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देश में ई-कचरे के बेहतर प्रबंधन के लिये ई-कचरा प्रबंधन कानून

  • 24 Mar 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों ?
सरकार ने देश में ई-कचरे के पर्यावरण अनुकूल प्रभावी प्रबंधन के लिये ई-कचरा नियमों में संशोधन किया है। इन नियमों में बदलाव देश में ई-कचरा निबटान को सुव्‍यवस्‍थित बनाने के लिये ई-कचरे के पुनर्चक्रण या उसे विघटित करने के काम में लगी इकाइयों को वैधता प्रदान करने तथा उन्‍हें संगठित करने के इरादे से किया गया है। इन नियमों में बदलाव के तहत विस्‍तारित उत्‍पादक जवाबदेहिता (Extended Producer Responsibility -EPR) की व्‍यवस्‍थाओं को पुनः परिभाषित किया गया है और इसके तहत हाल में बिक्री शुरु करने वाले ई-उत्‍पादकों के लिये ई-कचरा संग्रहण के नए लक्ष्‍य निर्धारित किये गए हैं।

ई-कचरा प्रबंधन नियम

  • अक्तूबर 2016 से ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 प्रभाव में आए। 
  • ये नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं आदि सभी पर लागू होंगे।
  • अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक रूप दिया जाएगा और श्रमिकों को ई-कचरे को संभालने के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा, न कि उसमें से कीमती धातुओं को निकालने के बाद।
  • इस नियम से पहले ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 कार्यरत था।

ई-कचरा प्रबंधन संशोधन नियम 2018 की कुछ मुख्‍य विशेषताएँ

  • ई-कचरा संग्रहण के नए निधार्रित लक्ष्‍य 1 अक्‍तूबर, 2017 से प्रभावी माने जाएंगे। विभिन्‍न चरणों में ई-कचरे का संग्रहण लक्ष्‍य 2017-18 के दौरान उत्‍पन्‍न किये गए कचरे के वजन का 10 फीसदी होगा जो 2023 तक प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से बढ़ता जाएगा। वर्ष 2023 के बाद यह लक्ष्‍य कुल उत्‍पन्‍न कचरे का 70 फीसदी हो जाएगा।
  • यदि किसी उत्‍पादक के बिक्री परिचालन के वर्ष उसके उत्‍पादों के औसत आयु से कम होंगे तो ऐसे नए ई-उत्‍पादकों के लिये ई-कचरा संग्रहण हेतु अलग लक्ष्‍य निर्धारित किये जाएंगे।
  • उत्‍पादों की औसत आयु समय-समय पर केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाएगी।
  • हानिकारक पदार्थों से संबधित व्‍यवस्‍थाओं में आरओएच के तहत ऐसे उत्‍पादों की जाँच का खर्च सरकार वहन करेगी यदि उत्‍पाद आरओएच की व्‍यवस्‍थाओं के अनुरूप नहीं हुए तो उस हालत में जाँच का खर्च उत्‍पादक को वहन करना होगा।
  • उत्‍पादक जवाबदेही संगठनों को नए नियमों के तहत कामकाज करने के लिये खुद को पंजीकृत कराने हेतु केन्‍द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष आवेदन करना होगा।
  • 22 मार्च, 2018 को अधिसूचना जीएसआर 261 (ई) के तहत ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 2016 को संशोधित किया गया है।

क्या है ई-कचरा? 

  • देश में जैसे-जैसे डिजिटाइजेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन तथा फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें जिन्हें हम रोज़मर्रा इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, लेकिन साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।
  • चीन में प्रतिवर्ष लगभग 61 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और अमेरिका में लगभग 72 लाख टन तथा पूरी दुनिया में कुल 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है।

ई-कचरे के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव

  • ई-कचरे में शामिल विषैले तत्त्व तथा उनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
  • माना जाता है कि एक कंप्यूटर के निर्माण में 51 प्रकार के ऐसे संघटक होते हैं, जिन्हें ज़हरीला माना जा सकता है और जो पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिये घातक होते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज़्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।

इसके अतिरिक्त उपभोक्ताओं के लिये ‘बाई-बैंक स्कीम’, ई-अपशिष्ट को एकत्र करने वाले लोगों को आर्थिक लाभ और अधिक समय तक चलने वाली वस्तुओं की कम कीमत रखकर, साथ ही, नगरपालिका व जनसमुदाय की भागीदारी के माध्यम से ई-कचरे का बेहतर निष्पादन किया जा सकता है। वर्तमान में ‘लैंडफिल डंपिंग के माध्यम से ई-कचरा का निपटान किया जाता है जिससे भू-जल में विषाक्त रसायन जाने का खतरा बढ़ गया है। ई-अपशिष्ट के निपटान हेतु सबसे उपर्युक्त विधि में अनुपयोगी समानों का संग्रह व नियंत्रण है। इसके अतिरिक्त सामानों का रीफर्बिशिंग (Refurbishing) कर उसके उपयोग बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

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