दिल्ली सीरो-सर्वेक्षण | 22 Jul 2020
प्रीलिम्स के लिये:नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल, एलिसा मेन्स के लिये:सीरो अध्ययन में सामने आए प्रमुख बिंदुओं का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल’ (National Centre for Disease Control-NCDC) ने नई दिल्ली में COVID-19 के लिये एक सीरो निगरानी अध्ययन का आयोजन किया।
प्रमुख बिंदु
- सीरो निगरानी अध्ययन
- विशिष्ट एंटीबॉडी की पहचान करना: सीरो-सर्वेक्षण अध्ययनों में लोगों के ब्लड सीरम की जाँच करके किसी आबादी या समुदाय में ऐसे लोगों की पहचान की जाती है, जिनमें किसी संक्रामक रोग के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो जाती हैं।
- सीरो-निगरानी सर्वेक्षण इसलिये किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि दिल्ली की कुल आबादी में से कितने अनुपात में लोग कोरोना वायरस से प्रभावित हैं और प्रत्येक ज़िले से लिये गए नमूनों की संख्या उस क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में थी।
- यह शरीर में सक्रिय संक्रमण का पता लगाने में काम नहीं आता है बल्कि यह पूर्व में हुए संक्रमण (जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर वार करता है) को इंगित करता है।
- एलिसा का प्रयोग करके इम्युनोग्लोबुलिन G का परीक्षण करना: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा अनुमोदित COVID कवच एलिसा किट के माध्यम से IgG एंटीबॉडीज़ और कोविड-19 संक्रमण के लिये सेरा (रक्त का एक हिस्सा) नमूनों का परीक्षण किया गया।
- IgG (इम्यूनोग्लोबुलिन G) एक प्रकार का एंटीबॉडी है जो संक्रमण होने के लगभग दो सप्ताह में COVID-19 रोगियों में विकसित होता है और ठीक होने के बाद भी रक्त में मौजूद रहता है।
- एलिसा (एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट एसे) एक परीक्षण है जो रक्त में एंटीबॉडी का पता लगाता है, उनकी माप करता है।
- यह अध्ययन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की दिल्ली सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) द्वारा एक अत्यंत बहु-स्तरीय नमूना अध्ययन डिज़ाइन करने के बाद किया गया है। समय-समय पर बार-बार किया जाने वाला एंटीबॉडी परीक्षण यानी सीरो-निगरानी महामारी के प्रसार का आकलन करने के लिये महत्त्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध कराता है।
- नवीनतम अध्ययन का कवरेज:
- यह अध्ययन 27 जून, 2020 से 10 जुलाई, 2020 तक कराया गया था।
- दिल्ली के सभी 11 ज़िलों से 21,387 नमूने एकत्र कर उनका परीक्षण किया गया। इन नमूनों को दो समूहों 18 वर्ष तक की आयु और 18 वर्ष से अधिक आयु वाले समूह में विभाजित किया गया था।
- परिणाम:
- सर्वेक्षण में शामिल 23.48% लोगों के शरीर ने कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली, जो यह दर्शाता है कि वे नोवल कोरोनोवायरस (SARS-CoV-2) के संपर्क में आए।
- औसतन पूरी दिल्ली में IgG एंटीबॉडी की मौजूदगी लगभग 23.48% आबादी में पाई गई, इस अध्ययन के अनुसार कई संक्रमित लोगों में संक्रमण के लक्षण नहीं थे। इससे पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी के 11 ज़िलों में से आठ में 20 प्रतिशत से अधिक आबादी के शरीर में COVID-19 से लड़ने वाली एंटीबॉडी थी।
- सरकार की प्रतिक्रिया:
- महामारी के लगभग छह महीने में दिल्ली में केवल 23.48% लोग ही COVID-19 से प्रभावित हुए जो घनी आबादी वाले कई जगहों में से एक है।
- इसके लिये बीमारी का पता लगते ही लॉकडाउन लागू करना, रोकथाम के लिये प्रभावी उपाय करना और संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाने सहित कई निगरानी उपायों तथा सरकार द्वारा उठाए गए कई सक्रिय प्रयासों को श्रेय दिया जा सकता है। इसमें नागरिकों द्वारा COVID-19 से बचने के लिये उपयुक्त व्यवहार के अनुपालन की भी कम भूमिका नहीं है।
- हालाँकि जनसंख्या का एक अहम हिस्सा आज भी संक्रमण की संभावना के लिहाज से आसान लक्ष्य है। इसलिये रोकथाम के उपायों को उसी कड़ाई के साथ जारी रखने की आवश्यकता है।
- एक-दूसरे से सुरक्षित दूरी बनाए रखना, फेस मास्क/कवर का उपयोग, हाथों की साफ-सफाई, खांसी के संबंध में शिष्टाचार का पालन और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचना आदि गैर-चिकित्सकीय उपायों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिये।
- चिंता के कारण:
- शेष 77 प्रतिशत लोगों के लिये कोरोना वायरस का खतरा अभी भी बना हुआ है, इसलिये रोकथाम के उपाय समान कठोरता के साथ जारी रहने चाहिये।
- इसके अलावा, किसी व्यक्ति के COVID पॉज़िटिव होने के बाद उसके शरीर में मौजूद एंटीबॉडी के स्तर और अवधि में क्या परिवर्तन आया होगा इसके बारे में पर्याप्त वैज्ञानिक डेटा उपलब्ध नहीं है।
- पूर्व के सीरो-निगरानी सर्वेक्षण:
- इससे पहले अप्रैल 2010 में ICMR ने देश के 21 राज्यों के 83 ज़िलों में एक प्रारंभिक सीरो-प्रीवलेंस अध्ययन आयोजित किया था।
- इस सीरो-प्रीवलेंस अध्ययन के शुरुआती परिणामों के अनुसार, 0.73 फीसदी आबादी के संक्रमित होने की संभावना है जिसमें शहरी आबादी की संख्या 1.09 फीसदी है।
आगे की राह:
- अध्ययन के माध्यम से एकत्र किये गए आँकड़ों से रोग नियंत्रण कार्यक्रम में मदद मिलेगी।
- इस तरह के वैज्ञानिक अध्ययन बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं, भविष्य में संबंधित विषय पर रणनीतियाँ तैयार करते समय इन अध्ययनों को आधार बनाकर संभावित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।