक्षा कहलाता है|
  • इस समीक्षा में देश की आर्थिक हालत का लेखा-जोखा पेश किया जाता है| इसमें इन बातों का ज़िक्र होता है कि देश में विकास की दिशा क्या रही है, किस क्षेत्र में कितना निवेश हुआ, किस क्षेत्र में कितना विकास हुआ, किन योजनाओं को किस तरह अमल में लाया गया, जैसे सभी पहलुओं पर इस सर्वे में सूचना दी जाती है|
  • अर्थव्यवस्था, पूर्वानुमान और नीतिगत स्तर पर चुनौतियों संबंधी विस्तृत सूचनाओं का भी इसमें समावेश होता है| इसमें क्षेत्रवार हालातों की रूपरेखा और सुधार के उपायों के बारे में बताया जाता है| यदि संक्षेप में कहा जाए तो, यह सर्वेक्षण भविष्य में बनाई जाने वाली नीतियों के लिये एक दृष्टिकोण का काम करता है|
  • हालाँकि यह जानना आवश्यक है कि आर्थिक समीक्षा केवल सिफारिशें हैं और इन्हें लेकर कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती है| सरकार इन्हें केवल निर्देशात्मक रूप में ही लेती है|
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