CSR व्यय 2023 | 14 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, कंपनी अधिनियम में संशोधन, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT), भारतीय शिक्षा में रूपांतरण: दीर्घकालिक दृष्टिकोण

मेन्स के लिये:

CSR व्यय का सामाजिक प्रभाव, CSR व्यय से संबंधित मुद्दे

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकारी आँकड़ों से पता चला है कि वित्त वर्ष 2023 में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility- CSR) व्यय का सबसे अधिक हिस्सा शिक्षा को प्राप्त हुआ, जिसके लिये 10,085 करोड़ रुपए आवंटित किये गए, इससे कुछ क्षेत्रों और अंचलों में CSR के असमान व्यय के बारे में बहस छिड़ गई।

CSR व्यय में हाल की प्रगति क्या है?

  • अवलोकन:
    • वित्त वर्ष 2022 में कुल CSR व्यय 26,579.78 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 29,986.92 करोड़ रुपये हो गया। CSR परियोजनाओं की संख्या 44,425 से बढ़कर 51,966 हो गई।
    • सार्वजनिक क्षेत्र से बाहर की कंपनियों ने कुल CSR व्यय में 84% का योगदान दिया।
  • क्षेत्रवार व्यय:
    • वित्त वर्ष 23 में CSR व्यय का एक तिहाई हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया गया।
    • व्यावसायिक कौशल पर CSR व्यय पिछले वर्ष के 1,033 करोड़ रुपए से थोड़ा बढ़कर वित्त वर्ष 23 में 1,164 करोड़ रुपए हो गया।
    • प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेटरों को सबसे कम राशि मिली, जो पिछले वर्ष 8.6 करोड़ रुपए की तुलना में वित्त वर्ष 23 में केवल 1 करोड़ रुपए थी।
    • स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पर्यावरणीय स्थिरता और आजीविका संवर्द्धन को भी महत्त्वपूर्ण CSR निधि प्राप्त हुई।
    • पशु कल्याण पर CSR व्यय वित्तवर्ष 2015 में 17 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्तवर्ष 2023 में 315 करोड़ रुपए से अधिक हो गया।
    • प्रधानमंत्री राहत कोष के तहत CSR व्यय वित्त वर्ष 23 में घटकर 815.85 करोड़ रुपए रह गया, जो वित्त वर्ष 21 में 1,698 करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 22 में 1,215 करोड़ रुपए था।
      • आपदा प्रबंधन में योगदान में सबसे अधिक गिरावट (77%) आई, उसके बाद झुग्गी विकास में (75%) गिरावट आई।

  • राज्यवार व्यय:
    • CSR व्यय महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में सबसे अधिक था, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों लक्षद्वीप, लेह एवं लद्दाख में यह सबसे कम था।

CSR क्या है?

  • परिचय: 
    • सामान्यतः कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) को पर्यावरण पर कंपनी के प्रभाव तथा सामाजिक कल्याण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने तथा उसकी ज़िम्मेदारी लेने के लिये कॉर्पोरेट पहल के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।
    • यह एक स्व-विनियमन व्यवसाय मॉडल है जो किसी कंपनी को सामाजिक रूप से जवाबदेह बनने में मदद करता है। कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन करके, कंपनियाँ आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सचेत हो सकती हैं।
    • भारत पहला देश है जिसने कंपनी अधिनियम, 2013 के खंड 135 के अंतर्गत संभावित CSR गतिविधियों की पहचान के लिये रूपरेखा के साथ CSR व्यय को अनिवार्य बनाया है।
      • भारत के विपरीत, अधिकांश देशों में स्वैच्छिक CSR फ्रेमवर्क हैं। नॉर्वे और स्वीडन ने अनिवार्य CSR प्रावधानों को अपनाया है, लेकिन उन्होंने स्वैच्छिक मॉडल के साथ शुरुआत की।
  • प्रयोज्यता:
    • CSR प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होते हैं, जो पिछले वित्तीय वर्ष में निम्नलिखित मानदंडों में से किसी एक को पूरा करती हैं।
      • 500 करोड़ रुपए से अधिक की कुल संपत्ति
      • 1000 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार
      • 5 करोड़ रुपए से अधिक का निवल लाभ।
    • ऐसी कंपनियों को पिछले तीन वित्तीय वर्षों के अपने औसत निवल लाभ का कम से कम 2% CSR गतिविधियों पर व्यय करना होगा, या यदि वे नई निगमित हुई हैं तो उन्हें पिछले वित्तीय वर्षों के औसत निवल लाभ के आधार पर व्यय करना होगा।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक पहल के प्रकार:
    • कॉर्पोरेट परोपकार: कॉर्पोरेट फाउंडेशन के माध्यम से दान।
    • सामुदायिक स्वयंसेवा: कंपनी द्वारा आयोजित स्वयंसेवी गतिविधियाँ।
    • सामाजिक रूप से उत्तरदायित्व व्यावसायिक व्यवहार: नैतिक उत्पादों का उत्पादन।
    • कारण प्रचार और सक्रियता: कंपनी द्वारा वित्तपोषित समर्थन अभियान।
    • कारण-आधारित विपणन: बिक्री के आधार पर दान।
    • कॉर्पोरेट सामाजिक विपणन: कंपनी द्वारा वित्तपोषित व्यवहार-परिवर्तन अभियान।
  • पात्र क्षेत्र:  
    • CSR गतिविधियों में कई तरह की पहल शामिल हैं, जिनमें भूख ,गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना, एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों से लड़ना, पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना एवं  सामाजिक-आर्थिक विकास व वंचित समूहों के कल्याण के लिये  सरकारी राहत कोष (जैसे पीएम केयर्स और पीएम राहत कोष) में योगदान देना शामिल है।

