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सामाजिक न्याय

CS जेंडर 3000 रिपोर्ट

  • 15 Oct 2019
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

क्रेडिट सुइस रिसर्च इंस्टिट्यूट, सी.एस.जेंडर 3000 रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

लैंगिक समानता संबंधी मुद्दे, इस संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए कदम, महिलाओं से संबंधी विषय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्रेडिट सुइस रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा CS जेंडर 3000 रिपोर्ट (CS Gender 3000 Report) जारी की गई।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान समय में भी विशेष तौर पर उच्च पदों पर पुरुष वर्चस्व कायम है जिसे कम या दूर करने के लिये निजी क्षेत्र द्वारा काफी कार्य किये जाने की आवश्यकता है।
  • यह रिपोर्ट लैंगिक असमानता व कंपनी के बेहतर प्रदर्शन के मध्य संबंध को बदलते परिदृश्य के अनुरुप प्रदर्शित करती है।

क्या है लैंगिक असमानता?

लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है। पारंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है। वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया में हर जगह प्रचलित है।

चिंताजनक मुद्दे

  • लिंगानुपात एक अति संवेदनशील सूचक है जो महिलाओं की स्थिति को दर्शाता है। बच्चों में लिंगानुपात निरंतर कम होता जा रहा है।
  • निरंतर कम होते लिंगानुपात के कारण जनसंख्या में असंतुलन पैदा हो होता है जिससे महिलाओं के विरुद्ध अपराध बढ़ने जैसी अनेक सामाजिक समस्याएँ पैदा होती हैं।
  • ये सभी संकेतक लिंग समानता और मूलभूत अधिकारों के संबंध में महिलाओं की निराशजनक स्थिति के द्योतक हैं। अतः महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये सरकार प्रत्येक वर्ष विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करती है ताकि इनका लाभ महिलाओं को प्राप्त हो लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि इतने कार्यक्रमों के लागू किये जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नज़र नहीं आता है।
  • यह रिपोर्ट वर्तमान समय में कार्यस्थल पर महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को प्रदर्शित करती है।
  • साथ ही उच्च पदों पर महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को भी इंगित करती है।
  • इस रिपोर्ट के लिये विश्व के 56 राष्ट्रों की 3000 कंपनियों का सर्वे किया गया जिसके आधार पर यह पाया गया कि विश्व स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, इसमें नॉर्वे, फ्राँस, स्वीडन एवं इटली शीर्ष स्थान पर हैं परंतु इस संदर्भ में भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जा सकती है।

क्रेडिट सुइस रिसर्च इंस्टीट्यूट

(Credit Suisse Research Institute)

  • यह एक इन-हाउस थिंक टैंक है।
  • इस संस्था की स्थापना वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप की गई थी।
  • इसका उद्देश्य लंबे समय के वित्तीय विकास हेतु अध्ययन करना है व इसके प्रभावों का आर्थिक क्षेत्र व उसके बाहर भी अध्ययन करना है।

समानता हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • भारत द्वारा स्वतंत्रता के बाद से ही इस अंतर को मिटाने के प्रयास किये गए है जिसमें सरकारी नौकरी व शिक्षा में आरक्षण तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के छात्रों को निजी विद्यालयों में 25% कोटा प्रदान करने का फैसला शामिल है।
  • महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव को समाप्त करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये 2005 से भारत ने औपचारिक रूप से वित्तीय बजट में जेंडर उत्तरदायी बजटिंग (Gender Responsive Budgeting- GRB) को अंगीकार किया था। जीआरबी का उद्देश्य है- राजकोषीय नीतियों के माध्यम से लिंग संबंधी चिंताओं का समाधान करना।
  • लैंगिक समानता का सूत्र श्रम सुधारों और सामाजिक सुरक्षा कानूनों से भी जुड़ा है, फिर चाहे कामकाजी महिलाओं के लिये समान वेतन सुनिश्चित करना हो या सुरक्षित नौकरी की गारंटी देना। मातृत्व अवकाश के जो कानून सरकारी क्षेत्र में लागू हैं, उन्हें निजी और असंगठित क्षेत्र में भी सख्ती से लागू करना होगा। जेंडर बजटिंग और समाजिक सुधारों के एकीकृत प्रयास से ही भारत को लैंगिक असमानता के बन्धनों से मुक्त किया जा सकता है।

रिपोर्ट में बताए गए विभिन्न पक्ष:

  1. परिवार के स्वामित्व वाली कंपनियाँ: रिपोर्ट में बताया गया है कि इस प्रकार की कंपनियों में महिलाओं की भागीदारी 10% से कम है।
  2. भविष्य व परिवार को संवारना: सभी जानते हैं कि भविष्य को संवारना व परिवार को संभालना दोनों कार्य एक साथ करना काफी मुश्किल हो है, इसी पक्ष को रिपोर्ट में भी बताया गया है कि गृहस्थ जीवन में महिलाओं की अत्यधिक भागीदारी और उत्तरदायित्व न केवल उन्हें घर से बाहर कार्य करने के प्रति अनिच्छुक बनाते हैं बल्कि सामाजिक रूप से भी दबाव की स्थिति उत्पन्न करते हैं।
  3. लैंगिक आधार पर वेतन में असमानता: रिपोर्ट में बताया गया है कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों का वेतन अधिक है और यह अंतर लैंगिक आधार पर पेशा निर्धारण की पूर्वमान्यताओ के कारण है।

वर्तमान परिदृश्य

वर्तमान दौर में महिलाओं की संख्या पिछले दशकों में 20% बढ़ी है जो कि शासन व्यवस्था के संदर्भ में एक अच्छा संकेत है, साथ ही वर्ष 2016 में एक अध्ययन में पाया गया कि प्रबंधन के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 14% से बढकर 17% हो गई है। इस परिपेक्ष्य में क्षेत्रीय स्तर पर यूरोप (17%) निम्न स्तर पर है जबकि उत्तरी अमेरिका 21% एवं एशिया-प्रशांत क्षेत्र 19% प्रबंधन विविधता के साथ उच्च स्तर को बनाए हुए हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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