जैव विविधता और पर्यावरण
तापमान में वृद्धि का एक और कारण : भू उपयोग में बदलाव
- 27 Jun 2018
- 6 min read
संदर्भ
अर्बन हीट आइलैंड विषय पर किये गए एक अध्ययन में दिल्ली के विभिन्न इलाकों में बढ़ते तापमान की एक नई वज़ह सामने आई है और यह है भू-उपयोग में तेज़ी से बदलाव। यह अध्ययन स्कूल ऑफ़ एन्वायरनमेंटल स्टडीज़ तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ अर्बन अफेयर्स द्वारा किया गया है। कई वर्षों तक चले इस अध्ययन के परिणामों को इंडिया हेबिटैट सेंटर में आयोजित ‘विश्व सतत् विकास सम्मलेन’ के दौरान जारी किया गया।
अर्बन हीट आइलैंड
- इसके बारे में सबसे पहले 1810 के दशक में ल्यूक हॉवर्ड ने चर्चा की थी, हालाँकि उन्होंने इसे कोई नाम नहीं दिया था।
- अर्बन हीट आइलैंड (UHI) ऐसे महानगरीय क्षेत्र को कहा जाता है, जो मानवीय गतिविधियों के कारण अपने आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अत्यधिक गर्म होता है।
- UHI प्रभाव मुख्यतः ज़मीन की सतह में परिवर्तन यानी बढ़ते शहरीकरण (जिसमें लघु तरंग विकिरण को संचित करने वाली सामग्रियों, जैसे- कंक्रीट, तारकोल आदि का उपयोग होता है) के कारण होता है।
- ऊर्जा के उपभोग से उत्पन्न ताप में वृद्धि होती है और पेड़-पौधों में कमी, वाहनों की बढ़ती संख्या तथा बढ़ती आबादी का भी इसमें योगदान होता है।
- ऐसे क्षेत्रों को भी ग्रीष्म द्वीप कहा जाता है, जहाँ की आबादी चाहे अधिक न हो, पर आसपास के क्षेत्रों की तुलना में वहाँ का तापमान लगातार बढ़ता रहता है।
- वास्तव में जितना तापमान होता है, UHI के प्रभाव से उससे कहीं अधिक महसूस किया जाता है।
- न्यूयॉर्क, लन्दन टोक्यो, मुंबई, दिल्ली जैसे विश्व के कई महानगर UHI के उदाहरण हैं।
- UHI की वज़ह से प्रदूषण बढ़ता है, वायु एवं जल की गुणवत्ता घटती है, जिससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ता है।
- मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। UHI शहरों में गर्म हवाओं (लू) के परिणाम एवं अवधि को बढ़ाते हैं, जिससे काफी संख्या में मौतें होती हैं।
कैसे किया गया अध्ययन?
- इस अध्ययन में चार वर्षों- 1998, 2003, 2011 तथा 2014 के दौरान दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों के बीच दो से तीन वर्ष के तापमान के आधार पर तुलना की गई।
अध्ययन के परिणाम
- अध्ययन से प्राप्त परिणामों के अनुसार, उन क्षेत्रों के तापमान में वृद्धि हुई है जहाँ भू उपयोग में बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है।
- भू उपयोग में परिवर्तन का प्रभाव जिन क्षेत्रों में सबसे अधिक देखा गया है वे क्षेत्र हैं पश्चिमी, दक्षिणी तथा उत्तरी दिल्ली।
- हरे-भरे तथा कृषि योग्य स्थानों पर औद्योगिक इकाइयाँ लगाने, रिहायशी कालोनी विकसित करने तथा विकास से संबंधित अन्य कार्यों के कारण इन भू-भागों के उपयोग में बदलाव हुआ जिसके परिणामस्वरूप इन स्थानों के तापमान में भी एक से तीन डिग्री तक वृद्धि देखी गई।
तापमान में वृद्धि का कारण
- पेड़-पौधे तथा फसलें वातावरण में उपस्थित नमी को सोखकर वाष्पीकरण के माध्यम से वातावरण को अनुकूल बनाए रखने में मदद करते हैं लेकिन इनके स्थान पर भवन निर्माण या औद्योगिक इकाई विकसित करने पर इनके निर्माण में प्रयुक्त होने वाली ईंटें, कंक्रीट तथा टाइल्स इत्यादि ऐसा नहीं करती हैं, अतः इन स्थानों का तापमान बढ़ जाता है।
तापमान में कमी लाने के लिये सुझाव
इस अध्ययन में तापमान में कमी लाने के लिये दिये गए सुझाव निम्नलिखित हैं:
- कृषि योग्य भूमि को खाली और सूखा नहीं रखना चाहिए क्योंकि जिन स्थानों पर खाली कृषि भूमि अधिक तथा हरियाली कम देखी गई है उन्हीं स्थानों के तापमान में वृद्धि हुई है।
- यदि किसी कृषि योग्य भूमि पर लंबे समय तक किसी प्रकार की फसल न उगाई जाए तो ऐसे स्थानों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये।
- हरित क्षेत्रों में वृद्धि की जाए।
- सडकों के किनारे किया जाने वाला पौधरोपण भी तापमान में हो रही वृद्धि को रोकने में सहायक हो सकता है।
- फुटपाथ पर सीमेंट वाली ईंटों के स्थान पर इंटरलॉकिंग टाइल्स का इस्तेमाल किया जाना चाहिये जिससे वर्षा का पानी इनके बीच के अंतरालों से होता हुआ ज़मीन के अंदर प्रवेश कर सके।
- छत पर किये जाने वाले पौधरोपण को बढ़ावा दिया जाए।
- ग्रीन बिल्डिंग कोड को बढ़ावा देते हुए घर तथा ऑफिस की दीवारों पर हल्के रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- दिल्ली का तापमान साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। विकास के नाम पर वृक्षों का दोहन किया जा रहा है जिसके कारण हर साल गर्मीं भीषण रूप धारण करती जा रही है। इस बढ़ती समस्या पर गंभीरता से विचार किये जाने के साथ-साथ इसके समाधान के लिये उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।