सिंधु घाटी लिपि की समझ | 08 Jan 2025

प्रिलिम्स के लिये:

सिंधु घाटी सभ्यता, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सिंधु घाटी लिपि, बौस्ट्रोफेडन शैली।

मेन्स के लिये:

प्राचीन भारतीय सभ्यताएँ, प्राचीन भारत में भाषा का विकास, प्राचीन लिपियों को समझना

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सिंधु घाटी सभ्यता की हड़प्पा (सिंधु घाटी) लिपि को सफलतापूर्वक समझने वाले व्यक्ति को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार देने की घोषणा की। 

  • इससे हड़प्पा लिपि के सदियों पुराने रहस्य पर प्रकाश पड़ा, जिसका अर्थ समझने के लिये विद्वानों द्वारा 100 से अधिक प्रयास किए गए लेकिन वे सफल नहीं हो सके।

नोट: समझ से तात्पर्य अज्ञात प्रतीकों या लिपियों को पठनीय भाषा में अनुवाद करने की प्रक्रिया से है

सिंधु घाटी लिपि क्या है?

  • परिचय: सिंधु घाटी सभ्यता (2600-1900 ईसा पूर्व) के दौरान वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत में प्रयुक्त सिंधु घाटी लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
    • इस लिपि की खोज वर्ष 1920 के दशक में सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में की गई थी। यह मुहरों, टेराकोटा की पट्टियों एवं धातु पर अंकित है जिसमें चित्रलेख तथा पशु या मानव आकृतियाँ हैं।
  • लेखन शैल: सामान्यतः दाएँ से बाएँ लिखे गए लंबे वाक्यों में कभी-कभी बौस्ट्रोफेडॉन लिपि (पंक्तियों के बीच दिशाओं का परिवर्तन) का प्रयोग किया गया है।
  • संक्षिप्त लेख: अधिकांश लेख छोटे (औसतन 5 अक्षर) हैं सबसे लंबे ज्ञात टेक्स्ट में 26 प्रतीक हैं।
    • इसकी संक्षिप्तता के कारण इस बात पर विमर्श है कि क्या यह एक पूर्ण विकसित भाषा की परिचायक है या यह केवल प्रतीकात्मक संकेतन है।
  • लिपि की प्रकृति: संभवतः एक लोगोसिलेबिक प्रणाली (जिसमें चित्रलेखों तथा अक्षरों का संयोजन था) पर आधारित थी, जो अपने समय की अन्य लिपियों के समान थी।
    • इस संदर्भ में विद्वानों ने रिबस सिद्धांत को प्रस्तावित किया है जहाँ प्रतीक अप्रत्यक्ष रूप से ध्वनियों या विचारों के परिचायक हैं।

  • उद्देश्य और कार्य: इस लिपि का उपयोग व्यापार, कर अभिलेखों एवं पहचान के लिये किया जाता था लेकिन इसकी भूमिका अभी भी अस्पष्ट है। गुणज, जोड़ एवं स्वास्तिक जैसे कुछ प्रतीकों का शैक्षिक या धार्मिक महत्त्व भी हो सकता है।

    • कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह एक अंकन प्रणाली थी, न कि कोई भाषा-आधारित लिपि।

  • इसकी भाषा के बारे में सिद्धांत:

    • द्रविड़ परिकल्पना: यह असको परपोला और भारतीय शोधकर्त्ता इरावतम महादेवन द्वारा समर्थित है।
      • इसमें दावा किया गया है कि इस लिपि का आधार द्रविड़ है एवं इसका संबंध प्राचीन तमिल से है।
      • उदाहरण: परपोला का सुझाव है कि सिंधु लिपि में 'मछली' का प्रतीक "मीन" का परिचायक है जिसका द्रविड़ भाषाओं में अर्थ "मछली" और "तारा" दोनों ही होता है, जो पुरानी तमिल शब्दावली के अनुरूप है। 
        • ऐसा माना जाता है कि कुछ 'संख्या + मछली' अनुक्रम द्वारा तारा समूहों को संदर्भित किया गया है, हालांकि यह अभी भी अप्रमाणित है।

 

  • संस्कृत से जुड़ाव: एसआर राव जैसे प्रारंभिक विद्वानों ने इस लिपि को संस्कृत से जोड़ते हुए इसे वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व) से संबंधित बताया।
    • हड़प्पा एवं वैदिक संस्कृतियों के बीच समयरेखा में विसंगति के कारण इस सिद्धांत पर विवाद हुआ है।
  • गैर-भाषाई प्रतीक: स्टीव फार्मर और पैगी मोहन जैसे आलोचकों का तर्क है कि ये प्रतीक कोई भाषा नहीं थे बल्कि राजनीतिक, आर्थिक या धार्मिक चिह्नों से संबंधित की एक प्रणाली का हिस्सा थे।

नोट: 

  • लिपि: यह किसी भाषा के शब्दों को दर्शाने के लिये प्रतीकों या वर्णों का प्रयोग करके लिखने की एक प्रणाली है जैसे लैटिन, देवनागरी या सिंधु लिपि।
  • भाषा: यह अर्थ संप्रेषित करने के लिये ध्वनियों, शब्दों एवं व्याकरण का प्रयोग करने वाली संचार प्रणाली है जैसे अंग्रेजी, हिंदी या तमिल।

