सतत् कृषि के लिये सस्य आवर्तन | 21 Oct 2023
प्रिलिम्स के लिये:सस्य आवर्तन, टपक/ड्रिप सिंचाई प्रणाली, सिंधु-गंगा क्षेत्र, कदन्न मेन्स के लिये:खेती के प्रकार, फसल पैटर्न का अर्थव्यवस्था में योगदान, रोज़गार और उत्पादन, खाद्य सुरक्षा |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे, डेलावेयर विश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय और येल स्कूल ऑफ द एन्वायरनमेंट के शोधकर्त्ताओं की एक टीम द्वारा कृषि क्षेत्र के संबंध में एक शोध किया गया, जिसे नेचर वॉटर जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
- यह अध्ययन भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों, विशेष रूप से इंडो-गंगेटिक क्षेत्र में जल की खपत तथा सतत् कृषि पर केंद्रित है।
- यह अध्ययन भारत में ऊपरी, मध्य और निचली गंगा बेसिन/क्षेत्र को कवर करते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल के 124 ज़िलों पर केंद्रित था।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु:
- सस्य आवर्तन के माध्यम से जल संरक्षण:
- खरीफ सीज़न के दौरान चावल के स्थान पर कदन्न और ज्वार की खेती तथा रबी सीज़न में गेहूँ के बजाय ज्वार की खेती करने से गंगा के मैदानी क्षेत्रों में जल की खपत को 32% तक कम किया जा सकता है। साथ ही किसानों के मुनाफे को 140% तक बढ़ाया जा सकता है।
- जल संरक्षण के अतिरिक्त लाभ:
- सस्य आवर्तन (Crop Switching) से खरीफ सीज़न में 55% और रबी सीज़न में 9% तक जल की बचत की जा सकती है।
- किसानों के मुनाफे में खरीफ सीज़न के दौरान 139% और रबी सीज़न के दौरान 152% तक की वृद्धि की जा सकती है।
- कैलोरी उत्पादन 39% तक बढ़ सकता है।
- सस्य आवर्तन बनाम टपक/ड्रिप सिंचाई प्रणाली:
- शोधकर्त्ताओं ने सिंचाई दक्षता में सुधार के साथ सस्य आवर्तन के लाभों की तुलना की और पाया कि भूजल की कमी की समस्या के निराकरण और ऊर्जा बचत में वृद्धि करने के संदर्भ में सस्य आवर्तन का प्रदर्शन टपक/ड्रिप सिंचाई प्रणाली से बेहतर है।
- ड्रिप सिंचाई से शुद्ध भूजल पुनर्भरण में 34% सुधार होता है, जबकि सस्य आवर्तन से 41%।
- अकेले ड्रिप सिंचाई प्रणाली के उपयोग से किसान के मुनाफे में काफी वृद्धि नहीं होती।
- सस्य आवर्तन और ड्रिप सिंचाई प्रणाली के संयुक्त प्रयोग से ज़िला स्तर पर शुद्ध पुनर्भरण दर में सबसे अधिक सुधार किया जा सकता है और यह भूजल की कमी की समस्या को 78% तक कम कर सकता है।
- बहुउद्देश्यीय दृष्टिकोण:
- जल संरक्षण, गुणवत्तापूर्ण फसल उत्पादन और किसानों की आय में वृद्धि के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये एक बहुउद्देश्यीय दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
- एकल-केंद्रित दृष्टिकोण की कुछ सीमाएँ व शर्तें होती हैं। उदाहरण के लिये अकेले जल संरक्षण को प्राथमिकता देने से बचत में 4% की वृद्धि की जा सकती है, किंतु इससे अन्य कई चीज़ों में कमी आती है; सुझाए गए विकल्पों की तुलना में कैलोरी उत्पादन में 23% और लाभ में 126% की गिरावट आती है।
- इसी प्रकार सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने का दृष्टिकोण जल की बचत में थोड़ी वृद्धि तो कर सकता है किंतु कैलोरी उत्पादन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित भी कर सकता है।
- उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य और खेती में कम लागत के कारण सर्वाधिक लाभ प्रदान करने वाले फसल- ज्वार की खेती करके लाभ में 58% तक की वृद्धि की जा सकती है। इस लाभ के साथ कुछ सीमाएँ भी हैं: जैसे कैलोरी उत्पादन में उल्लेखनीय 18.5% की कमी, जल की बचत में मामूली 2% की वृद्धि।
- बेहतर पोषण के लिये पोषक अनाज:
- ज्वार और बाजरा जैसे पोषक अनाजों की खेती से बेहतर पोषण प्राप्त होता है।
- पोषक अनाजों की खेती से प्रोटीन उत्पादन में 46% की वृद्धि, लौह उत्पादन में 353% की वृद्धि और जस्ता उत्पादन में 82% की वृद्धि हो सकती है, जिससे उपभोक्ताओं को पोषण लाभ होगा।
उत्तर भारतीय मैदान:
- परिचय:
- वे हिमालय के दक्षिण में और प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर में स्थित बड़े समतल भूभाग हैं।
- इनका निर्माण तीन प्रमुख नदी प्रणालियों- सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के जलोढ़ निक्षेपों तथा उनकी सहायक नदियों की सहायता से हुआ है।
- ये विश्व के सबसे बड़े जलोढ़ क्षेत्र हैं।
- भौगोलिक विवरण:
- इंडो-गंगेटिक क्षेत्र (गंगा मैदानी क्षेत्र) में ग्रीष्मकाल और शीतऋतु के साथ उपोष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है।
- उत्तरी मैदानों को जलोढ़ की प्रकृति और भौगोलिक आकृतियों की विविधता (उच्चावच) के आधार पर चार भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है।
- भाबर:
- यह हिमालय की तलहटी में बजरी और कंकड़ों का एक संकीर्ण मेखला है। इसकी चौड़ाई लगभग 8 से 16 किमी. है तथा इसके छिद्रपूर्ण सतह से जल रिसता रहता है।
- तराई:
- यह भाबर के दक्षिण में स्थित एक दलदली क्षेत्र है। यह लगभग 20 से 30 किमी. चौड़ा है और यहाँ की मृदा समृद्ध तथा वनस्पति घनी है। यहाँ कई वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान भी हैं।
- बांगर:
- इस क्षेत्र की मृदा में काफी मात्रा में चूना पाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में कंकर कहा जाता है।
- यह पुराना और ऊँचा जलोढ़ मैदान है जो नदियों के बाढ़ स्तर से ऊपर स्थित है। यह मृदा, गाद और रेत से बना है।
- खादर:
- यह नदी के किनारे स्थित नवीन और निचला जलोढ़ मैदान है। यह महीन गाद और मृदा से बना है। इसका रंग हल्का होता है तथा यह बहुत उपजाऊ होता है। प्रत्येक वर्ष बाढ़ द्वारा लाई गए मृदा और जल से इसका नवीकरण होता रहता है।
- भाबर:
- कृषीय महत्त्व:
- गंगा का मैदानी क्षेत्र भारतीय कृषि में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, यह देश के कुल खाद्य उत्पादन में 30% का योगदान देता है।
- यह भोजन के प्राथमिक स्रोत के रूप में कार्य करता है, जिसमें चावल और गेहूँ जैसे मुख्य अनाज शामिल हैं।
- गंगा का मैदानी क्षेत्र भारतीय कृषि में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, यह देश के कुल खाद्य उत्पादन में 30% का योगदान देता है।
- जनसांख्यिकीय महत्त्व:
- अनुमानित 400 मिलियन निवासियों के साथ यह क्षेत्र विश्व स्तर पर सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है। गंगा के मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्त्व असाधारण रूप से अधिक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: c |