भूगोल
मानसून की वापसी में विलंब
- 22 Oct 2019
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चर्चा में क्यों?
ऑस्ट्रेलिया के मौसम विज्ञान विभाग ने इस साल भारत से मानसून की देर से वापसी की वजह से ऑस्ट्रेलिया को व्यापक रूप से प्रभावित होने का अनुमान लगाया है।
मौलिक संकल्पना:
- सभी मानसून प्रणालियों का मूल चालक वसंत ऋतु (भारत में फरवरी-मार्च) के दौरान स्थल भाग का सौर तापन है जो स्थल एवं समुद्र के तापमान में अंतर स्थापित करने में मदद करता है।
- पानी की तुलना में भूमि तेज़ी से गर्म होती है (पानी की विशिष्ट ऊष्मा स्थल की तुलना में अधिक होती है), जिससे स्थल पर निम्न दाब का विकास होता है। इससे समुद्र से स्थल की ओर हवाएँ चलती हैं (उच्च दबाव वाले क्षेत्र से निम्न दबाव वाले क्षेत्र में हवा का प्रवाह होता है)।
- गर्मी के मौसम में मानसून क्षेत्रों, मुख्य रूप से भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में इन नमीयुक्त हवाओं के आरोहण से संवहनीय वर्षा होती है।
- मौसम में परिवर्तन के साथ सूर्य की सीधी किरणों का उत्तरी गोलार्द्ध से भूमध्य रेखा और तत्पश्चात् दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर स्थानांतरित होने के क्रम में एशियाई भूमि की तुलना में आसन्न महासागरों का तापमान अधिक हो जाता है।
- स्थल भाग की अपेक्षा महासागरों में निम्न वायुदाब के विकास के परिणामस्वरूप, हवाओं की दिशा परिवर्तित हो जाती है और ऑस्ट्रेलिया में गर्मी (दक्षिण गोलार्द्ध में गर्मी, दिसंबर-फरवरी) के दौरान दक्षिणी गोलार्द्ध में मानसूनी वर्षा होती है।
संदर्भ:
- सकारात्मक हिंद महासागरीय द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole- IOD), जो पूर्व की अपेक्षा हिंद महासागर के पश्चिमी बेसिन को अधिक गर्म करता है, भारतीय मानसून को बढ़ावा देता है जबकि ऑस्ट्रेलियाई ग्रीष्मकालीन मानसून के लिये अभिशाप माना जाता है।
- वर्ष 2019 में, भारत में मानसून ने 1 सितंबर की सामान्य तारीख के मुकाबले 9 अक्तूबर को अपनी वापसी शुरू की जो कि रिकॉर्डेड इतिहास में मानसून के सर्वाधिक विलंब से होने वाली वापसी है। पिछली सर्वाधिक विलंब वाली वापसी वर्ष 1961 में हुई थी जब 1 सितंबर की औसत तारीख की तुलना में 1अक्तूबर को इसकी वापसी हुई थी।
- भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 2019 में भारतीय मानसून सकारात्मक IOD के योगदान की वजह से हाल के वर्षों में 10 प्रतिशत के अधिशेष के साथ सर्वाधिक मज़बूत था।
- वर्तमान जलवायु मॉडल द्वारा प्रदत्त संकेतों के अनुसार सकारात्मक IOD लंबे समय तक बना रह सकता है और साथ ही उत्तरी गोलार्द्ध से दक्षिणी गोलार्द्ध तक मानसून गर्त के स्थानांतरण को विलंबित कर सकता है।
सकारात्मक हिंद महासागरीय द्विध्रुव |
नकारात्मक हिंद महासागरीय द्विध्रुव |
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ऑस्ट्रेलिया में मानसून में देरी
- एक सकारात्मक IOD का सामान्य से अधिक अवधि तक बना रहना ऑस्ट्रेलियाई मानसून की शुरुआत में देरी के लिये जिम्मेवार एक प्रमुख कारक है।
- मानसून की वापसी अपने आप में एक लंबी प्रक्रिया है। भारत में उत्तर-पूर्व मानसून के निकट आने के बाद ही मानसून गर्त दक्षिणी गोलार्ध में पहुँचता है।
- इस साल हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका (पश्चिम हिंद महासागर) के आस-पास के पानी के तापमान में वृद्धि ने हिन्द महासागरीय बेसिन के पूर्वी एवं पश्चिमी क्षेत्रों की ताप प्रवणता में और अधिक वृद्धि कर दी है।
- IOD का क्षरण दिसंबर की शुरुआत में मानसून का गर्त दक्षिणी गोलार्द्ध में चले जाने के बाद होता है। यह तब होता है जब भारत में उत्तर-पूर्व मानसून निकट आ जाता है।
ऑस्ट्रेलियाई कृषि पर प्रभाव
- विलंबित मानसून ऑस्ट्रेलियाई ग्रीष्मकालीन फसलों के लिये नुकसानदायक हो सकता है। इसके कारण वर्ष 2019–20 में फसल गहन क्षेत्र में करीब 28 प्रतिशत की कमी की संभावना है।
- ऑस्ट्रेलियाई कृषि विभाग के अनुसार, क्वींसलैंड और उत्तरी न्यू साउथ वेल्स में मिट्टी की नमी के निम्न स्तर तथा प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के कारण ग्रीष्मकालीन फसल के उत्पादन में 20 प्रतिशत की कमी का अनुमान है।
- आमतौर पर, सकारात्मक IOD की वजह से दक्षिणी और मध्य ऑस्ट्रेलिया में शीत-वसंत काल में वर्षा औसत से कम होती है तथा दक्षिणी क्षेत्रों में दिन के समय गर्मी बढ़ जाती है।
- ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो ने जलवायु मॉडल 2019 की शेष अवधि और वर्ष 2020 की पहली तिमाही के लिये एक उदासीन एल-नीनो-दक्षिणी दोलन (El Niño-Southern Oscillation- ENSO) का अनुमान लगाया है। ध्यातव्य है कि जब ENSO उदासीन होता है, तो यह ऑस्ट्रेलियाई और वैश्विक जलवायु को बहुत कम प्रभावित करता है, जिसके कारण IOD आदि के सापेक्षिक प्रभाव अधिक हो जाते हैं।
स्रोत: द हिंदू