सिंधु घाटी लिपि को समझने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • द्विभाषी ग्रंथों का अभाव: प्राचीन लिपियों को समझना अक्सर द्विभाषी ग्रंथों पर निर्भर करता है जैसे रोसेटा स्टोन, जिससे मिस्र की चित्रलिपि का ग्रीक अनुवाद मिला। 
    • हालाँकि, सिंधु लिपि में ऐसे तुलनात्मक अभिलेखों का अभाव है जिससे प्रतीकों को ध्वनियों या अर्थों से जोड़ना कठिन हो जाता है।
    • वर्ष 1799 में नील डेल्टा के पास खोजे गए रोसेटा स्टोन में ग्रीक, डेमोटिक तथा चित्रलिपि में लिखा संदेश मिला। इससे विद्वानों को प्राचीन मिस्र की चित्रलिपि को समझने में मदद मिली।
  • संक्षिप्त एवं खंडित लेख: अधिकांश लेख संक्षिप्त हैं, जिनमें प्रति लेख औसतन पाँच अक्षर हैं।
    • लंबे लेखों की कमी से व्याकरण, वाक्य विन्यास या भाषाई व्याख्या में प्रयुक्त पैटर्न का विश्लेषण करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • अज्ञात भाषा: इस लिपि से संभवतः ऐसी भाषा का प्रतिनिधित्व होता है जिसका कोई समानांतर न न होने से इसका तुलनात्मक अध्ययन करना कठिन हो जाता है। 
    • इस संदर्भ में सिद्धांतों द्वारा इसके द्रविड़, इंडो-आर्यन या लुप्त भाषा समूह से जुड़े होने का सुझाव दिया गया है लेकिन इसमें से कोई भी निर्णायक नहीं है।
  • प्रतीक भिन्नताएँ: एसआर राव (1982) ने लिपि में 62 संकेत प्रस्तावित किये, लेकिन आगे चलकर असको परपोला (1994) ने 425 संकेतों का सुझाव दिया। 
    • वर्ष 2016 में ब्रायन के. वेल्स ने 676 संकेत प्रस्तावित किये, लेकिन सटीक संख्या एवं उनके अर्थ पर बहस जारी रहने से भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
    • सीमित पुरातात्विक साक्ष्य: 3,500 हड़प्पा मुहरों का सीमित संग्रह, अज्ञात स्थल तथा कलाकृतियों का क्षरण, इस लिपि के विश्लेषण में बाधक हैं।
  • तकनीकी बाधाएँ: हालाँकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन सीमित डेटा सेट के कारण मौजूदा मॉडलों को सिंधु लिपि को समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। लघु शिलालेखों में पैटर्न की पहचान करना अभी भी एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।

सिंधु लिपि को समझना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • हड़प्पा सभ्यता की भाषा को जाने के लिये: भाषा परिवार (द्रविड़, इंडो-आर्यन या अन्य) की पहचान करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्राचीन भारत के भाषाई इतिहास पर मूल्यवान जानकारी प्रदान करेगा।
  • हड़प्पा संस्कृति को समझने हेतु: इसके स्पष्टीकरण से हड़प्पा की धार्मिक मान्यताओं, सामाजिक मानदंडों और प्रशासन एवं शासन सहित सामाजिक-राजनीतिक संरचनाओं का पता लगाया जा सकता है।
  • ऐतिहासिक निरंतरता: हड़प्पा तथा उसके बाद की सभ्यताओं के बीच संबंध स्थापित करने से भारत के सांस्कृतिक और भाषाई विकास का पता लगाने में मदद मिल सकती है।
  • वैश्विक प्रासंगिकता: लिपि का अध्ययन प्राचीन लेखन प्रणालियों, मानव संचार विकास और मेसोपोटामिया और उससे आगे के देशों के साथ अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान को समझने में महत्त्वपूर्ण होगा।

    • इसकी व्याख्या से वैदिक प्रथाओं और द्रविड़ या इंडो-यूरोपीय भाषाओं के साथ संभावित संबंधों का पता लगाया जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: सिंधु घाटी लिपि को समझने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और हड़प्पा सभ्यता को गहराई से समझने के क्रम में इसके निहितार्थों का परीक्षण कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रारंभिक

प्रश्न. सिंधु घाटी सभ्यता के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2011)

  1. यह मुख्य रूप से एक पंथनिरपेक्ष सभ्यता थी। हालांकि, यहां धार्मिक तत्व मौजूद थे लेकिन वे बहुत प्रभावी नहीं थे।
  2. इस काल में भारत में कपास का उपयोग वस्त्र निर्माण के लिये किया जाता था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (c) 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सिंधु सभ्यता के लोगों की विशेषता/विशेषताएँ बताता है?  (2013)

  1. उनके यहाँ विशाल महल और मंदिर थे।
  2. वे मातृदेवताओं और पितृदेवताओं दोनों की पूजा करते थे।
  3. उन्होंने युद्ध में घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों को नियोजित किया था।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही कथन/कथनों का चयन कीजिये:

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 
(c) 1, 2 और 3 
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं 

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न 1: भारत की प्राचीन सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया और ग्रीस की सभ्यताओं से इस बात में भिन्न है कि भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराएँ आज तक भंग हुए बिना परिरक्षित की गई हैं। टिप्पणी कीजिये। (2015) 

प्रश्न 2: सिंधु घाटी सभ्यता की नगरीय आयोजन और संस्कृति ने किस सीमा तक वर्तमान युगीन नगरीकरण निवेश (इनपुट) प्रदान किये हैं? चर्चा कीजिये। (2014)