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शासन व्यवस्था

संपत्ति क्षति वसूली विधेयक- हरियाणा

  • 20 Mar 2021
  • 12 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा सरकार द्वारा ‘हरियाणा लोक व्यवस्था में विघ्न के दौरान संपत्ति क्षति वसूली विधेयक, 2021’ ( Haraya Recovery of Damages to Property During Disturbance to Public Order Bill, 2021) पारित किया गया है। 

  • इसी प्रकार का एक विधेयक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी ‘उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम , 2020 (Uttar Pradesh Recovery of Damages to Public and Private Property Act, 2020) के नाम से पारित किया गया था।

प्रमुख बिंदु:

विधेयक के बारे में: 

  • नुकसान की वसूली: यह विधेयक किसी जनसमूह, चाहे वह कानूनी हो अथवा गैर-कानूनी, द्वारा लोक व्यवस्था में उत्पन्न विघ्न के दौरान किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किये गए संपत्ति के नुकसान की वसूली का प्रावधान करता है, इसमें दंगे और हिंसक गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • पीड़ितों को मुआवज़ा: यह पीड़ितों के लिये मुआवज़ा भी सुनिश्चित करता है।
  • विस्तृत दायरा: नुकसान की वसूली केवल उन लोगों से नहीं की जाएगी जो हिंसा में लिप्त थे, बल्कि उन लोगों से भी की जाएगी जो विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व या आयोजन करते हैं , योजना में शामिल होते हैं और जो विद्रोहियों को प्रोत्साहित करते हैं।
  • दावा अधिकरण स्थापित करना: विधेयक में देयता या क्षतिपूर्ति का निर्धारण,  आकलन और क्षतिपूर्ति का दावा करने हेतु दावा अधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया है। 
  • संपत्ति की कुर्की/ज़ब्ती: किसी भी व्यक्ति जिसके खिलाफ हर्ज़ाना राशि का भुगतान करने हेतु दावा अधिकरण में अपील की गई है, उसकी संपत्ति या बैंक खाते को सील करने की शक्ति प्रदान की गई है।
  • अधिकरण के खिलाफ अपील: पीड़ित व्यक्ति दावा अधिकरण के निर्णयों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
  • हर्ज़ाने को लेकर दावे से संबंधित कोई भी प्रश्न सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में शामिल नहीं होगा। 

सरकार का रुख:

  • सरकार की ज़िम्मेदारी: राज्य की संपत्ति की सुरक्षा करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है, चाहे वह संपत्ति निजी हो या सरकारी।
  • अधिकारों और उत्तरदायित्व  के मध्य संतुलन: लोकतंत्र में सभी को शांतिपूर्ण तरीके से बोलने और विरोध प्रकट करने का अधिकार है, लेकिन संपत्ति को नुकसान पहुंँचाने का अधिकार  किसी को भी नहीं है।
  • निवारण: हिंसक गतिविधियों को अंज़ाम देने और इसका आयोजन करने वालो के या इस प्रकार की गतिविधियों को रोकने हेतु सरकार के पास एक कानूनी ढांँचा होना चाहिये।

आलोचना:

  • सर्वोच न्यायालय के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध: दावा न्यायाधिकरण की संरचना सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन करती है।
    • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने 19 प्रमुख न्यायिक न्यायाधिकरणों की नियुक्तियों  में परिवर्तन करने वाले वित्त अधिनियम, 2017 को निरस्त कर दिया था क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था।
  • मौलिक अधिकारों के विरुद्ध: विधेयक संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • अनिश्चित एवं  अस्पष्ट: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यापक दिशा-निर्देश जारी किये गए  हैं परंतु कई पहलुओं जैसे- अपराधियों की पहचान करना, नुकसान की वसूली हेतु  योजना को क्रियान्वित करना तथा दिशा-निर्देशों को न मानने पर दंड का प्रावधान आदि को सही ढंग से स्पष्ट नहीं किया गया है।

भारत में कानूनी प्रावधान:

