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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह वन एवं बागान विकास निगम लिमिटेड को बंद करने का निर्णय

  • 18 Aug 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ? 

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति ने पोर्ट ब्‍लेयर स्थित केंद्र सरकार के एक उपक्रम ‘अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह वन एवं बागान विकास निगम लिमिटेड’ (एएनआईएफपीडीसीएल) को बंद करने और समस्‍त कर्मचारियों की देनदारियों की अदायगी को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • उपर्युक्‍त उपक्रम को बंद कर देने से भारत सरकार की ओर से इसको मिलने वाली  अनुत्‍पादक ऋणों को बंद करने में मदद मिलेगी तथा इससे परिसं‍पत्तियों का और अधिक उत्‍पादक इस्‍तेमाल करना संभव हो पाएगा।
  • इच्‍छुक कर्मचारियों को स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना/स्‍वैच्छिक पृथक्करण योजना (VRS/VSS) पैकेज की पेशकश करके और वीआरएस/वीएसएस को न अपनाने वाले कर्मचारियों की औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत छंटनी करके इस उद्देश्‍य की पूर्ति की जाएगी। इसमें अन्‍य देनदारियों, यदि कोई हो, का निपटान करना भी शामिल है।
  • वर्तमान में इस निगम में 836 कर्मचारी कार्यरत हैं।

एएनआईएफपीडीसीएल क्या है ? 

  • भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के एक उपक्रम के रूप में एएनआईएफपीडीसीएल की स्थापना वर्ष 1977 में गई थी। 
  • इसका उद्देश्य अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में वानिकी संबंधी बागानों का विकास एवं प्रबंधन करना था।  
  • यह तीन मुख्य परियोजनाओं यथा वानिकी परियोजना, रेड ऑयल पाम प्रोजेक्ट और कटछल रबर परियोजना का संचालन करता रहा है। 
  • वानिकी परिचालन इस निगम की मुख्य गतिविधियों में शामिल था और इसने कुल राजस्व में लगभग 75 प्रतिशत का योगदान दिया। 

घाटे का कारण

  • उच्चतम न्यायालय द्वारा 10 अक्टूबर, 2001 और 7 मई, 2002 को सुनाए गए फैसले के मद्देनज़र वानिकी गतिविधियों पर रोक लगाए जाने के कारण एएनआईएफपीडीसीएल वर्ष 2001 से ही घाटे वाले उद्यम में तब्दील हो गया था। इसके परिणामस्वरूप यह अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हो गया था। 
  • निगम के कर्मचारियों को वेतन वितरण के साथ-साथ वैधानिक भुगतान सुनिश्चित करने के लिये भारत सरकार ने ब्याज वाले ऋण के रूप में एएनआईएफपीडीसीएल को वित्तीय सहायता मुहैया कराई।
  • पिछले 15 वर्षों के दौरान विभिन्न समितियाँ गठित की गईं और मंत्रालय द्वारा समय-समय पर प्रोफेशनल एजेंसियों की सेवाएँ ली गईं। उन्होंने कर्मचारियों की उचित संख्या तय करने सहित उन सभी संभावनाओं पर व्यापक दृष्टि से गौर किया है जिनका उपयोग वन निगम के पुनरुद्धार के लिये किया जा सकता है। 
  • इन निर्णयों के आधार पर कई प्रस्तावों पर गौर किया गया, लेकिन इनमें से कोई भी प्रस्ताव कारगर साबित नहीं हुआ। इसके बाद व्यापक रूप से विचार-विमर्श करने के बाद भारत सरकार ने इस निगम को बंद करने का निर्णय लिया है।
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