राजनीति के अपराधीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश | 14 Feb 2020

प्रीलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग

मेन्स के लिये:

भारत में राजनीतिक अपराधीकरण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राजनीतिक दलों को अपने विधानसभा और लोकसभा उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने का आदेश दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास की जानकारी स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्र के साथ-साथ पार्टियों के सोशल मीडिया हैंडल में प्रकाशित होनी चाहिये।
  • यह अनिवार्य रूप से उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख के दो सप्ताह से कम समय में (जो भी पहले हो) प्रकाशित किया जाना चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को आदेश दिया कि वे भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) के सामने 72 घंटे के भीतर अदालती कार्रवाई की अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें अन्यथा उन दलों पर न्यायालय की अवमानना से संबंधित कार्रवाई की जाएगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया यह निर्णय केंद्र और राज्य दोनों स्तर की पार्टियों पर लागू होता है।
  • संवैधानिक पीठ ने कहा है कि बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में शामिल रहे राजनीतिक पार्टियों के पदाधिकारी और उम्मीदवार देश की राजनीतिक और चुनावी गरिमा का अतिक्रमण करते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राजनीतिक दलों से उन कारणों को भी बताने के लिये कहा है जो उन्हें सभ्य लोगों की तुलना में संदिग्ध अपराधियों को आगे लाने के लिये प्रेरित करते हैं।

पृष्ठभूमि:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय वर्ष 2018 के ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ’ (Public Interest Foundation vs Union of India) मामले में गठित एक संवैधानिक पीठ के फैसले के आधार पर दिया गया है जो कि राजनीतिक दलों द्वारा अपनी वेबसाइट और इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया पर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक विवरण प्रकाशित करने और सार्वजनिक जागरूकता फैलाने संबंधी एक अवमानना याचिका पर आधारित था।
  • इस फैसले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण और नागरिकों के बीच इस तरह के अपराधीकरण के बारे में जानकारी की कमी बताई थी।

जानकारी का स्वरूप:

  • उम्मीदवारों के पूर्व अपराधों पर प्रकाशित जानकारी विस्तृत होनी चाहिये जिसमें उनके अपराधों की प्रकृति, उनके खिलाफ लगाए गए आरोप, संबंधित न्यायालय, मामले की संख्या आदि शामिल हैं।
  • एक राजनीतिक दल को अपनी प्रकाशित सामग्री के माध्यम से जनता को यह भरोसा दिलाना होगा क्योंकि किसी भी अभ्यर्थी की ‘योग्यता या उपलब्धियाँ’ आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण प्रभावित होती हैं।
  • एक पार्टी को मतदाता को बताना होगा कि किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिये टिकट देने का निर्णय केवल चुनावों में विजय प्राप्त करना ही नहीं था।

राजनीतिक अपराध संबंधी आँकड़े:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पिछले चार आम चुनावों में राजनीतिक अपराधों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2004 में संसद के 24% सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे जो कि वर्ष 2009 में बढ़कर 30%, वर्ष 2014 में 34% और वर्ष 2019 में 43% हो गए।

आगे की राह:

  • देश की राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि संसद ऐसा कानून लाए ताकि अपराधी राजनीति से दूर रहें। जन प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने वाले लोग अपराध की राजनीति से ऊपर हों। राष्ट्र को संसद द्वारा कानून बनाए जाने का इंतजार है। भारत की दूषित हो चुकी राजनीति को साफ करने के लिये बड़ा प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत- द हिंदू