डेटा पॉइंट: मैनुअल स्केवेंजर्स के हालात | 14 Dec 2018

संदर्भ


देश भर में मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या विभिन्न अनुमानों के मुताबिक भिन्न-भिन्न है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दिये गए आँकड़ों के मुताबिक, 8 दिसंबर, 2018 तक 13,973 मैनुअल स्केवेंजर्स की पहचान की गई है। मैनुअल स्केवेंजर्स के साथ होने वाली हालिया घटनाओं से सबक लेते हुए पुनर्वास उपायों की प्रगति और वर्तमान परिदृश्य पर एक नज़र डालते हैं।


सीवर में होने वाली मौतें

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  • 2015-18 के दौरान सीवर में हुई मौतों में सबसे ज़्यादा मौतें गुजरात में हुई थीं। सुरक्षा उपकरणों तथा सफाई के दौरान नवाचार की कमी की वज़ह से गुजरात में 26 मैनुअल स्केवेंजर्स को अपनी जिंदगी गँवानी पड़ी।
  • गुजरात के बाद राजस्थान में 24 और उत्तर प्रदेश में 17 मैनुअल स्केवेंजर्स की मौत दर्ज की गई। (उपर्युक्त चित्र देखें...)
  • मैनुअल स्केवेंजर्स की सबसे कम मौतें पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश (प्रत्येक राज्य में दो) में दर्ज की गई।

मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या

manual scavengers

  • मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या के संदर्भ में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है जहाँ चिह्नित मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या 11,563 है।
  • छत्तीसगढ़ में चिह्नित मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या मात्र 3, जबकि मध्य प्रदेश में 36 है।
  • पूरे भारत में चिह्नित मैनुअल स्केवेंजर्स की कुल संख्या 13,973 है। मैनुअल स्केवेंजर्स की राज्यवार संख्या का अवलोकन करने हेतु उपर्युक्त चित्र देखें...

पुनर्वास हेतु उपाय

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  • 2015-16 में नकद सहायता पाने वाले लाभार्थियों की संख्या बढ़ी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद यह संख्या तेज़ी से कम (20 फरवरी, 2018 का आँकड़ा) होती गई। नकदी सहायता पाने वाले लाभार्थियों की संख्या का विस्तृत अवलोकन करने के लिये ग्राफ में नीली रेखा का विश्लेषण करें...
  • 2016-17 में कौशल विकास प्रशिक्षण के लाभार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज़ की गई लेकिन यह वृद्धि अगले वर्ष ही कम होने लगी। कौशल विकास प्रशिक्षण पाने वाले लाभार्थियों की संख्या का विस्तृत अवलोकन करने के लिये ग्राफ में पीली रेखा का विश्लेषण करें...
  • प्रदर्शित ग्राफ के अनुसार, कैपिटल सब्सिडी पाने वाले लाभार्थियों की संख्या 2016 से लगातार कम हो रही है। कैपिटल सब्सिडी पाने वाले लाभार्थियों की संख्या का विस्तृत अवलोकन करने के लिये ग्राफ में हरी रेखा का विश्लेषण करें...

स्रोत- द हिंदू