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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वि-वैश्वीकरण (De-Globalisation) : कारण और प्रभाव

  • 10 Apr 2018
  • 8 min read

संदर्भ 

‘भारतीय बनें और भारतीय उत्पाद खरीदें’ अंग्रेज़ों के खिलाफ यह आह्वान महात्मा गांधी की अगुवाई वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने सभी भारतीयों से घरेलू उद्योग को बचाने और जनता के बीच राष्ट्रीयता के प्रचार के लिये किया था। एक सदी बाद, अमेरिका का राजनीतिक नेतृत्व एक इसी तरह के विश्वास के साथ चीन के साथ व्यापारिक लड़ाई लड़ रहा है। वि-वैश्वीकरण की वजह से वैश्विक आर्थिक सुधारों में मंदी की वैश्विक आशंकाओं को हवा मिल रही है।

चर्चा में क्यों?

  • अमेरिका द्वारा मार्च में कुछ देशों से इस्पात और एल्यूमीनियम के आयात पर क्रमशः 25% और 10% का शुल्क लगाया गया था। इसके लिये राष्ट्रीय सुरक्षा और रोज़गार सृजन जैसे कारणों का हवाला दिया गया था। इसके बाद से ही ‘व्यापार युद्ध’ (Trade War) और ‘वि-वैश्वीकरण’ जैसे शब्द चर्चा में आए है। 
  • इसके बाद लगभग 1300 अन्य चीनी उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाया गया, जिसकी प्रतिक्रिया में चीन ने भी अखरोट, किशमिश और बादाम सहित कई अमेरिकी आयातों पर अतिरिक्त कर लगाकर जवाबी हमला किया।
  • अमेरिका और चीन के बीच छिड़े इस व्यापार युद्ध में लगभग $100-150 बिलियन राशि दाँव पर लगी हुई है।
  • यूरोपीय संघ भी कुछ अमेरिकी उत्पादों पर 25% के शुल्क के साथ इस व्यापार युद्ध में कूद गया है। 

वि-वैश्वीकरण (De-Globalisation) क्या है?  

  • वि-वैश्वीकरण (De-Globalisation) शब्द का उपयोग आर्थिक और व्यापार जगत के आलोचकों द्वारा कई देशों की उन प्रवृत्तियों को उजागर करने के लिये किया जाता है जो फिर से उन आर्थिक और व्यापारिक नीतियों को अपनाना चाहते हैं जो उनके राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखें।
  • ये नीतियाँ अक्सर टैरिफ अथवा मात्रात्मक बाधाओं का रूप ले लेती हैं जो देशों के बीच श्रम, उत्पाद और सेवाओं के मुक्त आवागमन में बाधा उत्पन्न करती हैं।
  • इन सभी संरक्षणवादी नीतियों का उद्देश्य आयात को महँगा बनाकर घरेलू विनिर्माण उद्योगों को   रक्षा प्रदान करना और उन्हें बढ़ावा देना है।

वि-वैश्विकरण प्रवृतियों के कारण?

  • वैश्वीकरण के लाभों का असमान वितरण।
  • विकसित देशों में आय की बढ़ती असमानताएँ और रोज़गारों का नुकसान।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रसार और श्रम के मुक्त आवागमन के कारण विकसित देशों में ऐसी धारणाओं को बल मिला है कि विकासशील देशों के श्रमिकों के कारण विकसित देशों में रोज़गारों का नुकसान हुआ है।
  • इससे विकसित देशों में कठोर वीज़ा व्यवस्था और उद्योगों के स्थानांतरण की मांग को बढ़ावा मिला है।
  • 2008 में आई वैश्विक मंदी ने ऐसी स्थिति को और ज़्यादा गंभीर कर दिया फलस्वरूप पूरे विश्व में संरक्षणवादी नीतियों को अपनाने की मांग में वृद्धि हुई।
  • विभिन्न देशों में लोक-लुभावन राजनीतिक नेतृत्व के उदय से विश्व स्तर पर ऐसी प्रवृत्तियाँ तेज़ी से बढ़ी हैं।
  • ISIS जैसे आतंकवादी संगठनों के उदय, विकसित देशों में आतंकवादी हमलों की बढती घटनाएँ और उभरते नए सुरक्षा खतरों ने प्रवासी संकट को बढ़ावा दिया है।
  • इन कारकों के वैश्विक मंदी के साथ संयुक्त हो जाने से आर्थिक संरक्षणवाद की प्रवृतियाँ देखने को मिल रही हैं।

यह महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • हम अभी भी एक उच्च वैश्वीकृत दुनिया में रहते हैं और ऐसे संरक्षणवादी कदम उन बुनियादी नियमों के विपरीत है जिनके आधार पर वैश्विक विकास का अनुमान लगाया जाता है तथा विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे संगठन वैश्विक व्यापार को विनियमित करते हैं।
  • जब बड़े, औद्योगीकृत और समृद्ध राष्ट्र वस्तुओं और सेवाओं के प्रवेश को कठिन बनाने के लिये आगे आते हैं तो इससे उनके कई व्यापारिक भागीदारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • वैश्विक आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति और ब्याज दरों की सभी गणनाओं में फिर से गड़बड़ हो सकती है।
  • उदाहरण के लिये, अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन से बहुत सस्ती विनिर्मित वस्तुओं का आयात करती है। यदि टैरिफ युद्ध में अमेरिका में आयात की लागतें बढ़ती हैं, तो घरेलू मुद्रास्फीति में बहुत तेज़ी से वृद्धि हो सकती है और अमेरिकी ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती हैं।
  • भारत पर प्रभाव
  • हाल ही में लिये गए इन टैरिफ निर्णयों का भारत पर ज़्यादा प्रभाव नहीं देखने को मिलेगा क्योंकि अमेरिका, भारत से अपने स्टील और एल्यूमिनियम के कुल आयात का केवल 1% ही प्राप्त करता है।
  • लेकिन सेवाओं और श्रम के संदर्भ में वि-वैश्वीकरण से सेवाओं के निर्यात एवं उच्च शिक्षा तथा नौकरियों के लिये विदेशों में प्रवास करने वाले भारतीय नागरिकों पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है।  

क्या वि-वैश्वीकरण चिंता का विषय है?

  • वि-वैश्वीकरण वितीय बाज़ार के निवेशकों के लिये चिंता का विषय है। मार्च में व्यापार युद्ध के चर्चा में आने के बाद से BSE (Bombay Stock Exchange) के मेटल इंडेक्स (Metals Index) में 13 फीसदी की गिरावट हुई है।
  • वि-वैश्वीकरण से वैश्विक वित्तीय बाज़ारों की स्थिति में आ रहे सुधार की गति मंद पड़ सकती है। जिस सिद्धांत को अभी वस्तुओं पर लगाया गया है, उसे लोगों पर भी लगाया जा सकता है, इससे वैश्विक श्रम बाज़ार की गतिशीलता प्रभावित हो सकती है।
  • अमेरिका और ब्रिटेन पहले ही बाहर से आने वाले लोगों के लिये बहुत कठोर अप्रवासन मानदंडों का निर्माण कर चुके हैं।
  • यद्यपि टैरिफ युद्ध वि-वैश्वीकरण नीतियों का एक पहलू है लेकिन कुछ देशों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
  • यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के कारण बिना किसी व्यापारिक समझौते के दोनों पक्षों की कंपनियों को प्रतिवर्ष लगभग $80 बिलियन तक की अतिरिक्त कीमत चुकानी पड़ सकती है।
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