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चेरापूंजी में वर्षा की मात्रा में गिरावट

  • 23 Feb 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन में चेरापूंजी (मेघालय) और उसके आस-पास के क्षेत्रों में पिछले 119 वर्षों के दौरान वर्षा के पैटर्न में घटती हुई प्रवृत्ति देखी गई।

  • मेघालय के पूर्वी खासी पहाड़ी ज़िले का मासिनराम गाँव चेरापूंजी को पीछे छोड़कर विश्व का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान बन गया है। मासिनराम में एक वर्ष में 10,000 मिलीमीटर से अधिक वर्षा होती है।
  • चेरापूंजी से मासिनराम की दूरी सड़क मार्ग से लगभग 81 किलोमीटर है, हालाँकि दोनों के बीच सीधी दूरी 15.2 किमी. है।

Cherrapunjee

प्रमुख बिंदु;

वर्षा में कमी:

  • वर्ष 1973-2019 की अवधि के दौरान वार्षिक औसत वर्षा में लगभग 0.42 मिमी. प्रति दशक की घटती प्रवृत्ति देखी गई।
    • यह सात स्टेशनों (अगरतला, चेरापूंजी, गुवाहाटी, कैलाशहर, पासीघाट, शिलॉन्ग और सिलचर) के साथ सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण था।

कारण:

  • बढ़ता हुआ तापमान:
    • हिंद महासागर के तापमान में परिवर्तन का इस क्षेत्र में होने वाली वर्षा पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
      • जून 2020 में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पहली जलवायु परिवर्तन आकलन रिपोर्ट में उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि को इंगित किया गया था।
  • मानवीय हस्तक्षेप में वृद्धि:
    • उपग्रह संबंधी आँकड़ों से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में पूर्वोत्तर भारत के वानस्पतिक क्षेत्र में कमी आई है, जिसका अर्थ है कि बदलते वर्षा पैटर्न में मानवीय प्रभाव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • कृषि का पारंपरिक तरीका जिसे झूम खेती (Shifting Cultivation) के रूप में जाना जाता है, का उपयोग अब कम हो गया है और इसे अन्य तरीकों से प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
      • इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हो रही है। अध्ययन में मुख्य रूप से वर्ष 2006 के बाद वनस्पति आवरण में कमी और कृषि भूमि क्षेत्रों में वृद्धि देखी गई है।
      • इस विश्लेषण में प्रतिवर्ष वानस्पतिक क्षेत्र में 104.5 वर्ग किमी. की कमी देखी गई।
      • दूसरी ओर, वर्ष 2001-2018 की अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में (182.1 वर्ग किमी. प्रतिवर्ष) और शहरी एवं निर्मित/बिल्ट-अप क्षेत्र (0.3 वर्ग किमी. प्रतिवर्ष) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के अध्ययन का महत्त्व:

  • चूँकि उत्तर-पूर्व भारत का ज़्यादातर क्षेत्र पहाड़ी है और सिंधु-गंगा के मैदानों का विस्तार है, इसलिये यह क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु में बदलाव के लिये अत्यधिक संवेदनशील है।
  • यह ध्यान रखना होगा कि जलवायु परिवर्तन के लक्षण चेरापूंजी में कम वर्षा जैसी घटनाओं से ही स्पष्ट होंगे।
  • उत्तर-पूर्व भारत, देश के सर्वाधिक वानस्पतिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्त्व करता है और इसमें दुनिया की 18 जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट शामिल हैं, जो इसकी हरियाली और जलवायु-परिवर्तन संवेदनशीलता के संदर्भ में इसके महत्त्व को दर्शाते है।

चेरापूंजी और मासिनराम में उच्च वर्षा का कारण:

  • चेरापूंजी (ऊँचाई-1313 मीटर) और मासिनराम (ऊँचाई-1401.5 मीटर) मेघालय में पूर्वी खासी पहाड़ियों के दक्षिणी ढलानों पर स्थित है।
    • मेघालय एक पहाड़ी राज्य है जिसमें कई घाटियाँ और उच्चभूमि पठार हैं।
    • पठारी क्षेत्र में ऊँचाई 150 मीटर से 1,961 मीटर के बीच होती है। इसके मध्य भाग में खासी पहाड़ियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई सर्वाधिक है।
  • चेरापूंजी-मासिनराम में वर्षा मानसूनी पवनों द्वारा समर्थित पर्वतीय स्थिति के कारण होती है।
  • बांग्लादेश के मैदानी क्षेत्रों से गुज़रने वाली एवं बंगाल की खाड़ी से उत्तर की ओर चलने वाली आर्द्र पवनें खासी पहाड़ियों की संकीर्ण घाटियों में प्रवाहित होती हैं, जिनका आरोहण होने के कारण संघनन की प्रक्रिया होती है, इसकी वजह से ढलान की ओर बादलों की उत्पत्ति होती है एवं अंततः वर्षा होती है।

स्थानांतरित कृषि:

  • शिफ्टिंग खेती, जिसे स्थानीय रूप से 'झूम खेती' कहा जाता है, यह पूर्वोत्तर भारत के स्वदेशी समुदायों के बीच कृषि की एक व्यापक रूप से प्रचलित प्रणाली है। इस प्रथा को ‘स्लैश-एंड-बर्न’ एग्रीकल्चर के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि किसान इस भूमि को कृषि उद्देश्यों हेतु परिवर्तित करने के लिये जंगलों और वनों को जलाते हैं।
  • यह कृषि भूमि को तैयार करने का एक बहुत आसान और तेज़ तरीका है।
  • इसमें झाड़ियों और खरपतवारों को आसानी से हटाया जा सकता है। वहीं अपशिष्ट पदार्थों के जलने से खेती के लिये आवश्यक पोषक तत्त्व मिलते हैं।
  • यह एक परिवार को भोजन, चारा, ईंधन और आजीविका प्रदान करता है और उनकी पहचान से निकटता से जुड़ा होता है।
  • जंगलों और पेड़ों को काटने से मिट्टी का क्षरण होता है और यह नदियों के प्रवाह को भी प्रभावित कर सकता है।

स्रोत- द हिंदू

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