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भारतीय राजनीति

क्रीमी लेयर निर्धारित करने के लिये मानदंड

  • 27 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये 

इंदिरा साहनी वाद, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, भारत का सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये 

क्रीमी लेयर की अवधारणा, महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आरक्षण के दायरे से बाहर करने के उद्देश्य से पिछड़े वर्गों में से क्रीमी लेयर को तय करने के लिये आर्थिक मानदंड एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।

  • सर्वोच्च न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें हरियाणा सरकार द्वारा क्रीमी लेयर के लिये मानदंड तय करते हुए पिछड़े वर्गों को पूरी तरह से आर्थिक आधार पर उप-वर्गीकृत करने वाली दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी।

The-Debate

प्रमुख बिंदु 

  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय :
    • वर्ष 2000 में रिपोर्ट किये गए इंद्रा साहनी-द्वितीय मामले में दिये गए फैसले को आत्मसात किया गया। हरियाणा की अधिसूचनाओं ने केवल आय के आधार पर क्रीमी लेयर्स की पहचान करके इंद्र साहनी फैसले में घोषित कानून का उल्लंघन किया है।
    • 'क्रीमी लेयर' के बहिष्कार का आधार केवल आर्थिक नहीं हो सकता - सरकार किसी पिछड़े समुदाय के व्यक्ति को केवल इस आधार पर आरक्षण देने से इनकार नहीं कर सकती कि वह अमीर है।
      • सामाजिक उन्नति, सरकारी सेवाओं में उच्च रोज़गार आदि यह तय करने में समान भूमिका निभाते हैं कि क्या ऐसा व्यक्ति क्रीमी लेयर से संबंधित है और उसे कोटा लाभ से वंचित किया जा सकता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि 'क्रीमी लेयर' में "पिछड़े वर्गों के व्यक्ति शामिल होंगे, जिन्होंने आईएएस, आईपीएस और अखिल भारतीय सेवाओं जैसी उच्च सेवाओं में पदभार ग्रहण कर लिया था, जो सामाजिक उन्नति और आर्थिक स्थिति के उच्च स्तर पर पहुँच गए थे और इसलिये पिछड़े वर्ग के रूप में व्यावहारिक रूप से आरक्षण पाने के हकदार नहीं थे।"
      • पर्याप्त आय वाले लोग जो दूसरों को रोज़गार देने की स्थिति में थे, उन्हें भी एक उच्च सामाजिक स्थिति में रखा जाना चाहिये और इसलिये उन्हें पिछड़े वर्ग से बाहर माना जाना चाहिये।
      • पिछड़े वर्ग के व्यक्ति जिनके पास उच्च कृषि जोत थी या जो एक निर्धारित सीमा से अधिक संपत्ति से आय प्राप्त कर रहे थे, वे आरक्षण के लाभ के पात्र नहीं हैं।
  • क्रीमी लेयर : 
    • यह एक अवधारणा है जो उस सीमा को निर्धारित करती है जिसके भीतर ओबीसी आरक्षण लाभ लागू होता है।
    • क्रीमी लेयर का सिद्धांत समानता के मौलिक अधिकार पर आधारित था। जब तक इसे लागू नहीं किया जाता, वास्तविक रूप से योग्य व्यक्ति आरक्षण तक नहीं पहुँच पाएगा।
    • बहिष्करण का आधार केवल आर्थिक नहीं होना चाहिये जब तक कि आर्थिक उन्नति का स्तर इतना अधिक न हो कि इसका अर्थ सामाजिक उन्नति हो।
      • जबकि किसी व्यक्ति की आय को उसकी सामाजिक उन्नति के माप के रूप में लिया जा सकता है, निर्धारित की जाने वाली सीमा ऐसी नहीं होनी चाहिये कि एक हाथ से जो दिया जाता है उसे दूसरे हाथ से ले लिया जाए।
      • आय सीमा ऐसी होनी चाहिये जो सामाजिक उन्नति का अर्थ और संकेत दे।
  • केंद्र सरकार द्वारा परिभाषित क्रीमी लेयर:
    • कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने कुछ रैंक/स्थिति/आय के लोगों की विभिन्न श्रेणियों को सूचीबद्ध किया है जिनके बच्चे OBC आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते हैं।
      • आय: जो सरकार में नहीं हैं, उनके लिये मौजूदा सीमा 8 लाख रुपए प्रतिवर्ष है।
        • आय सीमा हर तीन वर्ष में बढ़ाई जानी चाहिये।
        • इसे पिछली बार वर्ष 2017 में संशोधित किया गया था (अब तीन वर्ष से अधिक)।
      • माता-पिता की रैंक: सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के लिये सीमा उनके माता-पिता की रैंक पर आधारित होती है, न कि आय पर।
        • उदाहरण के लिये एक व्यक्ति को क्रीमी लेयर के अंतर्गत माना जाता है यदि उसके माता-पिता में से कोई एक संवैधानिक पद पर हो, यदि माता-पिता को सीधे ग्रुप-A में भर्ती किया गया है या यदि माता-पिता दोनों ग्रुप-B सेवाओं में हैं।
        • यदि माता-पिता 40 वर्ष की आयु से पहले पदोन्नति के माध्यम से ग्रुप-A में प्रवेश करते हैं, तो उनके बच्चे क्रीमी लेयर में शामिल होंगे।
        • सेना में कर्नल या उच्च पद के अधिकारी के बच्चे और नौसेना तथा वायु सेना में समान रैंक के अधिकारियों के बच्चे भी क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते हैं। ऐसे ही अन्य कई मानदंड भी मौजूद हैं।
  • OBC से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 15 (4), 15 (5) और 16 (4) राज्य सरकार को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की सूची घोषित करने और पहचान करने की शक्ति प्रदान करते हैं। भारत में केंद्र और प्रत्येक राज्य द्वारा अलग-अलग OBC सूचियाँ तैयार की जाती हैं।
    • रोहिणी आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत अक्तूबर 2017 में किया गया था।
      • इसका गठन केंद्रीय OBC सूची में 5000 विषम जातियों को उप-वर्गीकृत करने के कार्य को पूरा करने के लिये किया गया था।
    • 127वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2021, SEBC की पहचान करने के लिये राज्यों की शक्ति को पुनर्स्थापित करता है, जिन्हें आमतौर पर OBC कहा जाता है।
      • मई में मराठा आरक्षण के अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 102वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को बरकरार रखने के बाद इसमें संशोधन की आवश्यकता थी।
      • वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा दिया और राष्ट्रपति को किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के लिये SEBC की सूची को अधिसूचित करने का अधिकार दिया।
      • संशोधन विधेयक अनुच्छेद 342 A (खंड 1 और 2) में संशोधन करता है और राज्यों को अपनी राज्य सूची बनाए रखने के लिये विशेष रूप से अधिकृत करने वाला एक नया खंड 342 A (3) पेश करेगा।
        • अनुच्छेद 366 (26c) और 338B (9) में एक परिणामी संशोधन होगा।
        • इस प्रकार राज्य NCBC को संदर्भित किये बिना सीधे SEBC को सूचित करने में सक्षम होंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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