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सामाजिक न्याय

पुलिस संगठनों के आँकड़े: बीपीआरडी

  • 30 Dec 2020
  • 7 min read

चर्चा में क्यों: 

हाल ही में ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ (Bureau of Police Research and Development- BPRD) द्वारा ‘पुलिस संगठनों के आँकड़े’ (Data on Police Organisations) नामक रिपोर्ट जारी की गई है।

  • ये आँकड़े देश में पुलिसिंग के विभिन्न पहलुओं जैसे- महिला पुलिस, पुलिस खर्च, यातायात और संचार सुविधाएँ, पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों और पुलिस सेवा में विभिन्न जाति एवं वर्गों के लोगों के प्रतिनिधित्त्व आदि की स्थिति को दर्शाते हैं। 

प्रमुख बिंदु:

सामान्य डेटा:

  • सरकार द्वारा वर्ष 2019-20 में पुलिस प्रशिक्षण और इससे जुड़े अन्य व्यय पर कुल 1566.85 करोड़ रूपए खर्च किये गए।
  • ये आँकड़े दर्शाते हैं कि यद्यपि देश की आबादी में पिछड़ी जातियों, दलितों और आदिवासियों की हिस्सेदारी लगभग 67% है परंतु देश के विभिन्न पुलिस बलों में उनकी भूमिका मात्र 51% ही है। 
    • सभी राज्य सरकारों द्वारा इन श्रेणियों में आरक्षण प्रदान किये जाने के बावजूद भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका है।

रिक्त पद:

  • वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों के पुलिस बलों में 5.31 लाख से अधिक पद और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (Central Armed Police Forces-CAPF) में 1.27 लाख पद खाली हैं।  
    • इन आँकड़ों में सिविल पुलिस, ज़िला सशस्त्र पुलिस, विशेष सशस्त्र पुलिस और इंडिया रिज़र्व बटालियन से जुड़े डेटा को शामिल किया गया है।

अनुसूचित जनजाति:

  • भारत की आबादी में अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 8.6% है और पुलिस बलों में उनका प्रतिनिधित्त्व 12% है। जो उन्हें तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में लाता है।  
  • देश की आबादी में अपनी हिस्सेदारी की तुलना में पुलिस बलों में केवल अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्त्व ही बेहतर है, जबकि इस मामले अन्य सभी पिछड़े वर्गों का प्रदर्शन खराब ही रहा है।  

दलित: 

  • वर्ष 2019 के अंत में देश भर में विभिन्न पुलिस बलों के कुल पदों में से 14% का प्रतिनिधित्त्व दलितों समाज से आने वाले लोगों द्वारा किया गया।  
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल आबादी में दलितों की हिस्सेदारी 16.6% थी।  

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC):

  • प्रतिनिधित्त्व के मामले में OBCs की स्थिति सबसे खराब है, देश की कुल आबादी में OBCs की 41% हिस्सेदारी के बावजूद पुलिस बलों में उनका प्रतिनिधित्त्व मात्र 25% है। 

महिला पुलिस:

  • पुलिस बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व बहुत ही कम पाया गया है। देश की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी 48% होने के बावज़ूद देश के पुलिस बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व मात्र 10% ही है।  
    • हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में उनकी स्थिति में काफी सुधार हुआ है, गौरतलब है कि वर्ष 2014 से पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है।   
  • राष्ट्रीय स्तर पर प्रति महिला पुलिसकर्मी पर महिलाओं की आबादी का अनुपात 3,026 है जो कि बहुत ही कम है।
    • पुलिस बलों में महिलाओं का खराब प्रतिनिधित्त्व महिलाओं के खिलाफ अपराधों और महिला अपराधियों से निपटने में गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है।

अन्य अनुपात:

Police-Popn-ratio

  • स्वीकृत प्रति पुलिस कर्मचारी जनसंख्या (PPP)- 511.81। 
  • स्वीकृत  पुलिस जनसंख्या अनुपात (PPR) -195.39। 
    • PPR प्रति लाख जनसंख्या पर नियुक्त पुलिस कर्मियों की संख्या को दर्शाता है। गौरतलब है कि वर्ष 2018 (PPR-198) के आँकड़ों की तुलना में PPR में गिरावट देखने को मिली है। 
    • संयुक्त राष्ट्र  द्वारा अधिदिष्ट पुलिस-जनसंख्या अनुपात 220 से अधिक है।
  • स्वीकृत पुलिस एरिया अनुपात (PAR) (प्रति 100 वर्ग किलोमीटर)-  79.80। 

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD):

  • भारत सरकार ने वर्ष 1970 में गृह मंत्रालय के अधीन इसकी स्थापना की। 
  • पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के प्रमुख उद्देश्य के साथ इसने पुलिस अनुसंधान एवं परामर्श समिति (Police Research and Advisory Council, 1966) का स्थान लिया।
  • वर्ष 1995 में भारत सरकार ने सुधारात्मक प्रशासन से संबंधित कार्यों (Correctional Administration Work) को BPRD के अधीन सौंपने का निर्णय लिया।
    • फलस्वरूप कारागार सुधारों का क्रियान्वयन भी BPRD द्वारा ही सुनिश्चित किया जाता है।
  • वर्ष 2008 के दौरान भारत सरकार ने देश के पुलिस बलों का स्वरूप बदलने के लिये BPRD के प्रशासनिक नियंत्रण में नेशनल पुलिस मिशन (National Police Mission) के सृजन का निर्णय लिया।
  • वर्ष 2020 ने BPRD अपना 50वाँ स्थापना दिवस मनाया।
  • वर्ष1986 से ही यह ‘पुलिस संगठनों के आँकड़े’ प्रकाशित कर रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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