CSR अनुपालन से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • CSR व्यय में भौगोलिक असमानता: CSR व्यय महाराष्ट्र (5375 करोड़), गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे औद्योगिक राज्यों में अधिक केंद्रित है, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों (मिज़ोरम 6.9 करोड़) एवं लक्षद्वीप, लेह व लद्दाख को तुलनात्मक रूप से कम धनराशि प्राप्त होती है, जो क्षेत्रीय असंतुलन को दर्शाता है। 
  • CSR आवंटन रुझान: MCA डेटा से पता चलता है कि लगभग 75% CSR फंड तीन क्षेत्रों में केंद्रित है: शिक्षा, स्वास्थ्य (स्वच्छता और जल सहित) एवं ग्रामीण गरीबी। 
    • आजीविका संवर्धन (1,654 करोड़ रुपए ) से संबंधित क्षेत्रों में बहुत कम खर्च होता है।
  • PSU बनाम गैर-PSU व्यय: गैर-PSU कुल CSR व्यय का 84% योगदान करते हैं, जबकि PSU शेष 16% का योगदान करते हैं, जो दोनों क्षेत्रों के बीच CSR व्यय में एक महत्त्वपूर्ण अंतर को दर्शाता है।
  • CSR में रणनीतिक मिसअलाइनमेंट: कई कंपनियों ने स्थिरता को व्यावसायिक रणनीतियों के साथ मिला दिया है, वास्तविक सामाजिक प्रभाव पर लाभ मार्जिन को प्राथमिकता दी है, इस प्रकार CSR के वास्तविक उद्देश्य को कमज़ोर किया है। 
  • सही साझेदार ढूँढना: CSR अनुपालन के महत्त्व के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद, सही साझेदारों की पहचान करने के साथ-साथ दीर्घकालिक प्रभावशाली, स्केलेबल और आत्मनिर्भर परियोजनाओं का चयन करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। 
  • पारदर्शिता के मुद्दे: कंपनियों द्वारा यह व्यक्त किया गया है कि स्थानीय कार्यान्वयन एजेंसियों की ओर से पारदर्शिता की कमी है क्योंकि वे अपने कार्यक्रमों, लेखा परीक्षा मुद्दों, प्रभाव मूल्यांकन और धन के उपयोग के बारे में जानकारी का खुलासा करने के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं करते हैं।

CSR व्यय की प्रभावशीलता बढ़ाने की पद्धति क्या हैं?

  • CSR सहभागिता और निरीक्षण को बढ़ाना: CSR को आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) जैसे स्थानीय सरकारी कार्यक्रमों के साथ जोड़ने से सामुदायिक भागीदारी और सहभागिता को बढ़ावा मिल सकता है, जबकि सरकार को प्रभावी CSR कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिये तथा बेहतर निरीक्षण हेतु AI का लाभ उठाना चाहिये।
    • CSR गतिविधियों के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये NGO दूर-दराज़ और ग्रामीण क्षेत्रों में कंपनियों के साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय और भौगोलिक असमानता को दूर करना: उच्च शिक्षा तथा उच्च प्रभाव वाली प्रौद्योगिकीय और पर्यावरण अनुकूल परियोजनाओं में निवेश की आवश्यकता है, जो कौशल विकास एवं आजीविका संवर्धन पर ध्यान केंद्रित करती हों।
    • कम वित्त पोषित क्षेत्रों में व्यय के लिये प्रोत्साहन प्रदान करें या व्यय में क्षेत्रीय असमानता को दूर करने हेतु अनिवार्य प्रावधान करें और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करें।
  • PSU बनाम गैर-PSU व्यय असमानता: PSU को योगदान बढ़ाने, बेंचमार्किंग लागू करने और PSU और गैर-PSU के बीच संयुक्त CSR पहल को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित करें।
  • कंपनी की भूमिकाएँ और शासन: नियमित समीक्षा करें, स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित करें और शासन की भूमिकाओं को अपडेट करें। फंड के उपयोग, प्रभाव आकलन और विस्तृत चेकलिस्ट के लिये नए SOP स्थापित करें।

निष्कर्ष

CSR के प्रभाव को अधिकतम करने के लिये कंपनियों को मात्र अनुपालन से आगे बढ़कर स्थानीय सरकार के कार्यक्रमों के साथ रणनीतिक संरेखण अपनाना होगा, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना होगा तथा पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों व गैर-सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच मज़बूत सहयोग को बढ़ावा देने और नवीन, स्केलेबल परियोजनाओं में निवेश करके,CSR स्थायी सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा दे सकता है तथा भारत के दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान दे सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: बताएँ  कि कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व समाज के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक वित्तपोषण शाखा कैसे बन सकता है?