  • भारत में नुकसान की वसूली हेतु कोई केंद्रीय कानून नहीं है। वर्तमान में दंगाइयों के खिलाफ कार्यवाही करने हेतु सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम, 1984 में भी सीमित प्रावधान है, जिसमें दोषियों हेतु कारावास और जुर्माने का प्रावधान तो किया गया है, लेकिन नुकसान की वसूली हेतु कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
    • संपत्ति के नुकसान की भरपाई हेतु कानून होने के बावज़ूद देश में विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारपीट, तोड़फोड़ की घटनाएंँ आम हैं।
  • वर्ष 2007 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया तथा इस कानून में बदलाव हेतु  न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस और वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन की अध्यक्षता में दो समितियों का गठन किया गया।
  • वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के आधार पर दिशा-निर्देश जारी किये।
  • कानून की तरह दिशा-निर्देशों का भी सीमित प्रभाव पड़ा है।  कोशी जैकब बनाम भारत संघ 2017 मामले में अदालत ने दोहराया कि कानून को अद्यतन किये जाने की आवश्यकता है।

विरोध का अधिकार बनाम नुकसान की वसूली:

मौलिक अधिकार बनाम आदेश:

  • जहाँ एक ओर आंदोलनकारी विरोध करने के अपने मौलिक अधिकार का तर्क देते हैं, वहीं कई बार आंदोलन से प्रभावित लोगों की दुर्दशा और सामान्य गतिविधि को जारी रखने के उनके अधिकार को नज़रअंदाज कर दिया जाता है।

भारतीय परिदृश्य:

  • भारत में सार्वजनिक विरोध का इतिहास महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा और अहिंसक विरोध, जो कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अभिन्न अंग थे, से वैधता प्राप्त है। 
  • कई पाबंदियों के बावजूद विरोध की यह विरासत वर्षों तक जारी रही और देश के कई क्षेत्रों में लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई।
  • वास्तव में आंदोलन और विरोध हमारी संस्कृति में इस कदर समाए हुए हैं कि हम अक्सर इन्हें एक ही मान लेते हैं।

वैश्विक उदाहरण: 

  • अमेरिका में यातायात को अवरुद्ध करने, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचाने या बाधित करने वाले प्रदर्शनकारियों हेतु राज्य-वार कानून बनाए गए हैं तथा प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान की लागत वसूलने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अधिकृत किया गया है।

सुझाव:

  • प्रदर्शन के आयोजक को स्पष्ट घोषणा करनी चाहिये  कि उसके अनुयायियों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा और यदि इस घोषणा पर अमल नहीं किया जाता है, तो इस प्रकार के नुकसान के हर्ज़ाने के लिये उसे वित्तीय रूप से उत्तरदायी माना जाएगा।
  • फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी और डेटाबेस पुलिस को हिंसा न करने वाले व्यक्ति की पहचान करने में मददगार हो साबित हो सकते हैं, इनका प्रयोग साक्ष्यों के तौर पर न्यायालय में भी किया जा सकता है।
  • गोपनीयता कानूनों के तहत सर्विलांस कैमरों द्वारा प्रदर्शनकारियों तथा पहली पंक्ति में शामिल नेताओं की निगरानी की जा सकती है। 

लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984

  • इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है। अधिनियम के प्रावधान को भारतीय दंड संहिता में भी शामिल किया जा सकता है।
  • इस अधिनियम के अनुसार, लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-
    • कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण में किया जाता है।
    • तेल प्रतिष्ठान।
    • खान या कारखाना।
    • सीवेज स्थल।
  • लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।

थॉमस समिति:

  • के.टी. थॉमस समिति ने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से जुड़े मामलों में आरोप सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी की स्थिति को बदलने की सिफारिश की। न्यायालय को यह अनुमान लगाने का अधिकार देने के लिये कानून में संशोधन किया जाना चाहिये कि अभियुक्त सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का दोषी है।
    • दायित्व की स्थिति में बदलाव से संबंधित यह सिद्धांत,  यौन अपराधों तथा इस तरह के अन्य अपराधों पर लागू होता है। 
    • सामान्यतः कानून यह मानता है कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है जब तक कि अभियोजन पक्ष इसे साबित नहीं करता।
  • न्यायालय द्वारा इस सुझाव को स्वीकार कर लिया गया 

नरीमन समिति :

  • इस समिति की सिफारशें सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति से संबंधित थीं।
  • सिफारिशों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिये क्षतिपूर्ति शुल्क लिया जाएगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के दिशा-निर्देश जारी किये तथा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जाँच के लिये एक तंत्र की स्थापना करने को कहा।

स्रोत: द हिंदू

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