सीवीसी की भ्रष्टाचार संबंधी सलाह के निहितार्थ | 18 Apr 2018
चर्चा में क्यों?
विभिन्न मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के संदर्भ में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा की गई सिफारिशों को खारिज कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और सरकारी नियंत्रण वाले बैंकों ने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में सतर्कता मानदंडों की अनदेखी करते हुए कोई कार्रवाई नहीं की है।
- संसद में पेश की गई 2017 के लिये केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी संस्थानों ने नियमित रूप से इसकी सिफारिशों को अनदेखा किया है या उन पर बहुत ही कम ध्यान दिया है।
- सीवीसी ने कहा कि वर्ष 2017 के दौरान, आयोग की सलाह के अनुसार कार्य नहीं किया गया है।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आयोग के अधीन आने वाले अधिकारियों से संबंधित कुछ ऐसे मामले हैं जहाँ समुचित सलाहकारी तंत्र मौजूद था लेकिन उसका उपयोग नहीं किया गया या फिर संबंधित अधिकारियों (authorities) ने आयोग की सलाह को स्वीकार नहीं किया।
- सीवीसी की सलाह को न मानने वाले विभागों और संगठनों में रेलवे एवं प्रत्यक्ष कर, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क का प्रबंधन करने वाले बोर्ड शामिल हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें दी गई सलाह को आयोग के पास पुनर्विचार के लिये वापस भेजने की बजाय उस सलाह को समाप्त कर दिया गया या फिर प्रभावी रूप से उसे लागू नहीं किया गया।
- सीवीसी के पास दायर जन शिकायतों की संख्या में बहुत कमी आई है। 2017 में आयोग द्वारा प्राप्त कुल शिकायतों की संख्या मात्र 23,609 थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में आधे से भी कम थीं और पिछले पाँच वर्षों में सबसे कम थीं।
- लगभग सभी प्रमुख विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने सीवीसी की सिफारिशों को खारिज कर दिया है।
- कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कथित भ्रष्टाचार और कदाचार (malpractices) के लिये अपने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने हेतु की गई सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया। पंजाब नेशनल बैंक, जो कि नीरव मोदी घोटाले को लेकर केंद्र में रहा है, इसका एक अच्छा उदाहरण है। पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई (सेवा से बर्खास्तगी) के लिये सिफारिश की गई थी लेकिन पंजाब नेशनल बैंक ने इसको कम करके केवल मामूली जुर्माना कर दिया।
- जब सीवीसी ने स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद को उसके एक अधिकारी पर बड़े जुर्माने और अभियोजन चलाने की सिफारिश की तो स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद ने अभियोजन चलाने की सिफारिश को अस्वीकृत कर दिया और उस अधिकारी को बड़े दंड के बजाय केवल एक प्रशासनिक चेतावनी जारी की।
- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड, वित्त मंत्रालय, नागर विमानन मंत्रालय, कोयला मंत्रालय तथा इस्पात मंत्रालय इत्यादि ने सीवीसी की सिफारिशों को खारिज कर दिया है।
- लौह अयस्क परिवहन (iron ore transportation) से संबंधित घोटाला 2011 में सुलझना शुरू हुआ और 2015 तक सीबीआई, सीमा शुल्क एवं अन्य टीमें इसकी जाँच कर रही थीं।
- 2015 में कैग (CAG) द्वारा किये गए एक ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे को उन कंपनियों से 29,236 करोड़ रुपए की वसूली करनी चाहिये, जिन्होंने घरेलू दरों पर लौह अयस्क का परिवहन किया। इसमें से अधिकांश लौह अयस्क चीन को निर्यात किया गया।
- रेलवे ने 2008 में लौह अयस्क के लिये विभेदीकृत शुल्कों की शुरुआत की थी जिनमें घरेलू संचलन के लिये एक समान कीमतें रखी गईं, जबकि निर्यात की दरें घरेलू दरों की लगभग चार गुना थीं।
- सीबीआई ने इस मामले में कई एफआईआर दर्ज किये और कुछ मामलों में चार्जशीट भी तैयार की है। इससे संबंधित कुछ मामले उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में विभिन्न चरणों में लंबित हैं।
- विडंबना यह है कि रेलवे ने सीवीसी की सिफारिशों को खारिज कर दिया है। इससे पता चलता है कि एक वरिष्ठ अधिकारी, जो कि एक निर्यातक को सैकड़ों करोड़ रुपए कमाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उसे किस प्रकार दोष मुक्त कर दिया जाता है।
- रेलवे ने कठोर दंड के लिये सीवीसी की सलाह को लागू करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय 10 अगस्त, 2017 को सीनियर डिवीज़नल कॉमर्शियल मैनेजर को मेमोरेंडम ऑफ़ काउंसलिंग (memorandum of counseling) प्रदान किया।
- इसी प्रकार एक फर्म ने अमान्य दस्तावेज़ों और झूठी घोषणाओं के ज़रिये रियायती भाड़ा दरों का लाभ लिया। सीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2008 से मार्च, 2011 की अवधि के दौरान संबंधित फर्म के कारण रेलवे को 179 .23 करोड़ का घाटा हुआ।
केंद्रीय सतर्कता आयोग
- केंद्रीय सतर्कता आयोग केंद्र सरकार में भ्रष्टाचार निरोध हेतु एक प्रमुख संस्था है।
- सतर्कता के मामले में केंद्र सरकार को सलाह तथा मार्गदर्शन देने के लिये के. संथानम की अध्यक्षता में गठित भ्रष्टाचार निवारण समिति की सिफारिशों के आधार पर फरवरी, 1964 में केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन किया था।
- इस आयोग की स्थापना/अवधारणा एक ऐसे शीर्षस्थ सतर्कता संस्थान के रूप में की गई है, जो किसी भी प्रकार के कार्यकारी प्राधिकारी के हस्तक्षेप से मुक्त है।
- यह आयोग केंद्र सरकार के तहत सभी कार्यों की सतर्कता निगरानी करता है तथा सरकारी संगठनों में विभिन्न प्राधिकारियों को उनके सतर्कता कार्यों की योजना बनाने, निष्पादन करने, समीक्षा करने तथा सुधार करने की सलाह देता है।
- 25 अगस्त, 1998 को राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यादेश जारी कर आयोग को सांविधिक दर्ज़ा देकर इसे बहुसदस्यीय आयोग बना दिया गया।
- अब इस आयोग में 1 केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के साथ 2 अन्य आयुक्त भी होते हैं।
- संसद ने वर्ष 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग विधेयक पारित किया तथा 11 सितंबर, 2003 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसने अधिनियम का रूप लिया।
- इस प्रकार 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग को सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।